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Lockdown ने तोड़ी कुम्हारों की कमर, नहीं बिक रहे सुराही और मटके

गर्मी शुरू होते ही हर साल अप्रैल की शुरुआत में ही मिट्टी के घड़ों की डिमांड बढ़ जाती थी. मिर्जापुर जिले में भी कई जगह मटकों की बिक्री होने लगती थी, लेकिन इस साल लॉकडाउन के चलते अप्रैल के बाद भी ग्राहक नहीं दिख रहे है. अप्रैल भी समाप्त हो गया है और कुम्हारों की दुकानें भी सज गई हैं, लेकिन ग्राहक नहीं पहुच रहे हैं.

मिट्टी के घड़े न बिकने से मायूस बैठा कुम्हार.
मिट्टी के घड़े न बिकने से मायूस बैठा कुम्हार.

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Published : May 6, 2020, 11:20 AM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर:कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन के चलते कुम्हारों की मेहनत पर पानी फिरने लगा है. गर्मी बढ़ने के बाद घरों के सामने हर साल की तरह इस साल भी मिट्टी के मटकों की दुकानें सज गई हैं. कुम्हारों को उम्मीद थी कि इस गर्मी में मटकों की बिक्री होगी, लेकिन लॉकडाउन के कारण कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. लॉकडाउन के चलते लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. पिछले साल अप्रैल माह में गर्मी के शुरू होते ही घड़े और मटकों की बिक्री शुरू हो गई थी, लेकिन इस बार मई महीना शुरू हो गया है और ग्राहक देखने को नहीं मिल रहे हैं.

जानकारी देते कुम्हार.

मायूस बैठे हैं कुम्हार
शहर के महुवरिया में घरों के सामने हर साल की तरह इस साल भी मिट्टी के घड़े, सुराही और मटकों की दुकानें सज गई हैं. कुम्हारों को उम्मीद थी कि गर्मी शुरू होते ही मटकों की बिक्री होगी, लेकिन लॉकडाउन कारण बाजार में सन्नाटा है. कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के बर्तन तैयार हैं. बस अब लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार है. सुबह से शाम तक मटके के पास इसी तरह बैठे रहते हैं, लेकिन कोई ग्राहक नहीं आता है. ऐसी ही हालात रही तो आने वाले समय में हम लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएंगे. कुम्हारों का कहना है कि हम लोगों का यही एक रोजगार है, जिससे परिवार चलता है.

गर्मियों में घड़े, मटके और सुराही का पानी अच्छा माना जाता है. खासकर इस वक्त कोरोना वायरस से बचाव के लिए लोग फ्रिज के पानी से परहेज कर रहे हैं. ऐसे में मटकों की डिमांड अधिक होनी चाहिए थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण मटकों की डिमांड बहुत कम हो गई है.

मिट्टी के घड़े न बिकने से मायूस बैठा कुम्हार.

नहीं हो रहे ग्राहकों के दर्शन
घड़े बेच रही शिवकुमारी का कहना है कि पिछले वर्ष अप्रैल शुरू होते ही मटके की डिमांड शुरू हो गई थी, लेकिन इस बार मई शुरू हो गया है और ग्राहकों के दर्शन तक नहीं हो रहे हैं. इक्का-दुक्का ग्राहक ही पहुंच रहे हैं. पहले तो गांवों से भी लोग घड़े, मटके और सुराही ले जाते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह भी नहीं पहुंच पा रहे हैं.

बाजार में पसरा सन्नाटा
वहीं मटके बेच रहे सुरेश से जब उनकी हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष हर दिन उनकी कमाई चार से पांच सौ रुपये हो जाती थी, लेकिन इस बार बाजार में बिल्कुल सन्नाटा है. उम्मीद थी कि इस गर्मी में बिक्री अच्छी होगी, लेकिन वह नहीं हो पा रही है. अब हमको परिवार चलाने में समस्या हो रही है.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

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