उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

चाक के थमते ही थम गए कुम्हारों के आय के साधन

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के कुम्हारों की आशा टूटती नजर आ रही है. एक तरफ जहां कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने इन कुम्हारों का नुकसान हुआ है. वहीं अब बारिश ने इन कुम्हारों की कमर तोड़ दी है. इसके कारण कुम्हारों की ओर से बनाए गए बर्तन बिक नहीं पा रहे हैं.

By

Published : Jun 28, 2020, 2:46 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

कुम्हार परेशान
कुम्हार परेशान

मिर्जापुर: गर्मी के सीजन शुरू होते ही कुम्हारों की भी कमाई शुरू हो जाती है. हर वर्ष गर्मी के सीजन में लस्सी के गिलास, चाय पानी के कुल्हड़ के साथ घड़े के ऑर्डर तेजी से मिलते थे, जिसके कारण कुम्हार पर्याप्त मात्रा में मिट्टी बर्तन उपलब्ध नहीं करवा पाते थे. मगर इस बार कोरोना महामारी के चलते ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं, जिससे कुम्हारों के चाक का पहिया थम सा गया है और परिवार का भरण-पोषण करने में मुश्किल हो रही है. वहीं कुम्हारों को जो कुछ उम्मीद बची थी वो बरसात आ जाने से टूट गई. कुम्हार एक सीजन में 20 हजार रुपये तक की कमाई करते थे. जनपद में कुल 2211 परिवारों का जिला खादी ग्रामोद्योग में सूची है. इस हिसाब से करोड़ों रुपये के नुकसान कुम्हारों को हो रहा है.

मिर्जापुर सिटी विकासखंड के ग्राम सभा लखमापुर के कुम्हार अपने परिवार के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी से ही मिट्टी का बर्तन बनाने का काम करते आ रहे हैं. इसी पुश्तैनी काम से घर का खर्चा चलता है. मगर इस बार कोरोना वैश्विक महामारी आने से परिवार की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है. परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. हर वर्ष गर्मी के सीजन में लस्सी वाली कुल्हड़, चाय की कुल्हड़ और पानी का कुल्हड़ के साथ घड़े की बिक्री खूब होती थी. हाल ऐसा होता था कि कुम्हार लोगों को पर्याप्त मात्रा में बर्तन उपलब्ध नहीं करवा पाते थे.

कुम्हार परेशान

एक परिवार 20 हजार रुपये तक कमाई कर लेते थे. मगर इस बार कोरोना महामारी की वजह से लस्सी चाय की दुकानें नहीं खुली. साथ ही गर्मी में होने वाले शादियों के सीजन के बारात में कम संख्या आने से पानी के कुल्हड़ और करवा के ऑर्डर नहीं मिले. इसके अलावा लॉकडाउन में लोग घरों में रहे, जिसके कारण घड़े की बिक्री नहीं हुई और न ही इस बार सड़क किनारे प्याऊ लगाए गए. इसके चलते इन कुम्हारों के तैयार मिट्टी के बर्तन घरों में स्टोर हैं.

वहीं कुम्हारों को जो कुछ उम्मीद बची थी वह बरसात का मौसम आ जाने से टूट सा गया है. जिले में सरकारी लिस्ट के हिसाब से 2211 परिवार है. हर एक परिवार एक सीजन में 20 हजार रुपये की कमाई करते हैं तो इस हिसाब से कुल 44,220,000 का नुकसान उठाना पड़ा है. वहीं लिस्ट के अलावा भी न जाने कितने कुम्हार हैं जो अपने पुश्तैनी धंधे में लगे हुए हैं और मजबूरन सरकारी राशन थोड़ा बहुत जो मिल रहा है उसी से पेट भर रहे हैं.

बरसात शुरू हो जाने से अब जो बर्तन बनकर तैयार है, उसे भी बेचना मुश्किल हो रहा है. ईटीवी भारत ने जब कुम्हारों से बात किया तो उन्होंने अपना दर्द बयान किया. उन्होंने बताया कि जबसे कोरोना महामारी आई है तब से वे लोगों का सारा कारोबार चौपट हो गया है. दुकानें बंद रही तो वहीं शादियां न होने के कारण उन्हें कोई ऑर्डर नहीं मिले. इसके चलते अब खाने पीने की भी दिक्कत सामने आ रही है.

वहीं जिला खादी ग्रामोद्योग अधिकारी का कहना है कि उनके यहां 2211 लोगों की सूची है. मगर इस लिस्ट में वास्तविक तौर पर पैतृक रूप से काम करने वाले कारीगर 692 हैं, जो मिट्टी के कुल्हड़, दिया, गिलास और बर्तन बनाते हैं. लॉकडाउन में इनके जो माल नहीं बिके हैं. इसके लिए प्रयास किया जा रहा है कि उनके माल बिकवाया जा सके. लोन के माध्यम से तैयारी की जा रही यहां मार्केटिंग की भी व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए. साथ ही मुख्यमंत्री जी का निर्देश है कि एक क्लस्टर बनाया जाए, जहां 100 से 200 कुम्हार अच्छे से अच्छे बर्तन बनाकर रिजर्व करके दिखाएं और बेच सके. इससे उनकी आय दुगनी हो.

मगर सवाल उठता है जब कुम्हार परेशान होते हैं तो सरकार इनकी बात करने लगती है. मगर कुछ दिन करने के बाद भूल जाती है. अब देखना होगा इन कुम्हारों का कैसे जीविकोपार्जन के लिए सरकार व्यवस्था करती है.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details