मिर्जापुर: लोक साहित्य लोक कला कजरी को जीवित रखने के बच्चों की कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. यह कार्यशाला 15 दिनों चलाई जाएगी, जिसमें 6 से 12 तक के छात्र-छात्राओं को कजरी गायन सिखाया जा रहा है.
मिर्जापुर: विलुप्त हो रहे कजरी गीत को सहेजने में जुटी हैं छात्र-छात्राएं - कजरी कार्यशाला का आयोजन
मिर्जापुर में कजरी कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें 6 से लेकर 12 कक्षा तक बच्चे शामिल हुए. इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विलुप्त हो रही कजरी को बचाना है.
क्या है कजरी-
एक तरह की भोजपुरी लोकगीत है, जिसे सावन के महीने में महिलाओं द्वारा गाया जाता है. भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया को पूर्वांचल में 'कजरी तीज' पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं. शक्ति स्वरूपा मां विंध्यवासिनी का पूजन-अर्चन करती हैं और 'रतजगा' करते हुए कजरी गायन करती हैं
मिर्जापुर में गायी जाने वाली कजरी की सबसे बड़ी खासियत इसकी मिठास है. कजरी एक बेहद विशिष्ट शैली धुनमुनिया थी, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे का हाथ पकड़कर गोल घेरा बनाकर कजरी गीत गाती थीं. अब कहीं नजर नहीं आती. कजरी को लेकर बच्चों में उत्साह बना रहा तो आने वाले समय में मिर्जापुर अपने पुराने संस्कृति दिखाई देगा.