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अपने अतीत से कितना बदल गया आज का भारत, सुनिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की जुबानी - आजादी के बाद का भारत

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आज भी मौजूद हैं. 15 अगस्त और 26 जनवरी आते ही इनकी खोज-खबर शुरू हो जाती है, लेकिन पूरे साल उनकी सुध कोई नहीं लेता. स्वतंत्रता सेनानियों का कहना है कि आजादी के बाद हिंदुस्तान का सूरज चांद सब कुछ बदल गया है. कुर्बानियों को सब भूल चुके हैं. आइए सुनते हैं जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के दर्द की कहानी, उन्हीं की जुबानी...

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मिर्जापुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का हाल.

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Published : Aug 13, 2020, 7:36 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर:अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी का जिक्र आते ही देश के कई नाम और चेहरे याद आ जाते हैं, जिन्होंने लम्बी लड़ाई और जुल्म-ओ-सितम सहकर देश को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराया था. उसकी एक लंबी लिस्ट है. उसी में से मिर्जापुर के चार आजादी के दीवाने आज भी जिंदा हैं, जो उस समय के मंजर को आज भी याद करते हैं. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर शुक्ल और सुशीला सिंह ने बताया कि गांधी जी के नेतृत्व में स्कूल के समय से ही हम लोग आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे. हम लोगों को जेल भी हुई थी.

विद्यासागर शुक्ल ने कहा कि जिस राष्ट्र की हम लोगों ने कल्पना की थी, वह अब कहीं खो सा गया है. वे बताते हैं कि हमने सोचा था कि आजादी के बाद हमारा हिंदुस्तान एक अच्छा परिवर्तन लेकर आएगा. लोगों की विचारधारा में परिवर्तन होगा. एक-दूसरे से प्रेम व्यवहार होगा. लेकिन अब वह नहीं रह गया है. अब तो लगता है सूरज और चांद दूसरे हो गए हैं.

मिर्जापुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का हाल.

कौन लेगा स्वतंत्रता सेनानियों की सुध ?

15 अगस्त आते ही स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ पर सरकार को वतन पर जान लुटाने वाले शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले सेनानियों की याद आती है. इस दिन लंबे चौड़े वादे होते हैं. इसके बाद फिर साल भर भूल जाते हैं. वर्तमान में जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की हालत किसी से छिपी नहीं है. आज उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. 97 वर्ष के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर शुक्ल बताते हैं कि 1939 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाने वाले लोगों को पीटा जाता था. वंदे मातरम गाने वाले लोगों को सख्त सजा दी जाती थी. लाल पगड़ी पहनने वाले को बहुत प्रताड़ित किया जाता था.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर शुक्ल ने 19 साल में ही स्कूली शिक्षा पूरी कर ली थी. विद्यासागर बताते हैं कि इसी दौरान 1939 में वंदे मातरम का गीत गाते हुए भारत माता को आजाद कराने का जज्बा दिल में पैदा हुआ था. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में पर्चा बांटने, विदेशी वस्त्रों की होली जलाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

जंगलों में भी बिताया वक्त
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर शुक्ल ने अपने साथियों के साथ कुछ दिन जंगलों में भी बिताया था. 1942 के असहयोग आंदोलन के दौरान मिर्जापुर के पहाड़ा स्टेशन कांड में जीत नारायण पांडे, पुष्कर नाथ पांडे और नरेश चंद्र श्रीवास्तव के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका और रेलवे स्टेशन को तहस-नहस करने में अहम भूमिका निभाई थी. जिसमें पहाड़ा कांड में नरेश चंद श्रीवास्तव जल जाने से शहीद हो गए. इस मामले में जीत नारायण और पुष्कर नाथ पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया था और इसमें विद्यासागर घटना के बाद वहां से फरार हो गए थे. 8 महीने तक पुलिस से बचते रहे. इसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और आगरा में 2 साल जेल में रहे.

स्वतंत्रता सेनानी विद्यासागर शुक्ल बताते हैं कि ज्यादा याद नहीं है, लेकिन मिर्जापुर, लखनऊ और एक दिन दिल्ली के जेल में भी थे. उन्होंने एक वाकये का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार वे और उनके साथियों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के एक जिलाधिकारी को उसकी कुर्सी से धकेल दिया था. इस तरह से विद्यासागर आजादी में अपने साथियों के साथ मिलकर संघर्ष करते रहे.

नहीं दिखता आज वह हिंदुस्तान
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विद्यासागर कहते हैं कि आजादी के बाद जिस राष्ट्र की हम लोग कल्पना करते थे, आज वह हिंदुस्तान नहीं दिखता है. वे बताते हैं कि उन्होंने सोचा था कि आजादी के बाद एक अच्छा परिवर्तन देखने को मिलेगा, एक दूसरे में प्रेम रहेगा, मगर वैसा बिल्कुल दिखाई नहीं देता. अब लगता है कि जैसे सूरज और चांद सब दूसरे हो गए हैं. बचपन का सूरज देखता हूं और आज का सूरज देखता हूं, तो अजीब परिवर्तन लगता है. गांधी जी के अगुवाई में हम लोग लड़ाई लड़े और आजादी हासिल की. आजादी दिलवाने में बहुत लोग कुर्बान हो गए. अब कोई उस कुर्बानी को याद नहीं करता है. अब तो किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. पहले और वर्तमान के लोगों में काफी परिवर्तन आ गया है.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुशीला बताती हैं...
महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुशीला सिंह का भी कुछ इसी तरह का देश के लिए योगदान रहा. सुशीला सिंह पढ़ाई के समय 16 साल की उम्र में बिलासपुर में अपने टीचर के कहने पर अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए जुलूस के साथ निकल पड़ी थीं. 82 वर्षीया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुशीला सिंह बताती हैं कि बिलासपुर में दर्जन भर महिलाओं के साथ अंग्रेजों के खिलाफ हम लोग नारा लगाते थे. उस समय अंग्रेजों से खूब लड़ाई होती थी, जब हम लोग बिलासपुर में नारा लगाते थे, तो हम लोगों को 3 महीने की बिलासपुर में जेल की सजा भी हुई थी.

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई
महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुशीला सिंह ने बताया कि जेल में भी लड़ाई-झगड़ा होता था, लेकिन हम महिलाओं के साथ टीचर रहते थे. कुछ हमारी महिला साथी रहती थीं. इसलिए जेल में हम लोग के साथ कोई परेशानी नहीं होती थी. परिवार वाले मना करते थे कि मत जाओ, लेकिन हमारे टीचर बोलते थे डरिए मत, हमारे साथ इसे जाने दीजिए. हम लोग हिम्मत वाले थे, इसलिए डरते नहीं थे. हम लोगों के हौसले हमारे टीचर बढ़ाते रहते थे. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुशीला सिंह बताती हैं कि उनकी बहन ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी.

मिर्जापुर के चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
मिर्जापुर में आज भी चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौजूद हैं. इनमें से विद्यासागर शुक्ल महुवरिया सदर तहसील में रहते हैं. सुशीला सिंह डीजे कॉलोनी सदर तहसील में रहती हैं. वहीं रामनिरंजन सिंह हासीपुर, चुनार तहसील और नक्की धांगर अहरौरा बाजार, चुनार तहसील में रहते हैं. यह चारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिल्कुल स्वस्थ हैं. बीच-बीच में प्रदेश और केंद्र सरकार इन्हें सम्मानित करती रहती है. हर 15 अगस्त और 26 जनवरी पर इन्हें जिला प्रशासन बुलाकर सम्मानित करता है.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

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