मिर्जापुर: कहते हैं मां बाप अपने बच्चों की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. इसका जीता जागता सबूत मिर्जापुर सिटी ब्लॉक के हनुमान पड़रा में देखने को मिला है, जहां एक मजदूर पिता ने दिव्यांग बेटे की फरमाइश पूरी करने के लिए देसी जुगाड़ से घर पर ही एक साइकिल बना डाली है. बेटा की इच्छा थी कि अन्य बच्चों की तरह सड़क पर चल सके. पिता ने अपने बेटे के सपना पूरा करने के लिए अपने हाथों से जुगाड़ कर साइकिल बनाई है. अब बेटा साइकिल लेकर अन्य बच्चों की तरह सड़क पर दौड़ लगा रहा है.
बेटे की फरमाइश पूरी करने के लिए पिता ने बनाई जुगाड़ से साइकिल
मिर्जापुर जिले के सिटी ब्लॉक के हनुमान पड़रा के रहने वाले राजबली मौर्य ने अपने दिव्यांग बेटे आर्यन की मांग पर जुगाड़ से साइकिल बनाई है. दिव्यांग आर्यन बेटा घर पर लेटे लेटे बैठे-बैठे अन्य बच्चों को सड़क पर चलते देख परेशान रहता था. अपने पिता से कहता था पापा मैं कैसे चलूं मुझे भी चलना है. बेटे की इसी फरमाइश पर मजदूर पिता को एक दिन आइडिया आया कि छोटे बच्चे जिस तरह से व्हील से चलते हैं, यदि उस तरह से बना दिया जाए तो मेरा भी बच्चा चल सकता है. इसी आईडिया को देखते हुए पिता राजबली ने साइकिल बना डाली है. अब बच्चा सड़क पर साइकिल लेकर दौड़ रहा है और बेहद खुश नजर आ रहा है.
दिव्यांग बेटे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए मजदूर पिता ने जुगाड़ से बनाई साइकिल. महीनों मेहनत कर बनाई है पिता ने बेटे के लिए साइकिल
हमारे देश में जुगाड़ बहुत ही कारगर होता है. जब हमारा काम रुकता दिखाई देता है तो कोई न कोई जुगाड़ लगा देते हैं. ऐसा ही एक जुगाड़ राजबली ने अपने दिव्यांग बेटे आर्यन को खुश करने के लिए कर डाला है. 18 वर्षीय दिव्यांग आर्यन पैर से चल नहीं पाता था. पिता से कहा करता था कि पापा हम कैसे चले. इसी को देखते हुए पिता ने बेटे के लिए इस साइकिल को बनाया है. 7 महीने में पांच हजार खर्च कर इस साइकिल को तैयार किया है. अब पिता खुश है कि हमारा बेटा भी सड़क पर चल पा रहा है.
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क्या कहा पिता
दिव्यांग आर्यन के पिता राजबली ने बताया कि हमारे तीन बेटे हैं, जिसमें दूसरा नंबर का बेटा दिव्यांग है चल नहीं पाता है. बेटा जन्म के समय अच्छा था. 5 साल ठीक दिखाई दे रहा था, लेकिन 2009 से बेटा बिल्कुल चलने में असमर्थ हो गया. इधर 2 साल से बेटा लेटे-लेटे बोलता था, पापा मैं कैसे चलू मुझे भी चलना है. बेटे की मांग को देखते हुए हमने अपने बेटे के लिए साइकिल बना दी. मार्केट से सामान लाकर 7 महीने की मेहनत कर साइकिल तैयार कर बेटे को दे दिया हूं. अब वह चल फिर रहा है. वही जब ईटीवी भारत ने राजबली से पूछा कि आप को सरकारी मदद क्यों नहीं मिल पाई है. सरकार तो बहुत ट्राई साइकिल वितरण करती है आप तक क्यों नहीं पहुंचा है, तो उन्होंने कहा कि मैं मजदूर आदमी हूं काम करके परिवार पालता हूं. मुझे योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मेरे घर कोई अधिकारी और जनप्रतिनिधि इसके लिए बताने आया, मजबूरन अपने बेटे के लिए पैसा खर्च करके जुगाड़ से साइकिल बनाया है.
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अधिकारी ने कहा जल्द दी जाएगी ट्राई साइकिल
जिला दिव्यांगजन कल्याण अधिकारी राजेश कुमार सोनकर ने कहा कि आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया है. उस दिव्यांग बच्चे के लिए ट्राई साइकिल और पेंशन के साथ जो भी सरकारी योजनाएं है उससे लाभान्वित किया जाएगा, क्योंकि बच्चा 18 वर्ष पूरा हो गया है. उस परिवार से सारा आवेदन करा के हर तरह से लाभ दिया जाएगा. लगातार हमारे शिविर लगते हैं, जहां पर लाभार्थी पात्र पाए जाते हैं सभी को हर तरह की सुविधा दी जाती है. इसी तरह से इनको भी दी जाएगी. सरकार शासन की मंशा अनुसार ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए कोशिश की जाती है.