मिर्जापुर :उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. विपक्ष के साथ ही भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी जातिगत जनगणना कराने की मांग को लेकर विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मांग शुरू कर दी है.
इसके अब कई राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. राजनीति के कई जानकार इसे अपना दल (एस) की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. कई इसे उत्तर प्रदेश चुनाव में ओबीसी वोटरों को लुभाने का स्टंट करार दे रहे हैं. लेकिन जिस पार्टी की अनुप्रिया पटेल सहयोगी हैं, उसी पार्टी के उत्तर प्रदेश के केबिन मंत्री अनिल राजभर ने कुछ दिन पहले मिर्जापुर में जातिगत जनगणना का विरोध किया था.
कहा था कि अंग्रेजों की हुकूमत हमारे लिए उदाहरण नहीं बन सकती. भारत गुलाम था, तब अंग्रेजों ने जातिगत जनगणना कराई थी. जातिगत गणना से अंग्रेज फूट डालो और राज करो का काम करते रहे हैं. अब हम जातिगत जनगणना पर विश्वास नहीं करते.
इसी बीच आने वाले चुनाव में अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल भी अनुप्रिया पटेल के लिए रोड़ा बनती नजर आ रहीं हैं. ऐसे में सवाल यह है कि जब अनुप्रिया पटेल के सहयोगी जातिगत जनगणना पर विश्वास ही नहीं करते तो वह ओबीसी वोटरों को कैसे साध पाएंगी.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां ओबीसी वोट बैंक को विधानसभा चुनाव के पहले साधने में अभी से जुट गई हैं.
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना दल (एस) चुनाव लड़ी थी. इसमें बड़ी संख्या में ओबीसी वोट मिले थे जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों में बड़ी जीत मिली थी.
इसलिए अब सभी पार्टियां एक बार फिर जातिगत गणना का मुद्दा उठाकर ओबीसी वोट बैंक को साधने में जुटी हैं. इसमें भाजपा की सहयोगी अपना दल भी शामिल है.
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