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15 साल बाद जिंदा हुए भोला, मिला प्रमाण पत्र

यूपी के मिर्जापुर जिले में पिछले पन्द्रह सालों से खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़ रहे भोला सिंह को आखिरकार जीत मिल गई. जिला प्रशासन ने भोला सिंह का नाम तहसीलदार के आदेश पर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज किया है.

15 साल बाद जिंदा हुए भोला
15 साल बाद जिंदा हुए भोला

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Published : Feb 9, 2021, 10:05 AM IST

मिर्जापुर: पिछले 15 वर्षों से खुद को जिंदा साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे भोला सिंह को जिला प्रशासन ने सोमवार को जिंदा होने का सबूत दे दिया है .भोला सिंह का नाम सरकारी खतौनी चढ़ाकर उन्हें खतौनी का प्रमाण पत्र सौंपा है. दरअसल सिटी ब्लॉक के अमोई गांव के रहने वाले भोला सिंह के सगे भाई ने जमीन के लालच में लेखपाल के साथ मिलकर सरकारी कागजों पर उसे मृत दिखा दिया था. इसके बाद से भोला खुद को जिंदा साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई 15 सालों से लड़ रहे थे. आखिर में भोला की जीत हुई और उनका नाम तहसीलदार के आदेश पर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज किया गया.

15 साल बाद जिंदा हुए भोला सिंह के संघर्ष की कहानी
15 वर्षों से कागजों में मृत व्यक्ति जिंदा
इसे हमारे सिस्टम की लापरवाही ही कहेंगे कि एक जिंदा व्यक्ति को कागजों में मृत दिखा दिया गया. इसके बाद वह 15 वर्षों तक खुद के जिंदा होने के सबूत देता रहा. सिटी ब्लॉक के अमोई गांव के रहने वाले भोला सिंह के सगे भाई राज नारायण ने 2005 में लेखपाल और कानूनगो की मदद से जमीन के कागज खतौनी पर उन्हें मृतक दर्ज करा कर अपने नाम करा लिया था. जानकारी होने पर भोला खुद को जिंदा साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू कर दिया. अंततः 15 सालों की भोला की मेहनत रंग लाई और भोला का नाम खतौनी में दर्ज कराते हुए सोमवार को तहसीलदार सुनील कुमार ने उन्हें खतौनी सौंपा.
15 सालों की भोला की मेहनत रंग लाई और भोला का नाम खतौनी में दर्ज कराते हुए सोमवार को तहसीलदार सुनील कुमार ने उन्हें खतौनी सौंपा.
आखिर कैसे भोला सिंह को मिली मदद
खुद को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के पास चक्कर लगा रहे भोला सिंह ने 16 जनवरी 2021 को सुनवाई नहीं होने पर डीएम कार्यालय के सामने 'साहब मैं जिंदा हूं' का बैनर लेकर बैठ गए. इसके बाद मीडिया में खबर चलने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने संज्ञान लेकर जिला प्रशासन को कार्रवाई का निर्देश दिया, जिसमें डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार ने इस मामले में दोनों भाइयों का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दे दिया. भोला ने डीएनए के लिए अपना ब्लड जिला अस्पताल में आ कर दिया, लेकिन उनके भाई राज नारायण ने डीएनए जांच के लिए खून नहीं दिया. भाई राज नारायण के खून न देने से जिला प्रशासन को मदद मिल गई और जांच पड़ताल के बाद मृतक भोला सिंह को खतौनी में जीवित दिखाकर प्रमाण पत्र सौंप दिया है.
खतौनी में नाम दर्ज होने से भोला हुआ खुश
भोला सिंह के वकील विनोद ने बताया कि 1999 तक खतौनी में इनका नाम था. इसके बाद उनके भाई ने मृतक दिखा कर अपने नाम करवा लिया तब से यह मामला चला रहा था. लेकिन भोला ने जब 16 जनवरी को मैं जिंदा हूं की तख़्ती लेकर डीएम कार्यालय पर पहुंचकर गुहार लगाई तब जाकर मुख्यमंत्री ने मामले को संज्ञान में लिया, जिसके बाद अधिकारियों को निर्देशित किया गया. इसके बाद अब जाकर भोला को न्याय मिला है. अब भोला बहुत खुश है.
तहसीलदार ने दी जानकारी
भोला सिंह के मामले में तहसील न्यायालय में मुकदमा चल रहा था. इस बीच हमने जल्दी-जल्दी मामले की सुनवाई की साक्षयो कागजों और गवाहों के आधार पर भोला सही पाए गए. इसके बाद फिर से उनका नाम खतौनी में दर्ज करने के आदेश दे दिया गया है. यह मुकदमा 2005 से चल रहा था. भोला के सगे भाई राजनारायण पर लेखपाल और कानूनगो की मदद से जमीन कागजात खतौनी पर मृतक दर्ज कराने का आरोप लगाया था. 2016 में इन तीनों लोगों को आरोपी बनाकर मुकदमा भी दर्ज कराया गया था जो कि न्यायालय में विचाराधीन भी है.

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