मिर्जापुर: रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों का सामान ढोकर आजीविका चलाने वाले कुलियों के जिंदगी कोरोना के चलते ठहर सी गई है. मिर्जापुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इन दिनों कुली मायूस होकर बैठे रहते हैं या आराम करते आपको दिखाई देंगे.
दरअसल, कोरोना के कारण ट्रेन कम चल रही है और लोग यात्रा भी कम कर रहे हैं. कुछ ट्रेन में तो चल रही है, फिर भी प्लेटफार्म पर सन्नाटा पसरा रहता है. हालात यह है कि कमाई न होने से कुलियों को घर चलाना मुश्किल हो रहा है. प्रतिदिन इन्हें घर से आना-जाना ही महंगा पड़ रहा है. कई बार तो इस कुलियों को काम के आभाव में पूरे दिन खाली बैठना पड़ता है.
कुलियों की नहीं होती बोहनी
मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पर कुल 45 कुली कार्यरत हैं. कोरोना के चलते इस समय कुल 8 ट्रेनें अप और डाउन में रुक रही हैं. कुलियों को काम न मिलने से कभी प्लेटफार्म पर तो कभी पैदल पुल पर बैठकर कुल यही चर्चा करते हैं कि कब हालात सुधरेंगे और कब मेरी जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लौटेगी. कोरोना ने सालभर में इन कुलियों पर ऐसा ग्रहण लगा दिया है कि अब इन्हें अपना सब कुछ बर्बाद होता नजर आ रहा है.
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कई कुली नहीं आते स्टेशन
काम नहीं मिलने और आर्थिक संकट के बीच कई कुली तो प्रतिदिन रेलवे स्टेशन नहीं आ रहे हैं. जो आते भी हैं उनको काम नहीं मिल पाता है. ये कुली कहीं बैठकर अपने घर के हालात पर चर्चा करते हैं, कुछ तो रेलवे परिसर में आराम करते दिखाई दे जाते हैं. हालात यह है कि अब इनको घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. ईटीवी भारत जब इन कुलियों के पास पहुंचा इनका दर्द झलक उठा. ईटीवी के माध्यम से इन कुलियों ने अपना दर्ज बयां किया. कुलियों की मांग है कि सरकार को हम पर भी ध्यान देना चाहिए. कुछ स्थाई मानदेय कर देना चाहिए जिससे हमारा भी परिवार चल सके.
जब से कोरोना आया है तब से उठानी पड़ रही है मुसीबत
कुली सुभाष चंद्र का कहना है कि कोरोना संक्रमण की वजह से साल भर से परेशानी हो रही है. राशन तो गांव में दो चार किलो मिल जाता है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई, परिवार के खर्चे, दवा आदि का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. कुली कल्लन का कहना है कि यात्री का आवागमन कम हो गया है. कुछ ट्रेनों का भी निरस्तीकरण किया गया है. ऐसे में कुछ लोगों को काम मिल जाता है, कुछ लोगों को नहीं मिल पाता है. कुछ यात्री तो कोरोना की वजह से बैग भी छूने नहीं देते हैं, खुद खींच कर लेकर चले जाते हैं.
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कल्लन ने बताया कि यह परेशानी पिछले एक वर्षों से बनी हुई है. पहले लॉकडाउन में 7 महीने तक काम नहीं मिला था. सभी लोग घर बैठे थे. अब कुछ ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन सबको काम नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में घर चलाना मुश्किल हो रहा है. सरकार को हम लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए. इस स्थिति में सहायता करनी चाहिए.