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इस बार के चुनाव में चुनार का पॉटरी उद्योग बन सकता है मुद्दा, तीन दशक से नेता कर रहे वादा

मिर्जापुर के चुनार का पॉटरी उद्योग सरकारों की अनदेखी, अधिकारियों की गलत नीतियों और जनप्रतिनिधियों के सिर्फ कोरे वादों की वजह से डूबता जा रहा है. चुनार में चीनी मिट्टी के खिलौनों व मूर्तियों का बड़ा बाजार तो है, लेकिन सभी कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं. यदि इस ओर अभी भी कोई ठोस पहल नहीं की गई तो यह उद्योग इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा. इस बार चुनार का पॉटरी उद्योग चुनावी मुद्दा बनेगा. लोगों का कहना है कि हर बार वादा करते हैं, लेकिन कोई काम नहीं करता है.

इस बार के चुनाव में चुनार का पॉटरी उद्योग बन सकता है मुद्दा.
इस बार के चुनाव में चुनार का पॉटरी उद्योग बन सकता है मुद्दा.

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Published : Oct 27, 2021, 1:07 PM IST

मिर्जापुर: जिले का चुनार क्षेत्र मिट्टी के बर्तन और पॉटरी उद्योग के लिए मशहूर है. प्राकृतिक सुंदरता और चुनार के किले के कारण यह इलाका सैलानियों को भी खूब पसंद आता है. चुनार में कुछ फिल्मों और सीरियल की शूटिंग भी की हुई है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेती किसानी है, लेकिन पॉटरी उद्योग पर भी यहां की आबादी निर्भर है. पर व पहले जैसी बात नहीं रही. आज यहां का पॉटरी उद्योग सरकारी उदासीनता के कारण अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. पूरी तरह से पॉटरी उद्योग बंद हो गया है. हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं, जिसको जो समझ में आया वह अपना धंधा शुरू कर दिया है. दो दशक से ज्यादा यहां पर पॉटरी उद्योग चुनावी मुद्दा बना हुआ है.

इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा पॉटरी उद्योग
मिर्जापुर के चुनार किले के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला पॉटरी उद्योग और यहां बनने वाले चीनी मिट्टी के खिलौने, जार ,मूर्तियां और बर्तन सरकारी अनदेखी और अधिकारियों की गलत नीतियों प्रतिनिधियों के कोरे वादों की वजह से पॉटरी उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच गया है. चुनार मिट्टी के खिलौने व मूर्तियों का बड़ा बाजार तो है, लेकिन सभी कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं. कोई ठोस पहल नहीं की गई तो पॉटरी उद्योग इतिहास के पन्नों में दर्द हो जाएगा.

देखें रिपोर्ट..

इस बार बन सकता है पॉटरी उद्योग चुनावी मुद्दा
पूरे देश में चुनार की अनोखी पहचान वाला पॉटरी उद्योग अब दम तोड़ रहा है और लोगों के उम्मीदों पर पानी फेर रहा है. हर चुनाव में प्रत्याशी इस उद्योग के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, राजनीतिक आंसू बहाते हैं. वादा करते हैं कि सरकार बनी तो इस उद्योग को संजीवनी देने का काम किया जाएगा. चुनाव जीतने के बाद कुछ दिन प्रत्याशी और लोग चर्चा भी करते हैं, लेकिन इसके बाद 5 साल इसी तरह उद्योग से जुड़े लोग इंतजार करते रहते हैं, लेकिन कोई उद्योग के लिए पहल नहीं करता है, जब चुनाव आता है तो फिर शुरू हो जाता है. इस बार चुनार का पॉटरी उद्योग चुनावी मुद्दा बनेगा. लोगों का कहना है कि हर बार वादा करते हैं, लेकिन कोई काम नहीं करता है.

सरकार ने 1955 में कॉमन फैसिलिटी सेंटर का की थी स्थापना
चुनार में मुगल काल से ही लाल मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती रही है. आजादी के बाद चीनी मिट्टी के बने बर्तन खिलौने को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए 1955 में सरकार ने कॉमन फैसिलिटी सेंटर की स्थापना की थी. कॉमन फैसिलिटी सेंटर का मुख्य उद्देश्य था कि व्यापारियों को सस्ते दामों पर एक जगह रॉ मटेरियल मिल जाना. कारीगरों को काम देने के साथ ही कला को विकसित करना था. लेकिन रॉ मटेरियल का न आना, पर्याप्त मात्रा में बिजली न मिलना व्यापारियों के लिए ट्रेनों का ठहराव चुनार में न होने के चलते कॉमन फैसिलिटी सेंटर 1990 में बंद हो गया.

दम तोड़ता पॉटरी उद्योग .

इसके बाद से प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार तक कई सरकारे बदली, लेकिन तीन दशक हो गए किसी भी सरकार ने यहां के लोगों के उद्योग के बारे में नहीं ध्यान दिया. जिसके चलते अब पॉटरी उद्योग बंद हो गया है. जबकि चुनार के साथ खुर्जा का पॉटरी उद्योग विकास कर रहा है. वहीं चुनार में करीब ढाई सौ कारखाने और 5000 लोगों प्रत्यक्ष और 25000 अप्रत्यक्ष से लोगों की इससे रोजी-रोटी चलती थी. अब वह दूसरे धंधे में लग गए हैं या तलाश रहे हैं.

किस वजह से बंद हुआ पॉटरी उद्योग
1955 में कॉमन फैसिलिटी सरकार ने स्थापना की. इस कॉमन फैसिलिटी से सरकार के द्वारा सस्ते दामों में रॉ मटेरियल व्यापारियों को उपलब्ध कराई जाती थी. लेकिन सरकार ने रॉ मटेरियल देना 1990 से बंद कर दिया. कच्चे माल के दामों में बेतहाशा वृद्धि सीधे तौर पर परिवहन की सुविधा न होना और बिजली की कमी के वजह से बंद हो गया. जबकि चुनार में चीनी मिट्टी के खिलौने मूर्तियों का बड़ा बाजार है. अब यहां के कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं.

दम तोड़ता पॉटरी उद्योग .

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सरकार ध्यान दें तो फिर से शुरू हो सकता है पॉटरी उद्योग
1955 में बनाए कॉमन फैसिलिटी के द्वारा कच्चा माल उपलब्ध होने के साथ-साथ तैयार माल पकने के लिए सरकारी स्तर पर बनाई गई भटट्टियां उपलब्ध कराई जाती थी. करोड़ों रुपए का टर्नओवर हुआ करता था. मगर लगातार बढ़ती महंगाई और तकनीक के अभाव के कारण यह भट्टियां बंद हो गई, जबकि चीनी मिट्टी के बर्तनों की मांग आज भी वैसे ही है जैसे पहले हुआ करती थी.

पहले 200 से ज्यादा कारखाने चलते थे, पिछली पंचवर्षीय में चुनार के एक दर्जन से अधिक भट्टियों से धुआं निकलता था, अब केवल एक-दो ही भट्टियां धुंआ दे रही हैं. बाकी बंद हो चुके हैं. सरकार रॉ मटेरियल पहले जैसा उपलब्ध कराएं और नई तकनीक की ट्रेनिंग दिलाने के साथ ही परिवहन की व्यवस्था यहां पर करा दे तो यह धंधा फिर से शुरू हो सकता है. क्योंकि यहां पर सरकार को जमीन की भी आवश्यकता नहीं है. क्योंकि पहले से ही सरकार के द्वारा सभी चीज उपलब्ध है, केवल जरूरत है रॉ मटेरियल और नई तकनीक की ट्रेनिंग दिलाने की.

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