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मेरठ: चीनी मिलों के संचालन में हुई देरी, किसान औने-पौने दाम पर बेच रहे गन्ना

यूपी के मेरठ में चीनी मिलों के समय से संचालित न होने से गन्ना किसानों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसके चलते गन्ना किसान औने-पौने दाम पर गन्ना बेचने को मजबूर हो रहे हैं.

चीनी मिलों के संचालन में देरी से किसान परेशान.
चीनी मिलों के संचालन में देरी से किसान परेशान.

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Published : Nov 6, 2020, 4:55 PM IST

Updated : Nov 7, 2020, 8:21 AM IST

मेरठ:एक ओर जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के दावे कर रही है. वहीं चीनी मिलों के संचालन में हो रही देरी न सिर्फ किसानों के लिए मुसीबत बना हुई है बल्कि सरकार के दावो की पोल खोल रही है. ऐसे में किसानों के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा है. छोटे एवं सीमांत किसान और उनका परिवार भूखमरीं के कगार पहुंच रहे हैं. रही-सही कसर कोरोना वायरस पूरी कर चुका है, जिसके चलते गन्ना किसान औने-पौने दाम पर गन्ना बेचने को मजबूर हो रहे हैं. मिल नहीं चलने की वजह से किसान आगामी फसल के लिए खेत खाली नहीं कर पा रहे हैं.

चीनी मिलों के संचालन में देरी से किसान परेशान.
चीनी का कटोरा माना जाता है पश्चिमी उत्तर प्रदेश
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चीनी का कटोरा यूं ही नहीं कहा जाता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ और सहारनपुर मंडल के 9 जिलों में 33 चीनी मिलें स्थापित हैं. इन चीनी मिलों में गन्ना किसान अपनी गन्ने की फसल को बेचकर न सिर्फ अपनी आजीविका चलाते हैं बल्कि भारतीयों के ही नहीं विदेशियों के मुंह मे भी गंगा-जमुनी मिठास घोलने का काम करते हैं. 70 फीसदी से ज्यादा भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है. सितंबर-अक्टूबर माह में गन्ने की लहराती फसल को देख कर किसानों के चेहरे भी खिल उठते हैं, लेकिन समय पर पेराई सत्र शुरू नही होने से मजबूरीवश खेत खाली करने पड़ रहे हैं.
कोहलुओं में ओने-पौने दाम पर गन्ना बेचने को मजबूर किसान
नवंबर माह आने तक खेतो में खड़ी गन्ने की फसल पूरी तरह पक कर तैयार हो चुकी है. अक्टूबर माह में गेहूं समेत रबी की फसल की बुआई की जाती है. गेहूं , सरसों, जौं आदि फसलों की बुआई हेतु खेत खाली करने के लिए मिल चलने का इंतजार रहता है. ताकि खेत मे खड़ी गन्ने की फसल की कटाई कर मिल में डाल सकें. लेकिन समय पर मिल नहीं चल पाने से परेशान किसान औने-पौने दाम पर गन्ना कोहलुओ में बेचने को मजबूर हैं. जहां सरकार ने गन्ने का 330-335 रुपये प्रति किंवटल दाम तय किया है. वहीं बेबश किसान अपना गन्ना 200-225 के भाव पर कोहलुओं में डाल रहे हैं, जिससे किसानों को मुनाफा तो दूर फसल पैदावार में आई लागत भी पूरी नहीं हो पा रही है. इसके चलते किसानों के सामने आर्थिक संकट मंडरा रहा है.
नहीं हो पा रहे ब्याह-शादी और घरेलू खर्च
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान पूरी तरह गन्ने की फसल निर्भर करता है. मिलों में पेराई सत्र देरी से शुरू होने पर खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. किसानों के मुताबिक मिल समय पर चल जाते तो वे अपने गन्ने की तैयार फसल को काट कर मिल में डाल कर न सिर्फ आगामी फसलों की बुआई करते, बल्कि गन्ने का भुगतान आने अपने घरेलू खर्च, बच्चो की स्कूल फीस और ब्याह शादी करते. लेकिन मिलो में पेराई सत्र की देरी से ब्याह शादी करना एतव दूर त्यौहार मनाना भी मुश्किल हो रहा है. उधर चीनी मिलों ने अभी तक पिछले साल का बकाया भुगतान भी नहीं किया है. मार्च, अप्रैल और मई माह का अरबों रुपया बकाया है. जिसके लिए किसान आंदोलन कर रहे हैं, यही वजह है कि गन्ने की फसल काट कर ओने पौने दाम पर कोहलुओं में बेचने को मजबूर हैं. 200-225 रुपये किंवटल के हिसाब से कोहलू में बेच रहे हैं.
कोरोना की वजह से सस्ता बिक रहा गुड़
कोहलू संचालक दिलशाद अली का कहना है कि कोहलुओं में गन्ने से गुड़ शक्कर बनाया जा रहा है. किसान से 200-250 रुपये के भाव गन्ना खरीद रहे है जबकि मिलों में 330-335 रुपये का भाव बिकता है. इन दिनों गन्ने से रस कम निकलने से गुड़-शक्कर भी कम बन पाता है. कम भाव मे गन्ना खरीदने के बाद भी कोहलू संचालकों को मुनाफा नही हो पा रहा. कोहलू चलाने के लिए मजदूरो के साथ परिवार के सदस्य भी लगे हुए हैं. कोरोना के कारण मंडियों में गुड़-शक्कर का भी उठान नहीं पा रहा है. पिछले साल 4000 रुपये किंवतल बिकने वाला गुड़-शक्कर इस बार 2400-3000 रुपये किंवतल भी नहीं बिक पा रहा है. इसके चलते कोहलुओं संचालकों को खर्चे पूरे करने भी मुश्किल हो रहे हैं.
कोरोना काल मे किसानों पर दोहरी मार
मार्च माह में आए कोरोना वायरस आने के बाद जहां किसानों की सब्जियों आदि की फसले कौड़ियों के भाव बिकी थी. वहीं अब मिल संचालन में हुई देरी किसानो के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. कहा जाए तो कोरोना वायरस के बाद किसानों पर यह दोहरी मार पड़ रही है. किसानों को उम्मीद थी कि इस बार चीनी मिलो में पेराई सत्र जल्दी शुरू हो जाएगा, लेकिन यह किसानों का केवल एक वहम था.

जनपद मेरठ में दौराला और सकौती मिल ही चल पाई है. किसानों की माने तो छोटे किसानों तक मिल से गन्ना पर्ची भी नहीं मिली है. मिलो के अधिकारी बड़े किसानो और गन्ना माफियाओं के साथ सांठगांठ कर पर्चियों में गड़बड़ी का खेल करते रहते हैं. ऐसे में छोटे किसानों के पास कोहलू में गन्ना डालने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता.

ETV भारत की टीम ने गन्ना किसानों के बीच पहुंच कर उनका दर्द साझा किया. किसानों ने गन्ने में आई लागत और आमदनी पर विस्तार से बताया लेकिन मुनाफे का कोई जिक्र नहीं किया. चीनी का कटोरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान को इस बार गन्ने की मुनाफा नहीं हो पा रहा है. चीनी मिल समय पर नहीं चल पाने की वजह से किसानों अपनी लह लहराती गन्ने की फसल बोझ लगने लगी है. अगर यही हाल रहा तो किसानों की आय दोगुनी होना तो दूर चीनी का कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान गन्ने की फसल करना छोड़ देंगे.

Last Updated : Nov 7, 2020, 8:21 AM IST

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