मेरठःहाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में रालोद और सपा का खतौली मॉडल न कहीं दिखाई दिया. दोनों दल बीजेपी के सामने कहीं टिक ही पाए. दोनों दलों के कार्यकर्ता एक दूसरे के सामने चुनाव भी तमाम सीटों पर लड़ते देखे गए. दोनों दल इसे फ्रेंडली फाइट बताते रहे.
अखिलेश यादव नहीं कर पाए करिश्माः निकाय चुनावों की घोषणा के बाद दोनों दलों की तरफ से बड़ी बड़ी बातें हुईं थीं कि दोनों पार्टी खतौली मॉडल को कंटिन्यू करते हुए चुनाव लड़ेंगी. वह खतौली मॉडल तो यहां अपना करिश्मा करता नहीं दिखा. क्योंकि राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस दौरान प्रचार में ही नहीं रहे. दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया रोड शो में उतरे भी तो करिश्मा नहीं कर पाए. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल खेमे में पहले खींचतान थी. हालांकि रालोद का दावा है कि वह पहले से मजबूत निकाय चुनाव के बाद हुए हैं.
गठबंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगाःराष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश महासचिव आतिर रिजवी का कहना है कि 'हाल ही में स्थानीय निकाय चुनाव के परिणाम आए हैं, वह बेहद ही संतोषजनक हैं. निकाय चुनाव छोटा चुनाव होता है और इससे गठबंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पार्टी के काफी कार्यकर्ता चाहते हैं कि उन्हें भी चुनाव लड़ने का अवसर मिले. पीछे गठबंधन के साथ क्या कुछ स्थितियां रही हैं, यह कोई विषय नहीं है. विषय यह है कि राष्ट्रीय लोकदल यूपी में निकाय चुनावों में भी पहले से अधिक मज़बूत विकल्प के तौर पर यूपी में उभरी है. गठबंधन का जहां तक सवाल है उसके लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयन्त चौधरी अधिकृत हैं, उन्हीं को फैसला लेना है कि हम किस के साथ जाएंगे.' रिजवी ने कहा कि 'पार्टी की मजबूती के लिए लगातार रालोद के कार्यकर्ता घर घर जाएंगे, इसके लिए समरसता अभियान भी शुरू हो चुका है. प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष मनजीत सिंह के नेतृत्व में हम गांव-गांव में सेक्टर कमेटियों का गठन करने जा रहे हैं. आज से तो समरसता अभियान की भी शुरुआत हमने कर दी है.'
यूपी में रालोद और आसपा मजबूत हुईःवरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि 'इस वक्त राजस्थान में कांग्रेस, आजाद समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल एक साथ हैं और पिछले चुनावों में भी राजस्थान में कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल एक साथ थे. यूपी में भी हाल ही में जो निकाय हुए हैं, इनमें भी देखा गया कि राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी कुछ जगह पर साथ लड़े. कुछ जगह पर फ्रेंडली लड़े. आमने सामने भी थे, लेकिन अभी गठबंधन टूटा नहीं है. क्योंकि दोनों दलों की मजबूरी है. यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और आजाद समाज पार्टी मजबूत होकर उभरी है, जबकि समाजवादी पार्टी कमजोर हुई है. ऐसे में लगता है कि राष्ट्रीय लोकदल चाहेगा कि समाजवादी पार्टी और साथ में कांग्रेस मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ें.