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रावण की पत्नी मंदोदरी ने की थी मां के इस मंदिर की स्थापना, 40 दिन में ऐसे पूरी होती है मुराद

लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी ने मेरठ में प्राचीन नवचंडी मंदिर की स्थापना की थी. नवचंडी मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां 40 दिनों तक दीपक जलाने से मनोकामना पूरी होती है. पुरातत्व विभाग में ये सिद्धपीठ के रूप में दर्ज हैं. वहीं नवचंडी के नाम से नौचंदी एक्सप्रेस भी संचालित होती है.

प्राचीन नवचंडी मन्दिर
प्राचीन नवचंडी मन्दिर

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Published : Apr 7, 2022, 3:27 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 5:19 PM IST

मेरठ:लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी नेमेरठ मेंप्राचीन नवचंडी मंदिर की स्थापना की थी. आस्था के प्रमुख केंद्र बिंदु के रूप में स्थित इस मंदिर की मान्यता है कि 40 दिन तक दीपक जलाने से हर मुराद पूरी होती है. यह मंदिर खुद में सैकड़ों वर्ष का इतिहास समेटे हुए है. इस मंदिर में हर मौसम में भक्त दर्शन करने आते हैं. देखिए ये खास रिपोर्ट.

मां दुर्गा की विभिन्न रूपों में उनके भक्त पूजा करते हैं. यहां पर नवरात्रि में मां के अलग-अलग रूपों की पूजा अर्चना प्रमुखता से होती है. मेरठ में भी दुर्गा मां का एक चमत्कारी मंदिर है. मेरठ में नवचंडी माता का मंदिर एक धर्म स्थल के तौर पर प्रमुख आस्था का केंद्र है. इसे सिद्ध पीठ के तौर लोग जानते हैं. मंदिर में पिछली कई पीढ़ियों से जुड़े पंडित संजय शर्मा ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा बताया गया कि इस नवचंडी मंदिर की स्थापना लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी ने रामायणकाल में कराई थी. वे बताते हैं कि इस मंदिर में मंदोदरी पूजा भी करती थीं. इस मूर्ति में मां हाथ में खप्पर लिए हैं. ये मूर्ति आकर्षक व अद्भुत है.

रावण की पत्नी मंदोदरी ने की थी मां के इस मंदिर की स्थापना

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मेरठ नवचंडी मंदिर की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां एक तरफ पुरातत्व विभाग में ये सिद्ध पीठ दर्ज हैं, वहीं देखा जाता है कि नवचंडी के नाम एक रेलगाड़ी भी संचालित होती है. नवचंडी के स्थान पर रेलगाड़ी को अब लोग नौचंदी एक्सप्रेस कहते हैं. मां के मंदिर के निकट में ही एक विशाल मैदान है जहां नवरात्रों में ही मेले की शुरुआत होती थी और पूरे एक महीने तक मेला यहां लगा करता था.

स्थानीय लोगों व मंदिर समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि चैत्र नवरात्र में नवचंडी जिसे अब नौचंदी के नाम से पुकारा जाता है. नौचंदी मेले की यहां शुरुआत हुआ करती थी जो कि काफी समय से ये परंपरा चली आ रही थी. अब प्रशासन की उदासीनता की वजह से ये मेला भी समय पर नहीं लगता है. मंदिर में सेवा देने वाले दावा तो यहां तक भी करते हैं कि जो भी भक्त यहां माथा टेकते हैं. उनकी मनोकामना तो पूर्ण होती ही हैं, साथ ही मान्यता है जिनके पुत्र नहीं होते उन माताओं को पुत्रप्राप्ति का आशीर्वाद भी यहां से मिलता है.

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Last Updated : Apr 7, 2022, 5:19 PM IST

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