मेरठ: कोरोना संक्रमण के कारण गरीब मजदूरों को सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे मजूदर जो अपने घर से दूर दूसरे जिले या प्रदेश में फंसे हैं उनके सामने रोजी रोटी का संकट आ रहा है. सरकार गरीब जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध करा रही है, लेकिन अपने घर से दूर लॉकडाउन में फंसे लोगों का कहना है कि जो भोजन मिल रहा है उससे परिवार का पेट नहीं भरता. उनका कहना है कि बड़ों को तो भोजन दे दिया जाता हैं लेकिन बच्चों को नहीं मिल रहा है. ऐसे में मजबूरी बस वो खेतों में गेहूं की बाली बीनने को मजबूर हैं, ताकि किसी तरह पेट भर सके.
भूख मिटाने के लिए मजदूर खेतों से बीन रहे गेहूं की बालियां कुंडा गांव में फंसे 150 से अधिक मजदूर शहर से करीब 9 किलोमीटर दूर गांव कुंडा में लॉकडाउन के कारण 150 से अधिक मजदूर फंसे हैं. ये सभी लॉकडाउन से एक दिन पहले ही यहां मजदूरी के लिए पहुंचे थे. मजदूरों का कहना है कि शुरू में जो पैसे उनके पास थे उससे वह सामान खरीद लेते थे, लेकिन अब पैसे भी खत्म हो गए हैं. इन मजदूरों में मध्यप्रदेश, बिहार और यूपी के दूसरे जिलों के लोग शामिल हैं, जो अपने परिवार के साथ यहां आए थे.
बच्चों का पेट नहीं भरता
इन मजदूरों का कहना है कि सरकार की पहल से उन्हें पुलिस भोजन तो दे रही है, लेकिन यह भोजन उनके बच्चों का पेट नहीं भर पाता है. उन्होंने बताया कि छोटे बच्चों को भोजन के पैकेट नहीं मिलते केवल बड़ों को मिलते हैं, ऐसे में बच्चों का पेट कैसे भरेगा. मजबूरी में वो गेहूं की बाली बीनने को मजबूर हैं. राहत के रूप में जो भोजन उन्हें मिलता है उसे वह अपने बच्चों को खिला देते हैं और खुद खेत से जो बाली इकट्ठी करते हैं उनसे दाने निकालकर अपना पेट भर रहे हैं.
'वापस घर भिजवा दो सरकार'
यहां के अधिकतर मजदूरों का कहना है कि अभी लगता नहीं है कि 3 मई को भी लॉकडाउन खुल जाएगा और उन्हें काम मिल पाएगा. अब तो वह यही सोच रहे हैं कि 3 मई को लॉकडाउन खुलते ही अपने घर चले जाएं. एक मजदूर राजा का कहना है कि यदि लॉकडाउन आगे बढ़ा तो भी वह यहां नहीं रूकेगें, उन्हें चाहे पैदल ही जाना पड़े, वह अपने बच्चों के साथ घर वापस चले जाएगें. इन मजदूरों का कहना है कि जब तक लॉकडाउन नहीं खुलता है, तब तक यदि उन्हें कच्चा भोजन उपलब्ध करा दिया जाए तो कम से कम उनके बच्चे भूखे तो नहीं रहेंगे.