मेरठ :'मेरी जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम, मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो इंकलाब लिख जाता है'.शहीद-ए-आजम भगत सिंह की कलम से निकले ये अल्फाज आजादी के दीवानों के जुनून को बयां करते हैं. देश की आजादी का सपना देखने वालों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. आज भी उनकी कुर्बानियों के निशान मौजूद हैं. जिला मुख्यालय से 20 किमी की दूरी पर स्थित जानी ब्लॉक के गांव पांचली खुर्द में ब्रिटिश हुकूमत ने बड़ा नरसंहार किया था. अंग्रेजों ने चारों तरफ तोप लगाकर पूरे गांव को उड़ा दिया था. यह गांव शहीद धनसिंह कोतवाल का गांव है.
धन सिंह ने 85 सैनिकों को जेल से छुड़ाया था :पांचली खुर्द गांव के रहने वाले धन सिंह मेरठ के कोतवाल हुआ करते थे. मई 1857 में उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था. उस दौरान क्रांतिकारियों ने बिगुल फूंकना शुरू कर दिया था. शहीद धन सिंह कोतवाल के वंशज वीर महेंद्र सिंह ने बताया कि धन सिंह ने विद्रोह के आरोपी 85 सैनिकों को लोगों के साथ मिलकर जेल से छुड़ा लिया था. उन्होंने जेल में बंद करीब 836 कैदी भी रिहा कर दिए थे. इससे अंग्रेजी हुकूमत के बड़ों अफसरोंं की टेंशन बढ़ गई थी. वह विचलित हो उठे थे. अंग्रेजों ने धन सिंह कोतवाल को आदेश दिए थे कि वे क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दें. इससे इंकार करते हुए कोतवाल धनसिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. आसपास के गांव के युवाओं के अलावा अपने विश्वासपात्र सिपाहियों को लेकर उन्होंने अंग्रेजी इमारतों को निशाना बनाया. उन्होंने पूरी तरह से क्रांतिकारियों का साथ दिया.
200 से ज्यादा लोगों की गई थी जान :इतिहासकार डॉ. देवेश बताते हैं कि अंग्रेजों ने कोतवाल धन सिंह के विद्रोही होने पर क्रांति भड़काने के आरोप में उनकी खोजबीन शुरू कर दी थी. इस बीच अंग्रेजी अफसर को मुखबिर ने सूचना दी कि धन सिंह अपने गांव में हैं. अंग्रेजी हुकूमत की गांव में घुसकर उन्हें पकड़ने की हिम्मत नहीं थी. इसके बाद 4 जुलाई 1857 को अंग्रेज अफसर खाकी रिसाले ने गांव पांचली खुर्द में तड़के चार बजे गांव के चारों तरफ तोप लगा दिए. इसके बाद हमला करा दिया. इस नरसंहार में 200 से ज्यादा ग्रामीणों की जान चली गई. अंग्रेजों ने धन सिंह कोतवाल को पकड़ लिया था. इसके बाद छावनी के बाहर बीच सड़क पर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था. उनके अलावा 40 अन्य लोगों को भी फांसी दी गई थी. पूरा गांव खाली हो गया था. जो महिला या बच्चे गांव में बचे थे, वे भी दूसरी जगह चले गए थे.