मेरठ :आधुनिकता के इस दौर में खराब जीवनशैली के कारण लाेग मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे हैं. लोग अपने सपनों को पूरा करने की जिद के कारण रिश्ताें काे समय नहीं दे पा रहे हैं. इसके कारण एक-दूसरे के साथ परेशानियाें काे साझा करने में भी दिक्कत आ रही है. इससे लाेगाें काे कई तरह की मानसिक बीमारियां हाे रहीं हैं. घर के बच्चे भी मानसिक रोगी हाे जा रहे हैं. ऐसे तमाम मामले सामने आ रहे हैं.
इटीवी भारत से बातचीत करते हुए लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज मेरठ के मनोरोग विभाग के HOD डॉक्टर तरुनपाल बताते हैं कि आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है, वह चाहे स्टूडेंट के लेवल की बात हो या फिर किसी भी अन्य लेवल की. वह कहते हैं कि हर इंसान की इच्छाएं बढ़ती जा रहीं हैं. डॉक्टर तरुणपाल कहते हैं कि अक्सर ऐसा देखने में आ रहा है कि सपने हमने बड़े देख लिए होते हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए सही प्लान नहीं हाे पाता है. असफल रहने पर लाेग अवसाद में चले जाते हैं.
मनोचिकित्सक बताते हैं कि यह समस्या तब और बड़ी हो जाती है, जब घर में पति-पत्नी दोनों अपने-अपने सपनों काे पूरा करने के लिए प्रयास कर रहे होते हैं, ऐसे में उनके जो बच्चे हैं, वह सबसे ज्यादा अवसाद में चले जाते हैं, उन्होंने बताया कि ऐसे मामले उन घराें में सबसे ज्यादा सामने आ भी रहे हैं, जहां माता-पिता दोनों ही वर्किंग होते हैं.
बच्चों को समय देने से होते हैं बड़े बदलाव : मनोचिकित्सक बताते हैं मेडिकल कॉलेज में आने वाले मरीजों में ऐसे मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है, जिनके माता-पिता उन्हें समय ही नहीं दे रहे. ऐसे बच्चे अपने अंदर की भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते हैं. मनोचिकित्सक मानते हैं कि ऐसी हालत में धीरे-धीरे हीन भावना आने लगती है. इससे बच्चे अवसाद में चले जाते हैं.
डिजायर और ड्रीम अच्छी बात है, लेकिन इनके लिए अपने बच्चों के भविष्य के साथ न खेलें. जरूरी है कि वर्किंग के बाद नियमित रूप से अपने बच्चों को समय दें. जब भी अवकाश हो तो उनके साथ अधिक से अधिक समय गुजारें, उनके साथ खेलें, घूमने-फिरने जाएं, समय बिताएं. इससे बच्चों का जुड़ाव बना रहेगा, वह अपनी मन की बात भी बता देगा. ऐसा हाेने पर बच्चों की पर्सनेलिटी भी डेवलप होगी. ऐसे बच्चे भविष्य में किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए सक्षम होंगे.
कैसे पहचानें बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन :अकेले रहना, आस-पड़ोस के बच्चों के साथ न खेलना, स्कूल में व्यवहार में बदलाव आ जाना, इस बारे में स्कूल स्टाफ भी माता-पिता को बता सकता है, पढ़ाई में मन न लगना भी एक कारण हो सकता है, वहीं बात-बात पर गुस्सा करना, चिड़चिड़ा रहना, गुमसुम बैठे रहना, कम बात करना ये कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिनसे पेरेंट्स आसानी से अपने बच्चों की समस्या को पकड़ सकते हैं.