मेरठः जिले में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडीज और सर छोटू राम इंस्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के तत्वाधान में चल रहे वेबिनार का सोमवार को समापन हो गया. इस दौरान 'रामचरितमानस के आधार पर प्रबंधन कौशल एवं नेतृत्व के गुणों का विकास' विषय पर चर्चा हुई.
रामचरितमानस में मिलते हैं आधुनिक प्रबंधन के गुण - प्रो. रजनीश खरे - मेरठ न्यूज
मेरठ जिले के चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में चल रहे चार दिवसीय वेबिनार का सोमवार को समापन हो गया. इस वेबिनार में 'रामचरितमानस के आधार पर प्रबंधन कौशल एवं नेतृत्व के गुणों के विकास' पर चर्चा की गई.
आधुनिक प्रबंधन के सिद्धांत प्राचीनतम ग्रंथों में वर्णित
मुख्य वक्ता प्रो. रजनीश खरे ने रामचरितमानस की विभिन्न चौपाइयों के माध्यम से आज के आधुनिक प्रबंध शास्त्र के सिद्धांतों को समझाया. उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि आधुनिक प्रबंधन के सिद्धांत भारतीय प्राचीनतम ग्रंथ में वर्णित नायकों के जीवन चरित्र पर आधारित हैं. उन्होंने कहा कि श्रीराम ने अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए जिन गुणों का प्रदर्शन किया है, वही वास्तव में एक सफल नेतृत्व के मूलभूत आवश्यक तत्व हैं.
संकट के दौरान नेता को आना चाहिए सामने
प्रो. रजनीश खरे ने बताया कि जिस तरह श्रीराम ने हर नई जिम्मेदारी में अपने आपको साबित किया, ठीक उसी तरह आज हमें भी नए वातावरण में अपने आपको साबित करना होता है. रावण जहां युद्ध में अपने भाइयों, पुत्रों, भतीजे को अकेले ही भेजकर स्वयं महल में रहकर आदेश पारित करता था, वहीं राम ने स्वयं युद्ध क्षेत्र में रहकर अपने सेना नायकों का मनोबल बढ़ाया. जब बड़ा संकट आया तो कुंभकरण वध और रावण वध के लिए वह स्वयं सामने आए. आधुनिक प्रबंध सिद्धांत भी नेतृत्व के इस गुण को अपनाते हैं.
रामायण से लिया गया यह सिद्धांत
प्रो. खरे ने उदाहरण देते हुए बताया कि लीडर को कभी भी अपने से पहले अपनी टीम के लिए सुविधा या पारितोषिक प्राप्त करने की आवश्यकता का सिद्धांत रामायण से ही लिया गया है. जिस तरह रामचंद्र जी ने लंका विजय के बाद विभीषण को राज्य दे दिया. बाली वध के बाद किष्किंधा का राजा सुग्रीव को बना दिया. वह स्वयं जिस अवस्था में थे उसी अवस्था में रहे. उन्होंने श्रेय स्वयं ना लेकर के अपनी टीम के सदस्यों को दिया और यह सिद्धांत भी नेतृत्व के आधुनिक गुणों में आज सम्मिलित किया गया है.
बता दें कि यह वेबिनार चार दिनों तक चला और समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. वाई विमला ने किया. कार्यक्रम का संचालन प्रो. राजीव सिजरिया ने किया. लाइव प्रसारण में 15,000 से अधिक लोगों ने देखा. सोमवार को विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. रूपनारायण के साथ प्रो. वीरपाल सिंह मौजूद रहे.