जानिए साइबर ठगी से बचने का तरीका. मेरठ : यूपी समेत पूरे देश में साइबर ठगी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. आलम यह है कि जरा सी चूक होते ही साइबर अपराधी बैंक अकाउंट को खाली कर देते हैं. साइबर ठग भी अकाउंट में सेंध लगाने के लिए अपने तरीकों को बदलते रहते हैं. साइबर एक्सपर्ट आर्य त्यागी बताते हैं कि फ्रॉड करने वाले हर उस तरीके को अपनाते हैं, जिसका इस्तेमाल लोग रूटीन काम के लिए करते हैं.
आर्य त्यागी बताते हैं कि अब कोई भी अपना एक प्राइवेट लिंक बना सकता है. लिंक जेनरेट करना काफी आसान है. साइबर ठग ऐसे लिंक बनाते हैं, जिससे यूजर नेम, पासवर्ड और आईपी एड्रेस हासिल करना आसान है. जो भी उस लिंक को खोलेगा तो उसका यूजर नेम और पासवर्ड के साथ साथ आईपी एड्रेस भी साइबर ठग तक पहुंच जाएगा.
कैसे होते हैं फिशिंग लिंक : आर्य त्यागी के मुताबिक, फिशिंग लिंक आपको गेम खेलने, फोटो या वीडियो देखने के लिए ललचा सकते हैं. मगर लिंक पर क्लिक करते ही वह मोबाइल फोन, लैपटॉप या कंप्यूटर का सारा डेटा साइबर अपराधी को ट्रांसफर कर देता है. इसके बाद ठग आसानी से आपकी लोकेशन भी निकाल सकता है (Fishing link Fishing link will empty bank account ).
एक्सपर्ट मानते हैं कि एंड्रॉयड मोबाइल यूजर या फिर लैपटॉप या कम्प्यूटर सिस्टम का इस्तेमाल करने वाला इस तरह से होने वाले फ्रॉड से बच सकता है.
जब आप किसी भी लिंक को खोलते हैं तो अक्सर लोग उस पर ध्यान नहीं देते. क्लिक करने से पहले लिंक को बारीकी से पढ़ना जरूरी है. अगर किसी लिंक की शुरूआत https से शुरू होती है तो उस पर भरोसा किया जा सकता है. लिंक के ऊपर अगर एक लॉक दिखाई देता है तो माना जा सकता है कि वह सुरक्षित है. उसका ssl लिया हुआ है.
गौर से पढ़ें http:// और https:// का फर्क :
अक्सर आपने कई बार नोटिस किया भी होगा कि कुछ URL “http://” से शुरू होते हैं जबकि कुछ URL “https://” से . यह जानना बेहद जरूरी है कि जब आप बैंक, ऑनलाइन पेमेंट जैसी वेबसाइट ब्राउज़ करते हैं तो वहां आपको संवेदनशील इनफॉर्मेशन देने की आवश्यकता होती है, तो उन साइटों के URL में “https://” लगा होता है. आखिर यह “https://” यानी SSL क्या है, यही जानना भी जरूरी है.
बता दें कि “https://” का मतलब है Hypertext Transfer Protocol Secure यानी उस वेबसाइट से आपका कनेक्शन secure है और आपके द्वारा दर्ज किए गए किसी भी डेटा को सुरक्षित रूप से Encrypt किया गया है.
SSL यानी Secure Sockets Layer , यह इंटरनेट में इस्तेमाल किया जाने वाला एक encryption protocol है, जोकि किसी इंटरनेट उपयोगकर्ता को, किसी वेबसाइट में संवेदनशील जानकारी को सुरक्षित रूप से वेब सर्वर तक पहुंचाने में मदद करता है. इसकी अच्छी बात यह है कि इससे डाटा लीक भी नहीं हो पाता. SSL के इस्तेमाल से कोई हैकर किसी भी customer के डाटा को आसानी से चुरा नहीं सकता.
फिशिंग लिंक का इस्तेमाल होता है आजकल कुछ ऐसे ..
साइबर एक्सपर्ट आर्य बताते हैं कि फिशिंग लिंक को पहचानने का आसान तरीका यह है कि इनमें अधिकतर में लोगों को झांसा दिया जाता है कि उनके एकाउंट में पैसे भेजे गए हैं. फेसबुक ट्विटर पर फॉलोअर्स बढाने का झांसा देते हैं. इसके अलावा ट्विटर इंस्टाग्राम पर blue tick देने के लिए प्रलोभन दिया जाता है.
आर्य त्यागी बताते हैं कि कई बार तो बैंक से नोटिफिकेशन आता है कि आपके खाते में रुपये भेजे गए हैं, लिंक को open करके कृपया कन्फर्म कर दें, जबकि वह नम्बर किसी बैंक का वेरीफाइड नम्बर नहीं होता है. ऐसे में अगर कोई उस लिंक पर गया तो हो सकता है कि अपने रुपये खाते से रकम कम करा ले.
कैसे रहें सुरक्षित... : गूगल और यू ट्यूब पर भी फिशिंग वेबसाइट और लिंक से बचने की जानकारी मौजूद हैं . आप फिशिंग लिंक चेकर या वेबसाइट लिंक चेकर कीवर्ड डालकर इस बारे में पढ़ सकते हैं. ईटीवी भारत से एसपी क्राइम अनित कुमार ने बताया कि मेरठ में ठगी के मामले सामने आ रहे हैं. अधिकतर केस में पीड़ित को लिंक या पीडीएफ भेजकर साइबर ठगों ने अपना शिकार बनाया है. लिंक और पीडीएफ खोलते ही साइबर अपराधी बैंक अकाउंट खाली कर देते हैं. साइबर ठग लोगों को रिश्तेदार और परिचितों के नजदीकी बताकर भी ठगी कर रहे हैं. एसपी क्राइम अनित बताते हैं कि ऐसे में सतर्कता की जरूरत अज्ञात नंबर से व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर लिंक या फिर पीडीएफ अगर विश्वसनीय नहीं है तो बिल्कुल ना खोलें, अन्यथा आपका बैंक खाता खाली हो सकता है.