मेरठ : कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने कोरोना कर्फ्यू लगा रखा है. इस कारण आवश्यक सेवाओं को छोड़कर पूरा बाजार बंद है. होटल, रेस्टोरेंट और ढाबे भी बंद हैं, जिससे पॉल्ट्री उद्योग पूरी तरह प्रभावित हुआ है. आलम यह है कि फॉर्म में मुर्गे तैयार हैं और संचालक ग्राहक की राह देख रहे हैं. मुर्गे नहीं बिकने से पॉल्ट्री संचालकों के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा है. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए डॉक्टरों ने अंडे खाने की सलाह के बाद अंडे जरूर बिक रहे हैं.
होटल-रेस्टोरेंट बंद हैं तो चिकन की खपत कैसे होगी
कोविड-19 की दूसरी लहर में सभी होटल- रेस्टोरेंट बंद चल रहे हैं. जितनी बेसब्री से चिकन खाने के शौकीन होटल-ढाबे खुलने का इंतजार कर रहे हैं, उतना ही इंतजार मुर्गी व्यवसायियों को कर्फ्यू खत्म होने का है. मेरठ में पिछले करीब एक महीने से मुर्गी व्यवसाय बंद है. पिछले 15 साल से पॉल्ट्री फॉर्म में काम कर रहे कर्मचारी ने बताया कि 2020 में लगे लॉकडाउन में भी मुर्गी व्यवसाय प्रभावित हुआ था. तब चिकन की कीमत 20-25 रुपये किलो हो गई थी. 2021 में चिकन के दाम इतने कम नहीं हुए हैं, लेकिन होटल, रेस्टोरेंट और ढाबे नहीं खुलने से मुर्गों की खपत नहीं हो रही है. नतीजतन अभी कोई चिकन खरीदने को तैयार नहीं है. हालात यह है कि मुर्गियों दिए जा रहे दाने की लागत भी पूरी नहीं हो पा रही है. फॉर्म में जो कर्मचारी काम कर रहे है, उनकी सैलरी भी निकालना भी मुश्किल हो रहा है. पश्चमी उत्तर प्रदेश में मुर्गी व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगों का रोजगार संकट में है.
मुर्गे बिक नहीं रहे, मगर महंगा दाना तो रोज खा रहे हैं
पॉल्ट्री फॉर्म संचालक विकास खरबंदा ने बताया कि पिछले साल के लॉकडाउन में पॉल्ट्री इंडस्ट्री मंदी कगार पर पहुंच गई थी. लॉकडाउन में मुर्गी के दाने के दाम आसमान छू रहे हैं. मुर्गियों का दाना 50 फीसदी तक मंहगा हो गया है. पिछले साल तक जो दाना 25 रुपये प्रति किलो मिल रहा था, वह इस बार 40 से 45 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. उन्होंने सरकार से पॉल्ट्री फार्मर को सब्सिडी देने की मांग की . उनका कहना है कि 10 से 20 रुपये किलो के हिसाब से हो रहे इस नुकसान से पॉल्ट्री व्यवसायियों की लागत भी पूरी नहीं हो पा रही है.
बड़ी कंपनियों के आने से घटा छोटे व्यावसियों का कारोबार
विकास खरबंदा ने बताया कि पॉल्ट्री व्यवसाय में सरकार ने पॉलिसी के तहत इंटीग्रेशन की छूट दे दी है. इस कारण बड़ी-बड़ी कंपनियां इस व्यवसाय में निवेश कर रही है. वह चूजा भी खुद तैयार करे हैं. मुर्गियों का दाना भी खुद बना रहे हैं. तैयार मुर्गे भी खुद बेच रहे हैं. ऐसे में उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं हो रहा है. बड़ी कंपनियों के कारण छोटे उत्पादकों का बहुत नुकसान हो रहा है.