डॉ. धीरज सोनी और डॉ. अमित मलिक से दिल की बीमारी पर संवाददाता की खास बातचीत मेरठ: हार्ट बीट के अनियमित होने से मानव शरीर पर इसका सीधा असर पड़ता है. लगातार देखा भी जा रहा है कि बहुत तेज या बहुत धीमे अगर हमारी हार्ट बीट हो जाए तो यह लक्षण जानलेवा भी साबित हो सकती है. दरअसल, शरीर में दिल की धड़कन बनाने के लिए एक इलेक्ट्रिकल सिस्टम होता है. इस सिस्टम की खराबी से होने वाली बीमारी को मेडिकल भाषा में कार्डियक एरिदमिया यानी दिल से संबंधित बीमारी कहते हैं. अधिकतर एरिदमिया किसी भी व्यक्ति के कॉम्प्लिकेशन का कारण बन सकते हैं. उसी प्रकार कुछ स्ट्रोक या कार्डियक अरेस्ट मानव जीवन के जोखिम को भी बढ़ा सकते हैं.
इस बारे में ईटीवी भारत ने लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ़ कार्डियोलॉजी के HOD और सह - प्राध्यापक धीरज कुमार से बात की. उन्होंने बताया कि दिल के अंदर जो तरंगें होती हैं, अगर वह गड़बड़ा जाएं तो जो समस्या होती है, उसे कार्डिएक एरिदमिया कहते हैं. आम भाषा में कह सकते हैं कि दिल की धड़कन गड़बड़ा गई है या दिल की तरंगें गड़बड़ हो गई हैं.
जानलेवा भी हो सकता है एरिदमियाःवह कहते हैं कि हालांकि इसकी बहुत सी वैरायटी होती हैं. कुछ एरिदमिया हार्ट के लिए खतरनाक नहीं होते हैं, जबकि कुछ जिन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है वे जानलेवा भी हो सकते हैं. डॉ. धीरज सोनी के मुताबिक मेडिकल कॉलेज में पश्चिमी यूपी के काफी जिलों से मरीज आते हैं जो कार्डिएक एरिदमिया से ग्रसित होते हैं. ऐसे मरीजों का उपचार ओपीडी में दवाई देकर किया जाता है. जिनको अनुवांशिक बीमारियां होती हैं उनमें इसकी संभावना ज्यादा होती है.
ये दिखें लक्षण तो हो जाएं सतर्कःडॉक्टरों के मुताबिक एरिदमिया होने पर हम शरीर के संकेत से इसके बारे में महसूस कर सकते हैं. एरिदमिया के इन संकेतों के अलावा अगर सीने में दर्द, सांस लेने में परेशानी, बेहोशी, थकान, अत्यधिक पसीना आने जैसे लक्षण भी महसूस होते हैं, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. क्योंकि यह किसी गंभीर दिल की बीमारी की ओर संकेत करते हैं. रूटीन एक्टिविटी में सांस का फूलना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, इनको इग्नोर न करें. समय रहते जांच कराएं कि कहीं इस बीमारी के लक्षण तो नहीं हैं.
ये लक्षण भी हैं खतरनाकःधड़कन का मिस हो जाना, गर्दन या सीने में फड़फड़ाहट. धड़कन का बढ़ जाना, धड़कन का धीमा हो जाना. अनियमित धड़कन के अलावा एरिदमिया होने के कई शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और चिकित्सीय कारण भी हो सकते हैं. अगर हाई ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, एलर्जी, जुकाम, थायरॉइड डिसऑर्डर, स्लीप एपनिया, एनिमिया एक्सरसाइज, तनाव या चिंता, स्मोकिंग या ड्रिंकिंग, कुछ दवाओं का सेवन, हृदय रोग, इनको इग्नोर न करें समय रहते जांच कराएं.
इन लोगों को खास ध्यान रखने की जरूरतः मेडिकल कॉलेज के डॉ. धीरज सोनी बताते हैं कि ऐसे मरीज जिन्हें अपने दिल के बारे में पहले से पता है, जिनको अनुवांशिक बीमारियां हैं, HOC बीमारी से कोई ग्रसित है, दिल फैला हुआ है तो ऐसे मरीजों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि वे नियमित रूप से डॉक्टर्स की सलाह पर जांच अवश्य कराएं. डॉक्टर्स की मानें तो हर मरीज अपना इसीजी एवं इको अवश्य कराएं ताकि पता चलता रहे कि शरीर में कोई खतरा तो नहीं है.
समय-समय पर कराते रहें चेकअपःमैक्स हॉस्पिटल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमित मलिक के मुताबिक ज्यादातर एरिदमिया के एपिसोड थोड़े समय के अंतराल पर होते हैं. वह बताते हैं कि इसलिए सामान्य ईसीजी में भी कई बार इनका पता नहीं चलता. यदि किसी रोगी के लक्षण और प्रारम्भिक जांच में एरिदमिया की सम्भावना होती है तो उसकी दिल की धड़कन से सम्बंधित एडवांस जांच आवश्यक है. इसे कार्डियक एलेक्ट्रोफिजीयोलॉजि कहते हैं. इसमें छोटे कैथेटर की सहायता से दिल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम का कम्प्यूटर चेक अप किया जाता है.
नवीनतम तकनीक से मिल रहा फायदाः अमित मलिक के अनुसार पिछले सालों में कार्डियक एरिदमिया से सम्बंधित उपचार में काफी तरक्की हुई है. असामान्य रूप से धीमी दिल की धड़कन के इलाज के लिए प्रयोग होने वाले पेसमेकर में काफी टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट हुए हैं. एआइसीडी एक एडवांस पेसमेकर है जो इंटर्नल शॉक देकर सडन कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में आकस्मिक मृत्यु के खतरे को कम कर देता है. कुछ केस में असामान्य धड़कन को ठीक करने के लिए रेडीयो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन किया जाता है. यह लोकल एनेस्थीसिया में पैर की नस के द्वारा छोटे केथेटर की सहायता से किया जाता है, जिसमें मरीज को अगले दिन अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है.
फिजिकल एक्टिविटीज शरीर के लिए बेहद जरूरीः डॉ. अमित मलिक के अनुसार कार्डियक एरिदमिया के मामले कोरोना के बाद बढ़े हैं. कोरोना के बाद से देखा जा रहा है कि वर्किंग पैटर्न लोगों का बदल गया है. फिजिकल एक्टिविटी भी अब उतनी नहीं हो पा रही है. ऑनलाइन काम से भी जीवन प्रभावित हुआ है. खासकर आठ साल से 18 वर्ष के बीच के जो बच्चे हैं उन्होंने फिजिकल एक्टिविटीज पर ध्यान देना कम कर दिया है. ऐसे में जब हम अपने शरीर की क्षमताओं को नहीं समझेंगे तो फिर ये समस्या घेर सकती है.
कैसे होती है बीमारीःवह कहते हैं कि किसी तरह की एक्टिविटी जिसमें शरीर को मेहनत करनी है उसमें एक दम से अधिक परिश्रम करने से भी समस्या उतपन्न हो सकती है. जैसे अगर हम बिल्कुल एक्सरसाईज वगैरह नहीं करते हैं और मैराथन में भाग लेंगे तो इसका दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ेगा. ऐसे में हो सकता है कि ये कार्डियक एरिदमिया हो. हमें अपने शरीर की जांच कराकर यह जानना भी बेहद जरूरी है कि बीपी, कोलेस्ट्रॉल, शुगर, फैमिली की मेडिकल हिस्ट्री क्या है.
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