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खतौली उपचुनाव के बाद बसपा मुश्किल में, दलित वोटरों में बढ़ा चंद्रशेखर आजाद का कद

उत्तरप्रदेश के मैनपुरी, खतौली और रामपुर में हाल ही में हुए उपचुनावों में आजाद समाज पार्टी चीफ चंद्रशेखर के सपा-रालोद गठबंधन का हिस्सा बने. चंद्रशेखर ने सपा-रालोद के प्रत्याशियों के लिए प्रचार भी किया. नतीजा सामने है, खतौली में आरएलडी का परचम लहराया और मैनपुरी लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई. इस जीत के बाद अब वेस्टर्न यूपी में सियासी पारा गर्म है. जीत का थोड़ा श्रेय चंद्रशेखर को भी मिला. बीएसपी सुप्रीमो के शांत बैठने के कारण चंद्रशेखर के राजनीतिक कद में इजाफा भी हुआ (Khatauli byelection Chandrashekhar Azad).

Etv Bharat Chandrashekhar Azad captured Dalit voters
Etv Bharat Chandrashekhar Azad captured Dalit voters

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Published : Dec 21, 2022, 1:30 PM IST

Updated : Dec 21, 2022, 1:49 PM IST

आजाद समाज पार्टी चीफ चंद्रशेखर की बढ़ रही लोकप्रियता

मेरठ : पिछले दिनों हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में पहली बार आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने सपा और रालोद के उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार किया. वह सभाओं में समाजवादी पार्टी और रालोद के नेताओं के साथ मंच पर भी दिखे. विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर की अखिलेश यादव की गठबंधन से बात नहीं बनी थी. वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिज़वी का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के दरकिनार होने का फायदा सपा को नहीं बल्कि बीजेपी को ज्यादा मिला. तब राजनीतिक परिदृश्य में बीएसपी की कमी को चंद्रशेखर ने भुनाने की पूरी कोशिश की थी. अब खतौली उपचुनाव में आरएलडी की जीत और चंद्रशेखर के बढ़ते कद से बीएसपी का नुकसान तय है (BSP in trouble after Khatauli byelection).

उपचुनाव में बीएसपी की गैरमौजूदगी के कारण चंद्रशेखर आजाद ने मायवती के दलित वोटबैंक में सेंध लगा दी.
अब उपचुनाव हुए हैं. इस उपचुनाव में अखिलेश यादव ने अपने मजबूत साझेदार रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह को आगे करके सियासी पासा फेंका और चंद्रशेखर को अपने साथ ले लिया. चाहे रामपुर का चुनाव रहा हो, चाहे खतौली का चुनाव रहा हो और चाहे मैनपुरी का तीनों जगह ही प्रतिष्ठा की बात थी. ऐसे हाला में चंद्रशेखर बीएसपी के वोटरों को अपनी तरफ ले आए. शादाब रिजवी मानते हैं कि चंद्रशेखर की वजह से खतौली में गठबंधन सत्ताधारी दल बड़ा संदेश देने में कामयाब रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में माना जा रहा था कि मायावती को कमजोर मानकर दलितों ने बीजेपी को वोट किया था. अब जैसे ही मौका मिला तो चंद्रशेखर ने उन्हें अपने साथ खड़ा करने में कामयाबी हांसिल कर ली है. उन्होंने उपचुनाव के एक अन्य पहलू पर भी ध्यान खींचा, जिसका असर आजाद समाज पार्टी चीफ चंद्रशेखर के कद पर पड़ा. उपचुनाव में मायावती भी नहीं थीं, इसलिए दलितों वोटरों में यह भ्रम नहीं था कि वह कहां जाएं. चंद्रशेखर की अपील काम कर गई और बीजेपी को पश्चिम के खतौली की सीट को गंवाना पड़ गया.
उपचुनाव के दौरान चंद्रशेखर रामपुर, मैनपुरी और खतौली में सपा-आएलडी गठबंधन के लिए जमकर प्रचार किया था.
दलित युवाओं में लोकप्रिय हो रहे हैं चंद्रशेखर आजाद : पिछले दो तीन साल में यूपी में चंद्रशेखर खासतौर पर दलितों के लिए यूथ आइकॉन की तरह उभरे हैं. शादाब रिज़वी कहते हैं कि जैसे 2014 में महिलाओं और युवाओं के बीच भाजपा के पक्ष में माहौल बना था. कुछ वैसा ही माहौल इस बार वेस्ट यूपी में खतौली में देखने को मिला. खासकर दलित यूथ ने चंद्रशेखर को पसन्द किया. 2024 और 2027 में इसका दूरगामी असर दिख सकता है. अब उपचुनाव के बाद बहुजन समाज पार्टी की सक्रियता बढ़ी है. उनकी पार्टी के तमाम फ्रंट अब सक्रिय हो गए हैं. मगर चंद्रशेखर का सपा गठबंधन के साथ आ जाना और दलित वोटरों का खिसकना बसपा के लिए बेहद ही नुकसानदायक स्थिति है. बीएसपी का विकल्प बनने की तैयारी : वर्तमान में बहुजन समाज पार्टी मुसलामानों और दलितों को अपने साथ लाना चाहती है, मगर चंद्रशेखर की वजह से बीएसपी को समस्या हो सकती है. अगर चंद्रशेखर अपनी रणनीति में सफल होते हैं तो बीएसपी का नुकसान तय है. बीएसपी के पास अभी दलित वोट बैंक हैं, उसे सिर्फ अपने समीकरण में मुस्लिमों को जोड़ना है. हालांकि शादाब रिजवी मानते हैं कि वेस्टर्न यूपी के अधिकतर मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ है. ऐसे में इस गठबंधन को चंद्रशेखर आजाद मिल जाते हैं तो इनके लिए यह माना जाता है कि उसे बसपा को घेरने और भाजपा के सामने खड़ा होने का मिल सकता है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरि शंकर जोशी का कहना है कि यूपी दलित वर्ग और उसमें भी विशेष तौर पर जाटव मतदाता मायावती का हार्डकोर वोटर रहा है. अब मायावती की राजनीतिक शिथलता और चुप्पी से उनका बीएसपी की राजनीति से मोहभंग होता नजर आ रहा है. कई बार ऐसा लगता है कि अगर मायावती उसे खो देंगी तो शून्य में पहुंच जाएंगी. ऐसा लगता है कि मायावती ने सक्रिय राजनीति में भागीदारी से संन्यास ले लिया है. बहरहाल ऐसे में उनका कोर वोटर विकल्प तलाश रहा है. अगर वह विकल्प चन्द्रशेखर में मिलता है तो चंद्रशेखर की ताकत बढ़ेगी.
Last Updated : Dec 21, 2022, 1:49 PM IST

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