मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में मौजूद जानकारी मेरठःदेश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अनगिनत शूरवीर योद्धा हुए हैं. जिन्होंने अंग्रेजों की न सिर्फ नाक में दम कर दिया था बल्कि गुलामी की जंजीरों से देश को मुक्त कराने को अपने प्राणों की आहुति तक भी देने में गुरेज नहीं की. आज हम आपको एक ऐसे ही वीर योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन पर 1858 में ब्रिटिश हुकूमत को 1 लाख रुपये का ईनाम घोषित करना पड़ा था.
अंग्रेजी हुकूमत की जुल्म और ज्यादतियों से तंग आकर देश में क्रांतिकारी विचारधारा का उदय लोगों में होने लगा था. 1857 में क्रांति की चिंगारी देश में सुलगने लगी थी. उस दौर की बात हो और नाना साहेब पेशवा का जिक्र न हो यह हो ही नहीं सकता. नाना साहेब पेशवा देश के लिए नायक और अंग्रेजों के लिए किसी विलेन से कम नहीं थे.
संग्रहालय में मौजूद है नाना साहब पेशवा से जुड़ी जानकारीःनाना साहेब पेशवा का मुकाबला अंग्रेज जब नहीं कर पा रहे थे तो उन पर एक लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. क्रान्तिधरा मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में इस बारे में तमाम जानकारी मौजूद है, जिसे पढ़कर और जानकर किसी भी भारतवासी का गौरवान्वित होना स्वाभाविक है.
अंग्रेजों के लिए हमेशा बड़ी चुनौती रहेः 1857 की शुरुआत मेरठ से हुई थी, इसी लिए मेरठ को क्रांतिधरा कहा जाता है. यहां के संग्रहालय में दीवार बोलती हैं और नाना साहेब पेशवा के बारे में भी यहां तमाम वर्णन है. क्रांति का बिगुल 1857 में कानपुर में भी बजा. अंग्रेजों के पांव नाना साहेब पेशवा ने उखाड़ दिए थे. आक्रोश इस कदर था कि ब्रिटिश हुकूमत के लिए नाना साहब पेशवा एक बड़ी चुनौती बन गए.
महाराष्ट्र में जन्मे थे नानाः ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार विघ्नेश त्यागी ने बताया कि 1857 की क्रांति के नायक नाना साहब पेशवा धूंधूपंत का जन्म 1824 में महाराष्ट्र के गांव वेणु में हुआ था. पिता माधव नारायण राव व माता गंगा बाई के इस पुत्र की उम्र जब महज ढाई वर्ष थी , तभी 7 जून 1827 में बाजीराव पेशवा द्वितीय ने उन्हें गोद लिया था.वर्ष 1851 में पेशवा बाजीराव की मृत्यु के बाद नाना साहब ने गद्दी संभाली और वर्ष 1857 में क्रांति के जरिए अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए मजबूत रणनीति बनाते हुए चुनौती दे डाली थी. विघ्नेश त्यागी ने बताया कि नाना साहेब की युद्ध नीति व कौशल के कारण अंग्रेजी सेना उन्हें कभी पकड़ नहीं पाई. क्योंकि वह एक दीप बनकर जिए, हमें गुलामी से मुक्त होना है यह सपना जगाकर जिए.
कानपुर के बिठूर में गंगा किनारे था महलः संग्रहालय के अधीक्षक पतरु मौर्य ने बताया कि संग्रहालय में दर्शाया गया है कि 1857 की क्रांति में नाना साहब का विशेष योगदान रहा. उन्होंने बताया कि नाना साहब पेशवा की अंग्रेजी शासन के खिलाफ जो अगवानी करते थे वह कानपुर का गंगा किनारे का बिठूर था. अंग्रेजों को उन्होंने इतना नुकसान कर दिया था कि वह बेबस लाचार हो गए थे. नाना साहब ने तांत्या टोपे और अजीमुल्ला खां के साथ मिलकर अंग्रेजों को नाक में दम कर दिया था. गौरतलब है कि नाना साहब के प्रमुख सिपहसलार तात्या टोपे थे तो वहीं अजीमुल्ला खां नाना साहब के प्रमुख रणनीतिकार थे.
गुरिल्ला वार में माहिर थे नानाःपतरु मौर्य के मुताबिक 28 अगस्त 1857 को नाना साहेब पर ब्रिटिश गवर्नमेंट ने 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया, लेकिन तब भी अंग्रेज उन तक नहीं पहुंच सके. इसके बाद 6 माह के बाद अंग्रेजों ने 28 फरवरी 1858 को 50 हजार रुपये की ईनाम की राशि को बढ़ाकर दोगुना यानी एक लाख रुपये कर दिया था. पतरु मौर्य बताते हैं कि नाना साहब पेशवा गुरिल्ला युद्ध करते थे. अंग्रेजों के किसी भी तरह से पकड़ में नहीं आ रहे थे. जो ईस्ट इंडिया कम्पनी देश पर अपनी हुकूमत चला रही थी वह कानपुर में असफल हो रही थी. इसीलिए उन्होंने षड्यंत्र के तहत ईनाम रखकर कोशिश की थी कि लालच में आकर कोई नाना साहब पेशवा को पकड़वा दे, लेकिन ऐसा कभी हो ही नहीं पाया. पतरु मौर्य नाना साहब के बारे में इतनी ही जानकारी उपलब्ध है कि वह अपने साथियों के साथ नेपाल की तराइयों में चले गए और उसके बाद कभी अंग्रेज उन्हें पकड़ ही नहीं सके.
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