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Western UP Politics: बीजेपी को रोकने की कोशिश कर रहे गठबंधन की इस पार्टी को पश्चिमी यूपी में क्यों सता रहा डर?

भारतीय जनता पार्टी को 2024 लोकसभा चुनाव में रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल पश्चिमी यूपी के जाटलैंड को चुनौती को मानकर तैयारी कर रहे हैं.

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Published : Mar 9, 2023, 9:54 PM IST

Meerut News
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राजनीतिक विशेषज्ञों से जानिए पश्चिमी यूपी की राजनीति के समीकरण.

मेरठ: भारतीय जनता पार्टी चुनावु को लेकर अलग-अलग जनपदों में मंत्रियों को प्रभारी बनाकर जिम्मेदारी भी दी है. समाजवादी पार्टी ने भी हाल ही में एक टीम की घोषणा की है. जो वेस्टर्न यूपी राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है. इसके क्या मायने हैं, इसी पर पेश है यह ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

यूपी में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन में हैं. इसी बीच चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की पार्टी भी इस गठबंधन में आ गई है. लेकिन यह साथ कहां तक है अभी यह कहना जल्दबाजी होगा. जहां तक समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की मजबूती की बात है तो यह तो साबित हो चुका है कि यह पश्चिमी यूपी में बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं. ऐसा हाल ही में हुए उपचुनाव में देखने को मिला है.


गठबंधन के बावजूद सपा बढा रही अपना जनाधारःखासतौर से जाटलैंड में अपनी अलग मजबूत पकड़ के लिए पहचान रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल का प्रभाव पश्चिमी यूपी के कुछ जनपदों में खासतौर से माना जाता है. लेकिन यहां समाजवादी पार्टी खुद को मजबूत करने की कोशिश में लगी हुई है. राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन के बाद भी समाजवादी पार्टी अपनी अलग से मजबूती पेश कर रही है. समाजवादी पार्टी अपने कुनबे को भी जाटलैंड में बढ़ा रही है. इस कुनबे में अखिलेश यादव ने विशेष जाति के नेताओं को जिम्मेदारियां भी सौंपी है.


राष्ट्रीय लोकदल और सपा कभी रहे साथ तो कभी हुए जुदाःराजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी बताते हैं कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में अगर भूतकाल में भी देखें तो पहले से भी आपस में अच्छे रिश्ते रहे हैं. हालांकि कई बार ऐसा भी हुआ है कि इन दलों में दूरियां भी बढ़ी हैं. यही वजह है कि पूर्व में राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर यह दोनों दल निकट साथ आते रहे हैं और दूर भी होते रहे हैं.

जाटों को पहली बार सपा ने दी बड़ी जिम्मेदारीःहरिशंकर जोशी कहते हैं कि अभी हाल ही में देखा गया है कि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से आए पूर्व सांसद और 4 बार के विधायक रहे हरेंद्र मलिक को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया है. इतना ही नहीं कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें खासतौर से पार्टी ने जाटलैंड में बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी है. जबकि सपा के साथ राजेंद्र चौधरी तो पहले से ही जुड़े रहे हैं. लेकिन हाल ही में अखिलेश यादव द्वारा लिया गया निर्णय के बाद समाजवादी पार्टी को कहीं ना कहीं कोई गठबंधन में आशंका है. गठबंधन के सहयोगी को लेकर समाजवादी पार्टी जाटलैंड में अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रही है.


सपा को कमजोरी का एहसासःहरिशंकर जोशी का कहना है कि समाजवादी पार्टी के नेताओं को शायद कहीं ना कहीं यह डर सता रहा है कि लोकसभा चुनाव आते-आते उनका सहयोगी दल पाला न बदल ले. कोई अपना नया सहयोगी ना खोज ले. इस वजह से समाजवादी पार्टी अपनी जड़ मजबूत करने की कोशिश में लगी है. इसलिए सपा ने पार्टी में जाटों को तरजीह देनी शुरू की है. जाटों सेअखिलेश यादव कहीं न कहीं अपने को कमजोर मानकर चल रहे हैं. उनका कहना है कि राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बीते साल हुए विधान सभा चुनावों में पूरी ईमानदारी से गठबंधन धर्म का निर्वहन किया था. इसलिए रालोद के साथ सपा की स्थिति निश्चित तौर पर मजबूत हुई है.


जाटलैंड में समाजवादी पार्टी से मजबूत है रालोदःराजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि राष्ट्रीय लोकदल के प्रभाव वाले जिलों में अगर राष्ट्रीय लोकदल को एक तरफ कर दें तो अखिलेश यादव पर कुछ बचता नहीं है. वह यह मतदाताओं का कॉम्बिनेशन भी गहराई से समझाते हैं. इसलिए सपा जाटलैंड में अकेले काफी कमजोर है. वह बताते हैं कि जाटलैंड में यादव बाहुल्य सीट बहुत कम है. यहां दलित और मुस्लिम का कॉन्बिनेशन चलता है. यहां पर जाट, मुस्लिम और दलित किसी भी प्रत्याशी की जीत तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.



पश्चिमी यूपी में जाटलैंड का बोलबालाःराजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि खासकर पश्चिमी यूपी में जाटलैंड जिस क्षेत्र को बोला जाता है, यहां जाट ही राजनीति में दिशा तय करता है. इस वक्त अगर देखें तो बीजेपी और गठबंधन के बीच एक दूसरे के तरफ जाटों को खींचने वाली स्थिति बनी हुई है. जाटलैंड की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल है. लेकिन यहां उसके अतिरिक्त चाहे बीजेपी हो या फिर अन्य गठबंधन की पार्टी सपा यहां अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए प्रयासरत है.


हिंदू मुस्लिम के बीच बनी खाई को रालोद ने पाटाःशादाब रिजवी कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद रालोद रसातल की तरफ चली गई थी. लेकिन पार्टी के नेताओं ने बड़ी ही सूझबूझ से इस खाई को पाटा है. इससे पार्टी को निश्चित तौर पर फायदा भी हुआ है. आज पार्टी की जो मजबूत स्थिति है, वह कहीं न कहीं जाट समीकरण से ही है.

बीजेपी की मजबूती भी जाटों का साथःशादाब रिजवी का कहते हैं कि बीजेपी की मजबूती के आधार भी जाट ही हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष जाट को बनाया है. पश्चिमी यूपी के अध्यक्ष के तौर पर भी जाट नेता को ही तरजीह दी है. अब गठबंधन की पार्टी सपा भी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़कर जाटों को तरजीह दे रही है. जाटों को साथ जोड़कर सपा भी अपना जनाधार मजबूत करने में लगी है. वह कहते हैं कि यही वजह है कि पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. उनके बेटे पंकज मलिक वर्तमान में पार्टी के विधायक हैं. शादाब रिजवी कहते हैं कि यह सब 2024 को लेकर है. जहां रालोद खुद भी मजबूत होती जा रही है. वहीं सपा भी जाटों को जोड़ने के लिए प्रयासरत है. लेकिन 2024 आते-आते यहां बड़ा बदलाव देखने को तमाम दलों को मिलेंगे.

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