मेरठ :समाजवादी पार्टी ने जाटलैंड में आरएलडी बाहुल्य जिले मुजफ्फरनगर में अपना लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बना दिया है. यह निर्णय पार्टी ने तब लिया जब इस जिले में रालोद मजबूत स्थिति में है. हालांकि यहां के सांसद बीजेपी के मंत्री संजीव बालियान हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस निर्णय के बाद सहयोगी दल रालोद मौन है. मुजफ्फरनगर से अचानक सपा मुखिया का मोह बढ़ने पर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया है. अपने गठबंधन के साथी RLD के गढ़ में सपा के इस सियासी दांव पर राजनीतिक विश्लेषकों ने खुलकर अपनी बात रखी.
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ का कहना है कि इससे हम पर क्या फर्क पड़ता है, उनकी अपनी पार्टी है जो उन्हें उचित लगा होगा, वह निर्णय उन्होंने लिया होगा. हम किसी से कमजोर नहीं हैं. हम गठबंधन धर्म निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बेशक हम मुजफ्फरनगर में मजबूत स्थिति में हैं. आने वाले समय में भी हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्णय लेंगे उस आधार पर आगे बढ़ेंगे. रोहित जाखड़ कहते हैं कि यूपी वेस्ट में कौन कितने पानी में है ये किसी से छुपा नहीं है. हम गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, साथ ही यह भी चाहते हैं कि कांग्रेस भी साथ हो.
अखिलेश यादव के निर्णय से रालोद असहज : 2022 में विधानसभा चुनावों से पहले भी समाजवादी पार्टी ने अपने गठबंधन के साथी 'रालोद' से बिना पूछे कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. ऐसा ही कुछ समय पूर्व हुए नगर निकाय चुनाव में भी देखने को मिला था. मेयर के चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने मेयर की सभी 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. अब मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को सपा ने लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बना दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि संगठन को मजबूत करने की हर दल की अपनी अपनी कोशिश जारी है. वह कहते हैं कि अभी तो गठबंधन को लेकर कोशिशें हो रहीं हैं कि बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी गठबंधन होगा. शादाब रिजवी कहते हैं कि वेस्ट यूपी की बात करें तो सबसे जो मजबूत गठबंधन है वह समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का ही है. समाजवादी पार्टी अलग से प्रभारी तैनात कर बूथ को मजबूत कर रही है. जयंत चौधरी गांव-गांव घूम रहे हैं, वह भी पंद्रह सौ गांवों तक पहुंचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. जितनी भी कवायद है विपक्षी नेताओं के द्वारा इसलिए है कि वह बूथ से लेकर लोकसभा तक बेहद मजबूत हो जाएं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि पिछला चुनाव समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने गठबंधन में लड़ा था. अभी भी कहा यही जा रहा है कि रालोद और सपा एक साथ हैं. अगला चुनाव दोनों पार्टियां गठबंधन में लड़ेंगी. वह कहते हैं कि शायद समाजवादी पार्टी को अंदेशा है कि उनके सहयोगी दल रालोद के मुखिया कुछ और भी विकल्प के बारे में सोच सकते हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव की आदत है कि वे दवाब की राजनीति करते हैं और दबाव बनाते हैं, एकतरफा निर्णय लेते हैं.
आप से अखिलेश की बढ़ी नजदीकी :वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि जयंत की कांग्रेस से नजदीकियां भी दिखाई देती हैं. यही वजह है कि यूपी से अकेले जयंत ऐसे नेता थे जो कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद की शपथ के दौरान वहां पहुंचे थे. सपा की सियासी रणनीति पर वह बताते हैं कि पिछले दिनों देखा गया था कि अध्यादेश के मामले में आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. जबकि आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने मिलने का समय भी नहीं दिया था.