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हजारों मील की यात्रा कर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत

बता दें कि मेरठ के हस्तिनापुर में वन्यजीव विहार सेंचुरी क्षेत्र काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है. इस क्षेत्र से गुजर रही गंगा नदी के आसपास हर साल विदेशी मेहमान भारी संख्या में पहुंचते हैं.

हजारों मील की यात्राकर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत
हजारों मील की यात्राकर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत

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Published : Oct 22, 2021, 6:12 PM IST

मेरठ :मौसम से गर्माहट गायब होने के साथ ही हर दिन इसमें तब्दीली हो रही है. ठंड ने दस्तक दे दी है. ऐसे में परदेशी पक्षियों ने भी एक बार फिर भारत की ओर रुख करना शुरू कर दिया है. मेरठ के हस्तिनापुर सेंचुरी क्षेत्र में भी अब ये विदेशी मेहमान आने शुरू हो गए हैं.

हजारों मील की यात्राकर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे मेरठ के अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत

साइबेरिया व अन्य देशों से बड़ी संख्या में विदेशी पक्षी भोजन की तलाश में गंगा किनारे पहुंचते हैं. ये पक्षी अब कई महीनों तक देश में ही रहेंगे. ये मुख्यरूप से गंगा के तटीय इलाकों व वहां के आसपास के खादर क्षेत्र में देखे जाते हैं. इनमें मेरठ के हस्तिनापुर से लेकर प्रयागराज और वाराणसी समेत अन्य प्रमुख जिलों में इनकी आमद होती है.

हजारों मील की यात्राकर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत

बता दें कि मेरठ के हस्तिनापुर में वन्यजीव विहार सेंचुरी क्षेत्र काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है. इस क्षेत्र से गुजर रही गंगा नदी के आसपास हर साल विदेशी मेहमान भारी संख्या में पहुंचते हैं.

हजारों मील की यात्राकर परदेशी परिंदे पहुंचने लगे हस्तिनापुर अभ्यारण्य, जानें क्या है इन पक्षियों की खासियत

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दूसरे देशों से उड़ान भरकर यहां काफी संख्या में अलग-अलग अनोखे परिंदे आते हैं जिन्हें यहां खूब अठखेलियां करते देखा जा सकता है. विशेष तौर से सारस, क्रेन, शॉक्लर, बार हेडेड गिद्ध, रीवर टर्न, ब्रह्मी डक सहित किंगफिशर, कॉमन टेल, कॉम्ब बतख जैसे दर्जनों प्रजाति के विदेशी पक्षी बड़ी संख्या में यहां पूर्व में पहुंचते रहे हैं. इनमें से अधिकतर प्रजाति के पक्षी अब यहां आ भी चुके हैं.

जिम्मेदारों की मानें तो 20 से 25 प्रजाति यहां हर साल पहुंचती हैं. अक्टूबर माह से इनके आने का सिलसिला शुरू होता है. ये तकरीबन मार्च के पहले सप्ताह तक यहीं रहते हैं. इसके बाद अपने वतन लौट जाते हैं. ठीक उन्हीं रास्तों से जिन रास्तों से ये पक्षी आते हैं. जैसे-जैसे ठंड व मौसम में ठिठुरन बढ़ने लगती है, अपने-अपने मुल्क को छोड़कर ये परिन्दे देश में अपना अस्थाई आशियाना ढूंढने चले आते हैं .

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