1857 की क्रांति के बारे में बताते इतिहासकार ए के गांधी मेरठः1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ से आज ही के दिन यानी 10 मई को हुई थी. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाने की गौरव गाथा मेरठ की स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में सिलसिलेवार ढंग से संरक्षित की गई हैं. 1857 की क्रांति से लेकर देश के आजाद होने तक इस संग्राहलय में वो सारे सबूत मौजूद हैं कि कैसे 85 सैनिकों के विद्रोह से क्रांति की चिंगारी ज्वाला बन गई. चर्बी लगे कारतूसों का विरोध कैसे अंग्रेजी हुकूमत के गले की फांस बन गया.
इतिहासकार ए के गांधी बताते हैं कि जानवरों की चर्बी से बने कारतूस चलाने के लिए भारतीय हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों ने इनकार कर दिया था. चर्बी लगे कारतूसों का विरोध करने पर सभी 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर उन्हें 10 साल की सजा सुनाकर अपमानित किया गया. उनकी वर्दियां बदन से नोंचकर फाड़ दी गईं. इसके बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार करते हुए 50 से ज्यादा अंग्रेजों की हत्या कर डाली.
मेरठ क्रांति के प्रमुख स्थान अंग्रेजी हूकुमत को नींव हिल गईःए के गांधी ने बताया कि 10 मई 1857 को गर्मी की वजह से अंग्रेज अधिकारियों ने सुबह की बजाय शाम को चर्च जाने का फैसला किया था. शाम करीब साढ़े पांच बजे क्रांतिकारियों और भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिक और अधिकारियों पर हमला बोल दिया था. इसमें मेरठ के कई इलाके जैसे सदर, लालकुर्ती, रजबन और आदि क्षेत्र में 50 से अधिक अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया.
उसके बाद धीरे धीरे इस विद्रोह की गूंज मेरठ से सटे जिलों और फिर पड़ोसी राज्यों तक पहुंच गई. देखते ही देखते पंजाब, राजस्थान, बिहार, असम, तमिलनाडु और केरल तक यह खबर आग की तरह फैल गई. 10 मई की शाम को विद्रोह का बिगुल फूंक चुके सिपाहियों ने कोर्ट मार्शल की सजा काट रहे सभी 85 सैनिकों को विक्टोरिया पार्क जेल से रिहा करा लिया. तब मेरठ में तीन रेजीमेंट थे. उन तीनों के सिपाही विभिन्न टोलियों में बंटकर दिल्ली की तरफ को कूच कर गए.
मंगल पांडे को दी गई थी फांसीःइतिहासकार विघ्नेश त्यागी बताते हैं कि 11 मई को मेरठ की देसी पलटनें साज सज्जा और जोश के साथ यमुना पुल पार करती देखी गईं. उधर, बहादुर शाह जफर ने ब्रिटिश शास्त्रागार पर कब्जे के लिए सैनिकों की टुकड़ी को रवाना कर दिया था. इस दिन को अंग्रेजी अफसरों ने तब सैनिक विद्रोह का नाम दिया था. रिटायर्ड आईएएस प्रभात रॉय बताते हैं कि 31 मई 1857 को फौजी विद्रोह के लिए निश्चित किया गया था. लेकिन, तब बैरकपुर छावनी में 34वीं पैदल सेना के सिपाही मंगल पांडे को यह तारीख बहुत दूर लग रही थी. इसके बाद मंगल पांडेय अपने आप पर काबू न कर सके और उन्होंने 2 अंग्रेज सैनिकों को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार डाला. इसके बाद कोर्ट मार्शल कर मंगल पांडे को फांसी दे दी गई थी.
पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम ने भी किया था दौराः राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के प्रभारी केयरटेकर हरिओम शुक्ला ने बताया कि मेरठ राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आ चुके हैं. प्रदेश की गवर्नर आनन्दीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम भी यहां आकर शहीदों को नमन कर चुके हैं. संग्रहालय में क्रांति की शुरुआत से लेकर आजादी तक के तमाम वृतांत दर्शाये गये हैं.
प्रथम गैलरी में मेरठ की घटनाओं का वर्णन है. जबकि दूसरी गैलरी में मेरठ के आसपास के जिलों में उस वक्त इस क्रांति की शुरुआत कैसे हुई थी. इसके बारे में बताया गया था. तीसरी गैलरी में दिल्ली, कानपुर और अवध की घटनाओं को दिखाया गया है. जबकि चौथी गैलरी में बुंदेलखंड, रूहेलखंड और पूर्वांचल की घटनाओं का वर्णन है. पांचवीं गैलरी में स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बताया गया है. हालांकि मेरठ का शाहिद स्मारक, कालिपल्टन मन्दिर, विक्टोरिया पार्क समेत कई ऐसे स्थान हैं, जो 1857 कि क्रांति की गवाह हैं.
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