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मेरठ: 24 घंटे में ब्लैक फंगस के 12 नए मामले, 2 मरीजों की मौत...जानिए विशेषज्ञों की राय

मेरठ में ब्लैक फंस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. यहां बीते 24 घंटे में ब्लैक फंगस के 12 नए मरीज मिले हैं. इसके साथ ही 2 मरीजों की मौत हो गई है. जिले में ब्लैक फंगस के अब तक कुल 78 मामले सामने आ चुके हैं.

सीएमओ ऑफिस मेरठ
सीएमओ ऑफिस मेरठ

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Published : May 21, 2021, 3:06 PM IST

मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ब्लैक फंगस लगातार पैर पसारता जा रहा है. आए दिन यहां ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. मेरठ में ब्लैक फंगस के मरीज सबसे ज्यादा मिल रहे हैं. शुक्रवार सुबह आई रिपोर्ट के अनुसार जिले में ब्लैक फंगस के 12 नए मरीज मिले हैं. जिसके बाद जिले में मिले ब्लैक फंगस के कुल मामलों की संख्या 78 पहुंच गई है. वहीं पिछले 24 घंटे में 2 मरीजों की मौत होने के बाद जिले में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 7 हो गई है.

मेरठ मेडिकल कॉलेज में बनाया गया स्पेशल वार्ड

कोविड संक्रमण के साथ इतने पड़े पैमाने पर ब्लैक फंगस के मरीजों के मिलने से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. डॉक्टरों के मुताबिक कोविड मरीजों या इससे रिकवर हुए लोगों को ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ज्यादा ले रहा है. मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने मेरठ मेडिकल कॉलेज में एक स्पेशल वार्ड तैयार किया है.

मेरठ में लगातार बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मरीज
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के मुकाबले मेरठ में स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहतर इंतजाम है. जिसके कारण आसपास के जनपदों से ज्यादातर मरीज मेरठ मेडिकल कॉलेज और यहां के प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती किए जाते हैं. कोरोना संक्रमण के बीच ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमायकॉसिस ने कोरोना संक्रमित मरीजों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है. दिल्ली-महाराष्ट्र के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा ब्लैक फंगस के मरीजों की पुष्टि हो रही है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के ज्यादातर मरीज मेरठ के अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं. जबकि 6-7 मरीजों के परिजन उन्हें इलाज के लिए दिल्ली ले गए हैं.

पश्चिमी यूपी के अन्य जिलों में भी मिल रहे ब्लैक फंगस के मरीज
सीएमओ डॉ. अखिलेश मोहन ने बताया कि जिले के मेडिकल कॉलेज और बड़े अस्पतालों में बनाये गए कोविड वार्ड में ब्लैक फंगस के मरीजों की पुष्टि हो रही है. जिले में अब तक 78 मरीज मिल चुके हैं, जबकि 7 की मौत हो चुकी है. सीएमओ के मुताबिक मेरठ में भर्ती ज्यादातर ब्लैक फंगस के मरीज आसपास के जनपदों से आए हुए हैं. ब्लैक फंगस से बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग ने गाइडलाइन जारी की हुई है. सीएमओ के मुताबिक ज्यादातर मरीज ऐसे हैं जो कोरोना पॉजिटिव हैं या फिर हाल ही में इस बीमारी के चपेट में आ चुके हैं और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ी थी. नॉन कोविड मरीज बहुत कम हैं.

ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा की कमी

मेरठ मेडिकल कॉलेज में कोविड अस्पताल प्रभारी डॉ. धीरज बालियान ने बताया कि ब्लैक फंगस से जिन दो मरीजों की मौत हुई है, उनमें एक मुजफ्फरनगर का रहने वाला था, जबकि दूसरी महिला मेरठ की थी. मेडिकल कॉलेज में अभी ब्लैक फंगस के 22 मरीज भर्ती हैं. जबकि बाकी मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहें हैं. डॉ. धीरज बालियान के मुताबिक ब्लैक फंगस के मरीज को 14 दिन तक 20-20 मिलीग्राम की एक-एक डोज लगाई जाती है. मेरठ मेडिकल कॉलेज में फिलहाल केवल 66 इंजेक्शन ही उपलब्ध हैं. लिहाजा जिस रफ्तार से ब्लैक फंगस के मरीज बढ़ रहे हैं उस हिसाब से इंजेक्शनों की जरूरत पड़ेगी.

ब्लैक फंगस पर जानिए विशेषज्ञ की राय
डॉ. अंकुर उपाध्याय ने बताया कि जिन लोगों को कोविड-19 के कारण लंबे समय तक आईसीयू वार्ड में ऑक्सीजन पर रखकर स्टेरॉयड जैसे डेक्सामेथासोन, मिथाइलप्रेडनीसोलोन आदि दी गई है. ऐसे मरीजों के लिए ब्लैक फंगस होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. इसके अलावा डायबिटीज, कैंसर और किडनी जैसी गंभीर बीमारियों के मरीजों में भी ब्लैक फंगस हो सकता है. इसलिए कोरोना होने पर बिना डॉक्टर की सलाह के स्टेरॉयड नहीं लेनी चाहिए. देखा जा रहा है कि कुछ लोग कोरोना के लक्षण दिखते ही स्टेरॉयड शुरू कर रहे हैं, जो मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं. जबकि डॉक्टर इन दवाओं को अपनी देखरेख में 5 से 10 दिनों के लिए देते हैं. कोरोना के हर मरीज को स्टेरॉयड लेने की जरूरत नहीं होती है. खांसी, नजला-जुकाम और बुखार होने पर मरीज को डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

ब्लैक फंगस के लक्षण
शुरुआती लक्षणों में ब्लैक फंगस का फंगल इंफेक्शन होने पर गाल की हड्डी में एक तरफ या दोनों तरफ दर्द हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे फंगल इंफेक्शन किसी व्यक्ति के शरीर मे घुसता है तो ज्यादातर मामलों में मरीज की आंखों को सबसे पहले प्रभावित करता है. जिससे आंखों में लाली और सूजन आ जाती है. इसके साथ ही मरीज के आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है. धीरे-धीरे यह फंगल इंफेक्शन मरीज के दिमाग तक पहुंचकर मस्तिष्क को भी नुकसान पंहुचा देता है.

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