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कोरोना ने छीनी पावरलूम की खटर-पटर, मऊ के बुनकरों को मदद की दरकार

कोरोना के कारण हर वर्ग आर्थिक तंगी का दंश झेल रहा है. मऊ जिले के बुनकरों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट आन पड़ा है. कोरोना लॉकडाउन में बुनकरों की कमाई का जरिया भी बंद हो गया है. ऐसे में इन्हें मदद की दरकार है.

आर्थिक तंगी से परेशान बुनकर
आर्थिक तंगी से परेशान बुनकर

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Published : Oct 24, 2020, 4:39 PM IST

मऊ:जनपद मऊ की पहचान बुनकरों से है. यहां की गलियों में 24 घण्टे पावरलूम की खटर-पटर की आवाज गूंजती रहती है, लेकिन यह आवाज लॉकडाउन में पूरी तरह शान्त हो गई थी. कोरोना लॉकडाउन के कारण बुनकरों की कमाई का जरिया भी बंद हो गया. अब जब परिस्थितियां थोड़ी सामान्य हुई हैं और अनलॉक के बाद इन गली मोहल्लों में खटर-पटर की गूंज धीमी है. साड़ी की सप्लाई नहीं होने से बुनाई भी कम हो गई है. जब बुनाई नहीं हो रही तो कमाई भी नहीं हो रही. ऐसे में बुनकरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

स्पेशल रिपोर्ट

बचत से लॉक डाउन में हुआ गुजारा
कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान 3 महीने के देशव्यापी लॉकडाउन में बाकी उद्योग-धंधों की तरह बुनाई भी बन्द रही. इस दौरान कमाई नहीं होने से बचत के पैसे से बुनकरों ने जीविकोपार्जन किया, लेकिन अब लॉकडाउन खुलने पर भी इनकी कमाई नाम मात्र हो रही है. ऐसे में इनके सामने परिवार का भरण-पोषण करने की चिंता सता रही है. 40 वर्षीय बुनकर सउद्दीन ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान तो किसी तरह गुजारा हो गया, जो बचा कर रखा गया था उसी से तीन महीने खाया गाया, लेकिन अब लॉकडाउन खुलने पर संकट और बढ़ गया है. बुनकरों का कहना है कि अब कमाई हो नहीं रही और बचत का पैसा भी खत्म हो गया है. ऐसे में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ये बताते हैं कि किसी तरह दिन में 100 रुपये की कमाई हो रही है. कैसे गुजारा होगा. सरकार से राशन मिल जाता है तो थोड़ी सहायता हो जाती है. लेकिन जब तक बुनाई पहले की तरह नही होगा हम लोगों को पेट भरना कठिन हो जाएगा.

बाजार में मांग नहीं, बाहर सप्लाई के लिए परिवहन नहीं
जिले में तैयार हुई साड़ी की मांग दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित देश के विभिन्न स्थानों पर है, लेकिन कोरोना के चलते जहां बाजारों में मांग कम हुई है. वहीं सप्लाई नहीं होने से करोड़ों का व्यापार प्रभावित हुआ है. बुनकर दानिश बताते हैं कि हम लोगों का पूरा दामोदार बुनाई पर ही है. इसी से जुड़कर जिले के 2 लाख से अधिक लोगों का पेट पलता है. कोई बुनाई करता है तो कोई डिजाइन बनाता है. कोई प्रेस करता है तो कोई धागा बेचता है. बड़े-बड़े सेठ तैयार साड़ियों की सप्लाई करते हैं. पावरलूम चलाने वाले बुनकरों को प्रति साड़ी की बुनाई पर 100, 150 जैसे साड़ी रहती है वैसे मजदूरी मिलती है. इस वक्त बुनकरों का हाल बहुत ही खराब है. उनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जिन सेठ महाजन के पास पैसा था उन्होंने हमारी सहायता की जिसके लिए हम एहसानमंद हैं, लेकिन साड़ी बिक नहीं रही उनके गोदामो में लाखों रुपये की साड़ी पड़ी हुई है. तो नई साड़ी की बुनाई बहुत ही कम हो रही है. ऐसे में कुछ सूझ नहीं रहा क्या किया जाए.दानिश आगे बताते हैं कि साड़ी नहीं बिकने में जहां बाजार में मांग की कमी है. वहीं ट्रांसपोर्ट की कमी भी वजह है. लोकल और एक्सप्रेस ट्रेन पूरी तरह बन्द हैं. बसें भी सीमित हैं. ऐसे में दूसरे प्रदेश और शहरों में जाने वाली साड़ी की डिलीवरी भी बन्द है. बस से थोड़ी बहुत सप्लाई हो रही है. जब तक ट्रेन का परिवहन सुचारू रूप से नहीं चल जाता साड़ियों की सप्लाई में तेजी नहीं हो सकती है.

आर्थिक तंगी से परेशान बुनकर

जिंदगी सामान्य होने तक संकट में बुकर
कोरोना ने पूरे विश्व को प्रभावित कर दिया है. लॉकडाउन से जहां आर्थिक मंदी आ गई है वहीं उत्सव और त्योहार भी सीमित हैं. ऐसे में बाजार में मांग ही कम है तो नए का निर्माण भी प्रभावित होगा. जब तक जीवन सामान्य पटरी पर नहीं आता है बुनकरों सहित सभी उद्योग धंधे से जुड़े लोगों की परेशानी बनी रहेगी.

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