मऊ: पूर्वांचल क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर रोजगार न होने से अधिकांश ग्रामीण दिल्ली, मुंबई सहित अन्य महानगरों पर रोजगार के लिए आश्रित होते हैं. महानगरों की कमाई से ही गांव के अधिकांश लोगों का जीविकोपार्जन होता है, लेकिन कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में महानगरों में उद्योग-धंधे बन्द हो गए. ऐसे में हताश-निराश होकर प्रवासी कामगार अपने घर लौट आए.
प्रवासी कामगारों को नहीं मिल रहा काम
प्रवासी कामगार यह सोचकर गांव आए थे कि यहां पर उन्हें रोजगार मिल ही जाएगा, लेकिन यहां आने पर भी अब वही स्थिति हो गई है. दो से तीन महीने घर आए हुए हो गए हैं, लेकिन रोजगार न मिलने से खाली बैठे हुए हैं. सरकार स्थानीय स्तर पर जो रोजगार देने के दावे की, वह केवल शोर-शराबा तक सीमित रह गया. हालात यह है कि मनरेगा से गांव में प्रवासियों को काम देने के दावे किए गए, लेकिन यह भी गिने-चुने दिन और व्यक्ति तक सीमित रह गया. ऐसे में कामगारों को कुछ सूझ नहीं रहा कि करें तो करें क्या.
गांव में नहीं है रोजगार
दिल्ली, मुंबई में भी कोरोना का कहर जारी है. गांव में रोजगार नहीं है, परिवार चलाना कठिन हो गया है. अब गांव की गलियों, चौपालों पर केवल प्रवासी कामगार निराश-हताश बैठे मिल रहे हैं.
'कोई काम नहीं मिल रहा'
मऊ जिले के बस्ती गांव में मुम्बई से ऑटो चलाने वाले 55 वर्षीय राम प्रसाद लॉकडाउन में ऑटो से ही घर चले आए. ढाई महीने से घर पर बैठे हैं. ये बताते हैं कि लॉकडाउन में समस्या हुई तो मुंबई से घर चले आए. दो बेटे भी काम करते थे, वह भी घर आ गए. जो कमा कर रखा गया था, वहीं खाया गया, लेकिन एक महीना, दो महीना, तीन महीना, कब तक बगैर कमाए खाया जा सकता है. घर में पांच लोग खाने वाले, लेकिन कमाने वाला कोई नहीं. अब मजबूरी में ईंट गारे का काम किया जा रहा है. वह भी नहीं मिल रहा है.
'कैसे भरेंगे गाड़ी का लोन'
मनरेगा से काम मिला, यह पूछने पर बताया कि प्रधान के पास गया तो बोला- आपका कार्ड नहीं बना है. फिर बारिश से यह भी बन्द हो गया. सरकार यहां कोई काम की व्यवस्था की नहीं है. जो एक हजार रुपये मिल रहे हैं, उसका भी फॉर्म भरा था, नहीं मिला. घर बैठे हैं, चिन्ता सता रही है. गाड़ी का डेढ़ लाख लोन हैं. 6500 हर महीने की क़िस्त है, कैसे भरा जाएगा. कोरोना बढ़ता जा रहा है, मुंबई में लॉकडाउन ही है, अभी जा सकते नहीं, क्या किया जाये, कुछ समझ में नहीं आ रहा.
'पैसे नहीं हैं, पत्नी का इलाज कैसे कराएं'
राम प्रसाद के पड़ोसी सामदेव का भी दर्द यही है. 70 वर्षीय सामदेव गांव में ही रहकर खेती करते हैं, लेकिन इनके तीन बेटे बाहर रहते हैं. दो मुंबई में और एक सऊदी अरब में. वहीं सामदेव बताते हैं कि कोरोना ने सब तबाह कर दिया है. तीन बेटे कमाते थे, सभी की कमाई बन्द है. दो मुंबई से आकर घर बैठे हैं, जो सऊदी में रहते हैं, उनका भी काम बंद ही चल रहा है. घर पर पत्नी बीमार रहती है. बाहर से पैसा आता है तो घर का खर्च और इलाज चलता है, लेकिन कोरोना ने सब बन्द कर दिया है.