मऊ: जन्मजात मूक-बधिर की समय पर पहचान और तुरंत कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही समय पर सही इलाज है. इसी उद्देश्य से आरबीएसके के सहयोग से सदर अस्पताल मऊ में बीते दिनों परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया. इसमें शासन से सर्जरी के लिए चयनित कानपुर के डॉ. एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी (कान, नाक एवं गला) फाउंडेशन की तरफ से जिले के विभिन्न ब्लाकों से आए जन्म से पांच साल के मूक-बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया.
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मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सतीशचन्द्र सिंह ने बताया कि शिविर में आए 32 मूक बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया. जिसमें 24 बच्चों को ऑपरेशन के लिए चिन्हित कर लिया गया. प्रत्येक बच्चे पर आठ लाख रुपये के हिसाब से निशुल्क सर्जरी, मशीन और चिकित्सा प्रशिक्षण खर्च आएगा जो सरकार वहन करेगी. डब्लूएचओ के अनुसार प्रति एक हजार नवजात बच्चों में औसतन 6 बच्चा जन्मजात मूक-बधिरपन का शिकार होता है. अगर उसका सही समय पर सही इलाज नहीं होता तो वह गूंगेपन का शिकार हो जाता है. ज्यादातर बच्चों में इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाती या फिर ज्यादातर के बारे में देरी के साथ पता चलता है. इसलिए बच्चे के पैदा होने के बाद उसके स्पेशलिस्ट डॉक्टरों से लगातार जांच करवाते रहना चाहिए, ताकि बच्चे का बिना देरी किया इलाज हो सके.
कम उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री जरूरी
अगर 6 माह के अंदर ऐसे मूक-बधिर बच्चे की कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री हो जाए, तो बेहद शानदार नतीजे आते हैं. देरी करने पर पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर 6 साल की उम्र के बाद सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास होता है. इसलिए जितने कम उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही परिणाम सकारात्मक होंगे. पिछले वित्तीय वर्ष में इस शिविर के माध्यम से 2020-21 में जिले के विभिन्न ब्लाकों से 15 मूक-बधिर बच्चों को सरकार से निशुल्क लाभ मिला है. अब वह सभी बच्चे समाज से अपने आप को जुड़ा महसूस कर रहे हैं. इन सभी बच्चों को भी कैंप में अपना अनुभव साझा करने के लिए बुलाया गया.