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आरबीएसके के तहत मूक बधिर बच्चों का निशुल्क इलाज - free treatment of deaf children under rbs

यूपी के मऊ जिले में बीते दिनों स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया. डॉ. एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी फाउंडेशन की तरफ से जिले के विभिन्न ब्लाकों से आए जन्म से पांच साल के मूक-बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया.

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मूक बधिर बच्चों का निशुल्क इलाज

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Published : Mar 11, 2021, 1:13 PM IST

मऊ: जन्मजात मूक-बधिर की समय पर पहचान और तुरंत कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही समय पर सही इलाज है. इसी उद्देश्य से आरबीएसके के सहयोग से सदर अस्पताल मऊ में बीते दिनों परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया. इसमें शासन से सर्जरी के लिए चयनित कानपुर के डॉ. एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी (कान, नाक एवं गला) फाउंडेशन की तरफ से जिले के विभिन्न ब्लाकों से आए जन्म से पांच साल के मूक-बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया.

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मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सतीशचन्द्र सिंह ने बताया कि शिविर में आए 32 मूक बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया. जिसमें 24 बच्चों को ऑपरेशन के लिए चिन्हित कर लिया गया. प्रत्येक बच्चे पर आठ लाख रुपये के हिसाब से निशुल्क सर्जरी, मशीन और चिकित्सा प्रशिक्षण खर्च आएगा जो सरकार वहन करेगी. डब्लूएचओ के अनुसार प्रति एक हजार नवजात बच्चों में औसतन 6 बच्चा जन्मजात मूक-बधिरपन का शिकार होता है. अगर उसका सही समय पर सही इलाज नहीं होता तो वह गूंगेपन का शिकार हो जाता है. ज्यादातर बच्चों में इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाती या फिर ज्यादातर के बारे में देरी के साथ पता चलता है. इसलिए बच्चे के पैदा होने के बाद उसके स्पेशलिस्ट डॉक्टरों से लगातार जांच करवाते रहना चाहिए, ताकि बच्चे का बिना देरी किया इलाज हो सके.

कम उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री जरूरी
अगर 6 माह के अंदर ऐसे मूक-बधिर बच्चे की कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री हो जाए, तो बेहद शानदार नतीजे आते हैं. देरी करने पर पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर 6 साल की उम्र के बाद सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास होता है. इसलिए जितने कम उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही परिणाम सकारात्मक होंगे. पिछले वित्तीय वर्ष में इस शिविर के माध्यम से 2020-21 में जिले के विभिन्न ब्लाकों से 15 मूक-बधिर बच्चों को सरकार से निशुल्क लाभ मिला है. अब वह सभी बच्चे समाज से अपने आप को जुड़ा महसूस कर रहे हैं. इन सभी बच्चों को भी कैंप में अपना अनुभव साझा करने के लिए बुलाया गया.

550 से अधिक बच्चों की सफल कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री हुई
डॉ. एस.एन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी फाउंडेशन के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर नागेन्द्र मिश्र ने बताया कि कॉकलियर एक बेहद संवेदनशील यंत्र (डिवाइस) होता है. जिसको ऑपरेशन (सजर्री) के माध्यम से लगाया जाता है. यह प्रक्रिया करीब 2 घंटों के ऑपरेशन के साथ पूरी हो जाती है और मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है. ऑपरेशन की सफलता डॉक्टर, अस्पताल की सुविधाओं और इम्प्लांट करने की सर्जिकल तकनीक पर ज्यादा निर्भर करती है. उन्होंने बताया कि संस्था की ओर उत्तर प्रदेश में अब तक लगभग 550 से अधिक बच्चों की सफल कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री की जा चुकी है.

ईएनटी डॉ. एस. एन मेहरोत्रा का कहना है कि जन्म से ही बोलने और सुनने में अक्षम (मूक-बधिर) बच्चों के इलाज को लेकर सरकार गंभीर है. उनकी इस कमी को स्थाई तौर पर दूर करने के लिए कॉकलियर इम्प्लांट के माध्यम से सर्जरी कराई जाती है.

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परिजनों ने जताई उम्मीद
रतनपुरा ब्लॉक के रहने अमर चौहान ने बताया कि जब ज्योति पैदा हुई तो सब खुश थे. लेकिन जब पता चला कि यह बोल और सुन नहीं सकती तो यह बात सभी के लिए चिंताजनक था. समाचार पत्र के माध्यम से पता चला की शिविर लगा है. इसके बाद एक आस जगी और अपने बच्चे को उम्मीद के साथ आरबीएसके टीम के माध्यम से दिखाने चले आए. डॉक्टर को कानपुर से बुलाया गया है. आशा है कि अब मेरा बच्चा बोल सकेगा.

बडराव ब्लॉक के उदयभान यादव ने बताया कि जब तान्या एक साल की थी, तब पता लगा मेरी बच्ची बोल और सुन नहीं सकती. इस बात से तब परेशान हो गए. इसके बाद बच्ची को कई जगह दिखाया पर सही इलाज नहीं मिला. आरबीएसके टीम आगनवाड़ी केंद्र पर आई तब शिविर के बारे में बताया. उम्मीद के साथ बच्ची को दिखाने आए है. आशा है कि अब मेरी बच्ची सुन और बोल सकेगी.

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