मथुरा:जनपद में यमुना नदी के किनारे दशानन लंकापति रावण की विधि विधान से पूजा के बाद महाआरती उतारी गई. सारस्वत समाज के लोग पिछले कई वर्षों से रावण की पूजा करते आ रहे हैं और रावण के पुतला दहन का विरोध करते हैं. शिव मंदिर में रावण ने भोलेनाथ की आराधना की और भक्तों ने रावण की महा आरती उतारी.
मथुरा में रावण की पूजा करते सारस्वत समाज के लोग मथुरा में सारस्वत समाज के लोग रावण के पुतले दहन का विरोध करते हैं. क्योंकि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान और वेदों का ज्ञाता था. भगवान शिव की आराधना करता था. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी रावण की ज्ञान को देखकर कहा था कि इस संसार में रावण के बराबर कोई विद्वान इस धरती पर नहीं होगा. हिंदू संस्कृति के अनुसार मरे हुए व्यक्ति का एक बार ही पुतला जलाया जाता है नाकि बार बार. लेकिन, हर साल विजयदशमी के पर्व पर रावण का पुतला दहन किया जाता है. हम लोग इसी तरह रावण के पुतले का विरोध करते रहेंगे.
कृष्ण की नगरी मथुरा से लंकापति रावण का रिश्ता:त्रेता युग में लंकापति रावण का रिश्ता मथुरा से पुराना नाता रहा है. रावण की दो बहने सुपर्णखा और दूसरी कुंभिनी थी .कुंभिनी का विवाह मधु राक्षस के साथ मथुरा में हुआ था. मथुरा का प्राचीन नाम मधुपुरा था. अपनी बहन से मिलने के लिए लंकापति रावण मधुपुरा आता जाता रहता था. कुंभिनी राक्षस लवणासुर की मां थी. इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.लंकेश भक्त मंडल समिति अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने बताया विजयदशमी के दिन लंकापति रावण शिव मंदिर में आकर भोलेनाथ की आराधना करता है. भक्तों द्वारा रावण की महाआरती पूजा की जाती है. हर साल की तरह इस बार भी लंकापति रावण की पूजा की गई. लंकापति रावण प्रचंड विद्वान वेदों का ज्ञाता के साथ-साथ शिव का अनंत भक्त था. हिंदू रीति रिवाज में मरे हुए व्यक्ति का एक बार ही दहन किया जाता है. लेकिन, आज के इस समाज में बार-बार रावण के पुतले का दहन करना गलत है. हम इसका विरोध करते हैं.
यह भी पढ़ें:कन्नौज में दशहरे पर नहीं बल्कि शरद पूर्णिमा को होता है रावण दहन, 200 सालों से निभाई जा रही ये परंपरा