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मथुरा: वृंदावन से कलश लेकर अयोध्या के लिए रवाना हुईं साध्वी ऋतंभरा

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली की माटी और यमुना मैया का जल भरा कलश लेकर साध्वी ऋतंभरा वृंदावन से अयोध्या के लिए रवाना हो गई हैं. इससे पहले केसी घाट पर कलश का विधि-विधान से पूजन किया गया.

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साध्वी ऋतंभरा.

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Published : Aug 2, 2020, 4:01 PM IST

मथुरा:रविवार को वृंदावन के केसी घाट पर दर्जनों साधु-संतों ने ब्रज के संपूर्ण मंदिरों की मिट्टी कलश में एकत्रित करके विधि-विधान से पूजन किया. वृंदावन, गोकुल, बरसाना, गोवर्धन, नंदगांव और बलदेव मंदिरों से आए साधु-संतों ने ब्रज की माटी और गंगाजल को कलश में देकर साध्वी ऋतंभरा को वृंदावन से अयोध्या के लिए रवाना किया. 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के भूमि पूजन में ब्रज की माटी और यमुना का जल सम्मिलित किया जाएगा.

अयोध्या के लिए रवाना हुईं साध्वी ऋतंभरा.

मीडिया से बातचीत करते हुए साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर न बन पाने से मन में एक तड़प, एक दर्द सा महसूस किया करती थी. अब वह सपना साकार होने जा रहा है. 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री इस कार्य को संपन्न करेंगे. अति आनंद हो रहा है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है.

साध्वी ऋतंभरा ने बताया, 'लोग मुझसे आकर कहते थे, जमीन, जायदाद, पैसा, सोना, चांदी ले लो, कौन किस को क्या देता है, लेकिन अपनी जिंदगी कोई नहीं दे सकता. मैं कहती हूं राम मंदिर बनने के लिए हजारों हिंदुओं ने अपने रक्त से सरयू नदी को लाल कर दिया था, इसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती, यह पाप होगा. यह तो एक अतुल्य है. अद्भुत है. हिंदू जाति ने इतिहास रचा है. 500 साल बाद हम खंडित स्वाभिमान की प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं. इसका अतीव आनंद है मुझे.'

अब मथुरा काशी की बारी है, इस सवाल पर साध्वी ऋतंभरा ने कहा हमने आने वाली पीढ़ी को रास्ता दिखा दिया है कि किस रास्ते पर चलना है. किसी को डराना नहीं है. समझौता किसी से करना नहीं है. अपनी आस्था के लिए जिंदगी कैसे दी जाती है. आने वाली पीढ़ी इस रास्ते पर चलेगी.

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साध्वी ऋतंभरा ने ब्रज से लगाव के बारे में सवाल पूछे जाने पर कहा कि जो लगाव नि:स्वार्थ होते हैं, वो कभी मिट नहीं सकते, हमेशा गहरे होते चले जाते हैं. जिन भावों में, जिन सम्बन्धों में कोई स्वार्थ होते हैं, वो प्राय: नष्ट हो जाते हैं. प्रभु श्री राम और प्रभु श्री कृष्ण के साथ ब्रज और अवध के साथ जो भाव है, वह सात्विक और आध्यात्मिक भाव है. हमारी संस्कृति संस्कारों का जुड़ाव है. यह दिन दोगुना और रात चौगुना गहराता है. इसका रंग ऐसा चढ़ जाता है कि सारे संसार के रंग फीके पड़ जाते हैं.

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