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बार एसोसिएशन के विरोध में अधिवक्ता ने जूते पॉलिश कर किया प्रदर्शन - मथुरा में वकील का अनोखा प्रदर्शन

यूपी के मथुरा में अधिवक्ता ने न्यायालय के गेट नंबर 2 पर बैठकर जूते पॉलिश कर विरोध प्रदर्शन किया. अधिवक्ता ललित का कहना है कि जब पूरा देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है. ऐसे में अधिवक्ताओं से लिए जाने वाला वार्षिक शुल्क बढ़ा दिया गया है.

मथुरा में वकील का अनोखा प्रदर्शन.
मथुरा में वकील का अनोखा प्रदर्शन.

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Published : Sep 17, 2020, 8:04 PM IST

मथुरा: जिला न्यायालय के गेट नंबर 2 पर बैठकर एक अधिवक्ता ने जूते पॉलिश कर अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. अधिवक्ता का कहना है कि कोरोना काल में युवा अधिवक्ता आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. देश में कई युवा अधिवक्ताओं ने आत्महत्या भी कर ली है. इस बीच मथुरा में बार एसोसिएशन के नवीन पदाधिकारियों ने अधिवक्ताओं से लिए जाने वाला वार्षिक शुल्क 300 से बढ़ाकर 500 कर दिया है. जबकि कोरोना काल में बार एसोसिएशन में अधिवक्ताओं की कोई सहायता नहीं की.

मथुरा में वकील का अनोखा प्रदर्शन.

बार एसोसिएशन के विरोध में एक अधिवक्ता ने अनोखे अंदाज में प्रदर्शन किया है. अधिवक्ता ने जिला न्यायालय के गेट पर जूते पॉलिश कर रोष व्यक्त किया. अधिवक्ता का यह प्रदर्शन वकीलों के लिए दिन भर कौतुहल का विषय बना रहा. वहीं बार एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर रहे अधिवक्ता को टर्मिनेट कर दिया है. जिला न्यायालय के गेट संख्या 2 पर जूता पॉलिश कर प्रदर्शन कर रहे ललित मोहिनी रूप शर्मा ने कहा कि कोरेाना काल में युवा अधिवक्ता आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. देश में कई युवा अधिवक्ताओं ने आत्महत्या भी कर ली है. इस बीच मथुरा में बार एसोसिएशन के नवीन पदाधिकारियों ने अधिवक्ताओं से लिए जाने वाला वार्षिक शुल्क 300 से बढाकर 500 रुपये कर दिया है.

वार्षिक शुल्क 300 से बढ़ाकर किया 500 रुपये
उनका कहना है कि एक तरफ तो अधिवक्ता इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, उन्हें अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है. इस संकट के समय में बार एसोसिएशन ने अधिवक्ताओं की कोई सहायता नहीं की और न ही सरकार ने कोई सहायता की. सरकार तो उल्टा अधिवक्ताओं के पैसे खा कर बैठ गई. अधिवक्ता का आरोप है कि पहले अधिवक्ताओं से 300 रुपये वार्षिक शुल्क लिया जाता था. इस हम तीन माह में दिया करते थे, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है. यही नहीं इसका भुगतान एक माह में करने को कहा गया है.

'अभिवक्ताओं के हित में नहीं किया कोई काम'
ललित का कहना है कि बार एशोसिएशन चाहता तो 500 रुपये की वार्षिक शुल्क के भुगतान के लिए 5 महीने का समय दिया जा सकता था, इससे हमें भी परेशानी नहीं होती. उनका कहना है कि बार के पास इतना पैसा आने के बावजूद भी अधिवक्ताओं के हित में कुछ नहीं किया गया.

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