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शहीद केदार सिंह की कहानी, उनकी पत्नी की जुबानी

मथुरा जिले के सौंख कस्बा निवासी सिपाही केदार सिंह साल 1971 के भारत- पाकिस्तान के युद्ध में शहीद हो गए थे. आज भी उन्हें याद कर परिजनों के आंखों में आंसू आ जाते हैं. युद्ध में जाते समय उन्होंने आखिरी बार अपनी पत्नी से क्या कहा था. पढ़िए इस खास रिपोर्ट में.

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Published : Dec 18, 2020, 10:47 PM IST

Published : Dec 18, 2020, 10:47 PM IST

शहीद केदार सिंह की कहानी, उनकी पत्नी की जुबानी.
शहीद केदार सिंह की कहानी, उनकी पत्नी की जुबानी.

मथुरा: साल 1971 में पाकिस्तान की कायराना हरकतों के कारण भारत- पाकिस्तान युद्ध हुआ, जिसमें भारत ने विजय प्राप्त की. सैकड़ों सेना के जवानों ने अपनी शहादत देकर दुश्मनों के मंसूबे पर पानी फेर दिया. शहीद हुए सेना के जवानों की शहादत याद कर आज भी लोगों की आंखें नम हो जाती हैं और शहीदों के परिजन भावुक होकर रोने लगते हैं. उन्हीं में से एक हैं मथुरा जिले के सौंख कस्बा निवासी सिपाही केदार सिंह. युद्ध के समय उनकी तैनाती राज राइफल के सेवन राइफल बटालियन में थी. शहीद सिपाही की यादें आज भी परिजनों को भावुक कर देती हैं. एक साल की नौकरी करने के बाद 1971 की युद्ध में पाकिस्तान के सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया और देश की रक्षा करते हुए वह शहीद हो गए थे.

शहीद केदार सिंह की कहानी, उनकी पत्नी की जुबानी.


1970 में राज राइफल में भर्ती हुए शहीद केदार सिंह
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सौंख कस्बा निवासी केदार सिंह दिल्ली में सेना में भर्ती हुए थे. साल 1970 में राज राइफल में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे. वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े थे. उनके भाई विक्रम सिंह और छेदी सिंह गांव में ही रखकर खेती-किसानी करते हैं.


याद आने पर परिजन पढ़ते हैं शहीद का आखिरी पत्र

अक्टूबर 1970 में सिपाही ने अपनी ड्यूटी के दौरान परिवार को आखिरी पत्र भेजा था. शदीह के परिजन आज भी उस आखिरी पत्र को शहीद की आखिरी निशानी मानकर रखा है. बेटा तेजवीर सिंह ने कहा पिता की जब भी याद आती है, तो घर के भी लोग उस पत्र को पढ़ते हैं.

शहीद का आखिरी पत्र .



याद आने पर आंखों नें आ जाते हैं आंसू
शहीद की पत्नी चंद्रवती ने बताया आज भी वह दिन याद आता है, तो आंखों में आंसू आ जाते हैं. उन्होंने बताया कि जब युद्ध की सूचना मिली, तो उन्होंने कहा कि कहा कि मुझे ड्यूटी पर जाना होगा,जबकि परिवार को सभी लोग जाने से मना कर रहे थे. शहीद की पत्नी ने बताया कि उन्होंने कहा कि 10 दिन की छुट्टी बिताने के बाद वह वापस सीमा पर चले गए थे.

सीमा के मैनावती पहाड़ी पर लगी थी ड्यूटी

चंद्रवती ने बताया कि उनकी शहीद की ड्यूटी सीमा के मैनावती पहाड़ी पर लगी थी. रेडियो द्वारा सूचना मिली थी कि पाकिस्तान के सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए मातृभूमि की रक्षा करते हुए वह शहीद हो गए. उस समय बेटे का जन्म नहीं हुआ था. शहीद के बेटे ने बताया कि युद्ध में जाने से पहले पिता ने कहा था कि अगर देश की रक्षा करते हुए मेरे प्राण भी चले जाए, तो भी देश का कर्ज नहीं उतार पाऊंगा. सब लोग अपना ख्याल रखना.
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