मथुरा:पूरे ब्रज के साथ देशभर में गोवर्धन का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. गिरिराज जी की नगरी गोवर्धन में पूजा करने का एक अलग ही महत्व होता है. गिरिराज जी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु अलग-अलग व्यंजन तैयार करते हैं. तो वहीं दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु गोवर्धन महाराज की परिक्रमा लगाते हुए नजर आते हैं. 21 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए गोवर्धन पर्वत की क्या है खासियत और क्यों गोवर्धन पूजा खास होती है जानिए इस रिपोर्ट में....
गोवर्धन में होती पर्वत की पूजा
दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. दूरदराज से हजारों की संख्या में श्रद्धालु गोवर्धन महाराज पर्वत की परिक्रमा करने के लिए गोवर्धन पहुंचे हैं. गिरिराज जी को दूध चढ़ाने के साथ श्रद्धालु अलग-अलग व्यंजन अपने हाथों से तैयार करते हैं और भोग लगाते हैं.
द्वापर युग से चली आ रही परंपरा द्वापर युग में कृष्ण भगवान ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ कर ब्रज में अन्नकूट का पर्व प्रारंभ किया. बृजवासी अपने कन्हैया के लिए 56 तरह के व्यंजन तैयार करके भोग लगाते हैं. गोवर्धन पर्वत पर दूध अभिषेक करके श्रद्धालु अन्नकूट का पर्व मना रहे हैं. 6000 वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.
किस तरह तोड़ा इंद्र का घमंड कृष्ण ने
द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा बृजवासी करते चले आ रहे थे. कृष्ण भगवान ने अपने ब्रज वासियों से कहा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करें कोई दूसरे भगवान की पूजा करते हैं ब्रज वासियों ने कहा हम अपने कान्हा की पूजा ही करेंगे. यह सुनकर इंद्र क्रोधित हो गए और ब्रज में मूसलाधार बारिश की सभी बृजवासी घबरा गए और अपने कान्हा को याद करने लगे. कान्हा ने कन्नी उंगली पर पर्वत को उठाया और अपने बृज वासियों की जान बचाई. कान्हा ने 7 दिन और रात पर्वत को उठाए रखा. जिससे सभी ब्रज वासियों की जान बची. अपने नटखट कन्हैया को प्रसन्न करने के लिए ब्रज वासियों ने अपने हाथ से 56 तरह के व्यंजन तैयार किए और भोग लगाया.
हे प्रभु पूरे ब्रज में आपकी बृजवासी पूजा करते रहेंगे तो मेरी पूजा कब होगी या सुनकर कृष्ण प्रसन्न हो गए और कहा दिवाली के अगले दिन इस पर्वत की पूजा की जाएगी जिसे गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाएगा. सभी ब्रजवासी अलग-अलग व्यंजन तैयार करके इस पर्वत का भोग लगाएंगे जिसे अन्नकूट पर्व के नाम से जाना जाएगा. द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.
दूर-दराज से श्रद्धालु हर रोज परिक्रमा करने के लिए गिरिराज की नगरी पहुंचते हैं और सुबह-शाम गिरिराज महाराज की जय और राधे-राधे के नाम से जयकारे सुनाई देते हैं. खासकर गोवर्धन पर्व पर श्रद्धालु व्यंजन तैयार करके गिरिराजजी को प्रसन्न करते हैं. जिससे सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं.
इसे भी पढ़ें-दीपदान से हुई मथुरा में ब्रज रज महोत्सव की शुरुआत