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नहीं रहे मथुरा के फक्कड़ बाबा 'रामायणी' , जानें पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश के मथुरा में लोकसभा और विधानसभा का 17 बार चुनाव लड़ने वाले फक्कड़ बाबा रामायणी नहीं रहे. पिछले 28 जुलाई को 81 वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे.

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लंबी बीमारी के चलते फक्कड़ बाबा रामायणी का निधन.

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Published : Aug 6, 2020, 6:09 PM IST

मथुरा:जिले के गलतेश्वर मंदिर के पास रहने वाले 80 वर्षीय फक्कड़ बाबा को लोग 'रामायणी' नाम से बुलाते थे. पिछले 28 जुलाई को लंबी बीमारी के चलते उनका निधन हो गया. फक्कड़ बाबा ने जनपद में 17 बार चुनाव लड़ा. फक्कड़ बाबा मूल रूप से कानपुर के बिठूर के रहने वाले थे.

लंबी बीमारी के चलते फक्कड़ बाबा रामायणी का निधन.
मथुरा जनपद में नौ बार लोकसभा और आठ बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले 80 वर्षीय फक्कड़ बाबा का पिछले 28 जुलाई को बीमारी के चलते निधन हो गया था. फक्कड़ बाबा ने हजारों घरों में निशुल्क रामायण का पाठ किया, जिसके चलते फक्कड़ बाबा को लोग 'रामायणी' बाबा के नाम से भी पुकारते थे. शहर के गलतेश्वर मंदिर परिसर में पिछले 40 वर्षों से फक्कड़ बाबा रह रहे थे.
फक्कड़ बाबा ने जनपद में 17 बार चुनाव लड़ा.
स्थानीय निवासी जितेंद्र कुमार शर्मा ने बताया फक्कड़ बाबा जो रामायणी के नाम से विख्यात थे, लंबी बीमारी के चलते उनका देहांत हो गया. फक्कड़ बाबा ने मथुरा जनपद से लोकसभा और विधानसभा के 17 चुनाव लड़े, जिसमें उनको हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उनके गुरु का आशीर्वाद था कि 20वां चुनाव जो होगा, उसमें तुम्हारी जीत होगी.
गलतेश्वर मंदिर के पास रहने वाले 80 वर्षीय फक्कड़ बाबा 'रामायणी' के नाम से विख्यात हुए.


पढ़ें-मथुरा में 17 बार चुनाव लड़ चुके फक्कड़ बाबा रामायणी का निधन

स्थानीय निवासी नंद कुमार शर्मा ने बताया फक्कड़ बाबा बचपन से ही रामायण का पाठ करते आ रहे थे. हजारों लोगों के घर पर फक्कड़ बाबा ने निशुल्क रामायण का पाठ किया. उसके बाद लोग उन्हें रामायणी बाबा के नाम से जानने लगे थे. 1977 में फक्कड़ बाबा ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ाया. फक्कड़ बाबा 17 बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ चुके थे.

अपनी लगन कभी नहीं छोड़ी
उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव लोकसभा सीट से 1977 में लड़ा था, जब देश में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ माहौल था. फक्कड़ बाबा रामायणी ने अंतिम चुनाव 2019 में हेमामालिनी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा. हालांकि उन्हें अपने 17 में से किसी भी चुनाव में कभी जीत हासिल नहीं हुई. यहां तक कि हर चुनाव में उनकी जमानत राशि जब्त हो जाती, लेकिन उन्होंने अपनी लगन कभी नहीं छोड़ी.

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