मथुरा :मंगलवार को बसंतर दिवस की स्वर्णजयंती पर स्ट्राइक-1 कोर ने सभी 'शहीद सैनिकों' को श्रद्धांजलि दी. समारोह की शुरुआत कोर 'वॉर मेमोरियल' पर माल्यार्पण के साथ हुई. इसके बाद 'फर्स्टडे कवर' और बसंतर-डे ट्रॉफी जारी की गई.
बता दें क़ि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान स्ट्राइक-1 द्वारा दिखाई गई वीरता को भावी पीढ़ी के लिए इतिहास में अंकित किया गया. वहीं दुनिया के 'थिंक टैंकों' के बीच भी इसे गंभीरता से लिया गया कि 'भारतीय सेना' क्या करने में सक्षम है.
बसंतर की लड़ाई: जब पुराने साजो-सामान से भी पाकिस्तानी आर्मी को भारतीय सेना के वीर जवानों ने धूल चटाई लेफ्टिनेंट जनरल एमके कटियार एवीएसएम ने अपने संदेश में कहा, 'आज 'बसंतर की लड़ाई' की 50वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक अवसर पर मैं उस युद्ध के महान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. स्ट्राइक-1 के परिवार को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं.
उन्होंने कहा, 'आइए हम अपने आपको अपने राष्ट्र की सेवा के लिए फिर से समर्पित करें और 'बसंतर के बहादुरों' के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में भविष्य के किसी भी संघर्ष में अपनी योग्यता साबित करने के लिए कड़ी मेहनत, प्रशिक्षण और अच्छी तैयारी करें.
यह इतिहास 16 दिसंबर 1971 को रचा गया था जब भारतीय सेना के वीरों ने वीरता, धैर्य, नेतृत्व से देश के दुश्मनों को खत्म करने और युद्ध में उनके नापाक इरादों को विफल करने के लिए दृढ़ता दिखाई.
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'बसंतर की लड़ाई' सैन्य इतिहास में सबसे भयंकर युद्धों में से एक थी. यहां एक ही दिन में स्ट्राइक-1 के बहादुरों ने 53 दुश्मन टैंकों को नष्ट कर दिया. 61 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
बसंतर की तीव्रता का अंदाजा सम्मानों और पुरस्कारों से लगाया जा सकता है. पांच युद्ध सम्मान, दो पीवीसी, 10 एमवीसी, 42 वीआरसी, 89 एसएम और 28 मेंशन इन डिस्पैचेस जैसे सम्मान इस स्ट्राइक-1 परिवार को मिला.
जानकारी देते हुए कर्नल विक्रम सिंह ने बताया, 'जब मैं यहां से गया था, आर्मी में बहुत कम लोग थे. ऑफिसर तो जहां तक मेरा ख्याल है, यहां से मैं अकेला ही था. कैप्टन था. हमारे पास तो इक्विपमेंट भी ढंग का नहीं था.
कुछ ही टैंक थे. वहीं पाकिस्तान के पास काफी टैंक थे. लेकिन कहते हैं न मैन बिहाइंड द गन. जिस तरह की लड़ाई थी, जोश बहुत था. जितने भी सीओ थे, वह वेल ट्रेंड थे'.
कहा, 'हमने पुराने इक्विपमेंट के साथ युद्ध लड़ा और जीत हासिल की. जिस तरह से जवानों ने और अधिकारियों ने मोर्चा संभाला, शायद वह जज्बा अब आया है. मैं अपने प्रधानमंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं.
हमने तो पुराने इक्विपमेंट के साथ लड़ाई लड़ी लेकिन जिस तरह आज हिंदुस्तानी फौज को इक्विपमेंट दिए गए हैं, वह कोई और नहीं कर सकता. रसिया के जो प्रेसिडेंट थे सिर्फ 6 घंटे के लिए यहां पर आए और जो इक्विपमेंट भारत को दे गए मेरा ख्याल है अब तो सभी देश पीछे हो गए हैं'.