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अधिवक्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का जताया आभार, बोले-गोरक्षा से बचेगी हिंदू संस्कृति - गोहत्या

गोहत्या के एक आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट (allahabad high court) ने बड़ी टिप्पणी की. हाईकोट्र ने कहा कि गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए. इस पर मथुरा के अधिवक्ताओं ने अपनी राय दी है.

गाय पर अधिवक्ताओं की राय
गाय पर अधिवक्ताओं की राय

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Published : Sep 2, 2021, 7:52 PM IST

Updated : Sep 2, 2021, 10:30 PM IST

मथुरा:द्वापर युग और त्रेता युग से ही गो-माता को पूजनीय माना जाता है. सनातन धर्म को मानने वाले गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने को लेकर आंदोलन और धरना-प्रदर्शन तक कर चुके हैं. अब एक बार फिर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने को लेकर आवाज बुलंद होने लगी है. इसके लिए हाईकोर्ट allahabad high court में याचिका डाली गई है. हालांकि, हाईकोर्ट ने स्वयं कहा है कि गाय को मौलिक अधिकार देने और इसे राष्ट्रीय पशु (national animal ) घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को कदम उठाना चाहिए और संसद में विधेयक लाना चाहिए. कोर्ट ने भी सरकार से राय मांगी है. आइये जानते हैं क्या कहते हैं कानून के जानकार.

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकेश खंडेलवाल ने बताया कि न्यायालय ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही है. इससे संपूर्ण देश में एक खुशी की लहर दौड़ रही है. केंद्र सरकार को इस संबंध में अध्यादेश लाना चाहिए. अध्यादेश आने के बाद केंद्र सरकार को पार्लियामेंट के माध्यम से गोहत्या कानून पास करना चाहिए. 6 माह के अंदर अगर, अध्यादेश पास हो जाता है तो उसके बाद राष्ट्रपति को अनुमोदित किया जाएगा, जिसके बाद कानून बनकर तैयार होगा. हालांकि, इलाहाबाद कोर्ट ने कहा है कि गोरक्षा का कार्य केवल एक धर्म या संप्रदाय का नहीं है. गाय भारत की संस्कृति है और इसे बचाने का काम देश के हर नागरिक का है. इसमें धर्म कहीं आड़े नहीं आता. गाय की रक्षा हर धर्म के व्यक्ति को करनी चाहिए. कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि गाय को नुकसान पहुंचाने या हत्या करने वाले को दंडित करना जरूरी है. ऐसा काम करने वाला एक वर्ग विशेष की ही नहीं, पूरे देश की भावनाओं को आहत करता है. वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार गोहत्या अधिनियम और गोमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित गोहत्या करने वाले को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए.

वरिष्ठ अधिवक्ता महेश चंद्र अग्रवाल

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वरिष्ठ अधिवक्ता महेश चंद्र अग्रवाल ने बताया कि गोवध निवारण अधिनियम 1955 प्रदेश में 6 जनवरी 1956 को लागू हुआ था. वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी. वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया. नियमावली के वर्ष 1964 व 1979 में संशोधन हुआ लेकिन, अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं. समय-समय पर उत्तर प्रदेश सरकार में एक्ट में संशोधन किए गए. नया संसोधन 11 जून 2020 को अध्यादेश की नई धारा जोड़ी गई. गोवंश को शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने पर 1 से 7 साल की सजा का प्रावधान किया गया. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति, हिंदू संस्कृति को बचाए रखने के लिए गाय को काटना बंद करना चाहिए. जब गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाएगा तभी गोहत्या और हमारी संस्कृति बचेगी.

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Last Updated : Sep 2, 2021, 10:30 PM IST

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