महोबा: कोरोना वायरस के संक्रमण को देश को बचाने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश में 25 मार्च से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी. लॉकडाउन की घोषणा के बाद से रोजगार की तलाश में बड़े शहरों में गए बुन्देलखण्ड के ग्रामीणों ने अपने गांवों की तरफ रुख किया था. ऐसे में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हजारों की संख्या में मजदूर वापस अपने गांवों में लौटे हैं. साथ ही बाहर से आए हुए स्थानीय लोगों को एहतियातन अस्थाई आश्रय स्थलों में 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन किया गया है.
वहीं कुछ ही दिन बाद ज्यादातर लोग आश्रय स्थल से नदारद पाए गए. वहीं इनमें रुके हुए लोगों से पूछने पर पता चला कि लगभग 5 दर्जन ग्रामीण 30 मार्च तक गांव में आ चुके थे. जिन्हें प्रशासन ने मुड़हरा गांव के प्राथमिक विद्यालय में क्वारंटीन किया था, जहां उनके रुकने खाने पीने की पूरी व्यवस्था की गई थी, लेकिन एक परिवार के 9 लोगों के अलावा ज्यादातर ग्रामीण अपने घरों में रह रहे हैं और पूरे गांव में खुलेआम घूम रहे हैं. जिसके चलते गांव के ग्रामीणों में डर का माहौल व्याप्त है.
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महोबा मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर स्थित मुड़हरा गांव के बाहर एक-दो क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं. इनमें उन लोगों को 14 दिन के लिए रखा जा रहा है, जो दूसरे राज्य से आए हैं. ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि अगर वे संक्रमित हैं, तो यह बीमारी पूरे गांव में न फैले. वहीं सरकार का दावा है कि इन लोगों के खाने-पीने की व्यवस्था भी की जा रही है.
साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है. डॉक्टर भी जांच के लिए समय-समय पर जाते रहते हैं. साथ ही अगर किसी में लक्षण नजर आएंगे तो उसका नमूना भेजकर जांच होगी, लेकिन सरकार के इन दावों की तस्वीर उल्टी नजर आ रही है. ईटीवी भारत ने जब इसकी पड़ताल की तो क्वारंटीन सेंटर लगभग खाली मिले. जबकि गांव में 5 दर्जन ग्रामीण बाहर से आए थे, लेकिन सेंटर में सिर्फ 9 लोग ही मौजूद मिले. अगर देखा जाए तो यहां ग्राम प्रधान की लापरवाही खुलकर सामने आ रही है. कुछ लोगों का खाना परिवार वाले सेंटर पर लेकर ही आ रहे हैं. पूछने पर लोगों ने बताया कि न तो डॉक्टर आए हैं और न कभी कोई सरकारी कर्मचारी खाना लेकर आया है.