महोबा: आधुनिक दौर में किसान अपने खेतों में यूरिया, डीएपी खाद डालकर खेती कर रहे हैं, इससे खेतों की पैदावार कम होती जा रही है. वहीं खेतों में पैदा होने वाले अनाज को खाकर नई-नई बीमारियां जन्म ले रही हैं. ऐसे में बुंदेलखंड के महोबा जिले में एक जागरूक किसान जैविक खाद बनाकर मिसाल पेश की है.
कमा रहा है अच्छा मुनाफा
महोबा जिले के भान प्रताप जैविक खाद बनाकर न सिर्फ अपने खेतों में डाल रहे हैं, बल्कि वह अपने परिवार को जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण देते हैं. इस खाद को बेचकर परिवार अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहा है. भान प्रताप का कहना है कि पहले किसान खेती करता था और हर किसान के घर जानवर हुआ करते थे. किसान जानवरों के गोबर से खाद बनाता था और उस खाद का उपयोग खेतों में किया जाता था, जिससे पैदावार अच्छी होती थी और सेहत के लिए भी लाभकारी होता था.
ऐसे बनती है जैविक खाद
अब किसानों ने जानवर रखना बंद कर दिया है और मशीनरी से खेती कर केमिकल युक्त खाद का प्रयोग करते हैं. इससे जमीन बंजर होती जा रही है, लेकिन भान प्रताप से प्रेरित होकर किसान एक बार फिर से जैविक खेती की ओर लौटने लगे हैं. जैविक खाद एक देशी प्रक्रिया है. पहले गड्डा खोदकर खाद बनती थी, अब वर्मी खाद पद्धति से बनाते हैं, जिसमें गोबर, नीम की पत्ती, गोमूत्र, केचुए डालकर जैविक खाद बनाई जाती है.
कौशल विकास योजना से ली ट्रेनिंग
उनका कहना है कि फसलों के लिए गोमूत्र बहुत लाभदायक है. यदि आप खेती में गोमूत्र का छिड़काव करते हैं तो फसल में किसी प्रकार के रोग नहीं लग सकता. जब से यूरिया खेतों में डालना शुरू किया, तभी से बीमारियों ने जन्म लेना शुरू किया है. इसके लिए उन्होंने हरिद्वार में कौशल विकास योजना से ट्रेंनिग ली है.