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महराजगंज: ढैंचा की खेती से किसान बढ़ा रहे मिट्टी की उर्वरा शक्ति - increased in the fertility of soil

उत्तर प्रदेश के महराजगंज के किसानों ने ढैंचा खेती करना शुरू कर दिया है. किसानों का कहना है कि ऐसा करने से चावल का स्वाद बढ़ जाता है और उत्पादन अच्छा होता है.

dhaincha cultivation
ढैंचा खेती

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Published : Jun 28, 2020, 11:14 AM IST

महराजगंज: जिले के कुछ किसान अपने खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों की जगह हरी खाद का प्रयोग करना शुरू कर दिए हैं. इसके लिए धान की रोपाई से पहले प्रति एकड़ 16 किलो ढैंचे की बुआई करते है और 45 दिनों बाद मिट्टी पलट कर उसकी हल से जुताई करके धान की रोपाई करते हैं. इससे चावल का स्वाद बढ़ जाता है और उत्पादन अच्छा होता है.

ढैंचा बढ़ा रहा मिट्टी की उर्वरा शक्ति
कृषि प्रधान देश में जिले के कुछ किसान अब खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए महंगे रासायनिक खादों की जगह हरी खाद का प्रयोग करना शुरू कर दिए हैं. इसके लिए वे धान की रोपाई से 45 दिन पहले ढैंचे की बुआई कर समय-समय पर सिंचाई करके स्वयं हरी खाद तैयार कर रहे हैं. कृषि विभाग के अधिकारीयों के अनुसार ढैंचे की खेती कर किसान न सिर्फ अपने खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ा रहे हैं बल्कि धान की फसल में ढैंचा से बनी हरी खाद का प्रयोग करने से चावल के स्वाद के साथ ही प्रोटीन और विटामिन की मात्रा भी बढ़ जाती है.

ढैंचे की खेती के लिए सरकार की ओर से भी व्यापक पैमाने पर प्रोत्साहन दिया जा रहा है. कृषि विभाग की ओर से अनुदान पर ढैंचा का बीज आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ ही इसकी बुवाई करने और हरी खाद बनाने के लिए समय-समय पर किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. इसके लिए सिर्फ किसान को पहल करने की जरुरत है. कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार गेहूं काटने के तुरंत बाद खेतों की जुताई कर उसमें ढैंचे की बुआई कर देना चाहिए. बुवाई के 45 दिन बाद ढैंचा को मिट्टी पलट हल से उसकी जुताई कर मिट्टी में दबा देना चाहिए. इसके बाद जब किसान धान की रोपाई करेंगे तब ढैंचा से बनी हरी खाद धान के लिए रामबाण का काम करेगी.

सहायक विकास अधिकारी कृषि सुग्रीव शुक्ला ने बताया कि हरी खाद के लिए मूंग के साथ ढैंचा की खेती पर जोर दिया जा रहा है. ढैंचा का बीज किसानों को अनुदान पर आसानी से उपलब्ध भी कराया जा रहा है. हरी खाद की तुलना में ढैंचा अधिक कार्बनिक अम्ल पैदा करता है. इसके कारण ऊसर लवणीय और क्षारीय भूमि सुधार का ढैंचा मिट्टी को उपजाऊ बनाता है. उन्होंने बताया कि 25-30 टन हरी खाद प्रति हेक्टेयर पैदा होती है जो अन्य खादों से बहुत अधिक है.

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