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अभिभावक बोलेः मंत्री-सांसदों के हैं निजी स्कूल, कैसे मिलेगा फीस नियंत्रण कानून का लाभ

योगी सरकार ने निजी स्कूलों की फीस पर मनमानी को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम 2018 लागू किया. पहली बार अध्यादेश के रूप में 9 अप्रैल 2018 को लेकर आए. इस अधिनियम के तीन साल पूरे होने जा रहे हैं. ETV Bharat ने जब इस कानून की जमीनी हकीकत की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं.

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Published : Apr 3, 2021, 5:26 AM IST

फीस अध्यादेश.
फीस अध्यादेश.

लखनऊःयूपी सरकार ने 9 अप्रैल 2018 को निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के मकसद से फीस अध्यादेश जारी किया. अगस्त 2018 में इसे कानून का रूप दे दिया गया. इस कानून को तीन साल पूरे होने जा रहे हैं. ETV Bharat ने इस कानून की जमीनी हकीकत की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. सरकारी दावें चाहें जितने किए जाएं लेकिन, आज भी अभिभावकों को कई निजी स्कूल प्रबंधनों की मनमानी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. आरोप यह हैं कि इस कानून के लागू होने के बाद निजी स्कूल प्रबंधनों मनमानी करने की छूट मिल गई है. आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि ज्यादातर स्कूलों में मंत्री, सांसद, विधायक शामिल हैं. ऐसे में उन्हें पूरी तरह से लाभ पहुंचाया गया है.

फीस नियंत्रण कानून का लाभ.

यह है कानून की जमीनी हकीकत

प्रावधानः प्रवेश शुल्क विद्यालय में नवीन प्रवेश के समय लिया जाएगा.

जमीनी हकीकतः राजधानी के स्कूलों में प्री-प्राइमरी से पहली कक्षा, कक्षा पांच से छह में जाने पर, कक्षा आठ से नौ में पहुंचने पर और कक्षा 10 से 11में पहुंचने पर अभिभावकों को प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है. यह व्यवस्था सिर्फ निजी स्कूलों में ही नहीं बल्कि शहर के बड़े मिशनरी स्कूलों में भी लागू है. हैरानी की बात यह है कि यह शुल्क 15 से 30 हजार रुपये तक है.

प्रावधानः प्रत्येक मान्यता प्राप्त विद्यालय प्रमुख, प्रत्येक शैक्षिक सत्र प्रारंभ होन के पूर्व समुचित प्राधिकारी को, आगामी शैक्षिक वर्ष के दौरान विद्यालय द्वारा उद्ग्रहित किए जाने वाले शुल्क का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करेगा.

जमीनी हकीकतः राजधानी लखनऊ में प्राइवेट और मिशनरी स्कूलों की संख्या करीब 800 है, लेकिन वर्तमान शैक्षिक सत्र में अभी तक राजधानी लखनऊ में 10 प्रतिशत स्कूलों ने भी अपना ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है.

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प्रावधानः प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष प्रारंभ होने के 60 दिन पूर्व विद्यालय अपनी वेबसाइट पर शुल्क का विवरण अपलोड करेंगे.

जमीनी हकीकतः वर्तमान में लखनऊ के द मिलेनियम स्कूल, ला मार्टीनियर सरीखे 5 से 10 प्रतिशत स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो किसी ने भी अपनी फीस का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है. दाखिले तो शुरू हो गए हैं, लेकिन फीस क्या होगी. इस पर अन्तिम फैसला भी नहीं लिया गया है.

प्रावधानः कोई भी निजी स्कूल किसी भी विशिष्ट दुकान से पुस्तकें, जूते, मोजे और यूनिफार्म आदि क्रय करने के लिए मजबूर नहीं करेगा.

जमीनी हकीकतः राजधानी के एक नामचीन निजी स्कूलों को वीडियो कुछ दिन पहले ही वायरल हुआ. इसमें, स्कूल परिसर के अंदर यूनिफार्म बेंचे जाने का खुलासा हुआ था. यह काम सिर्फ एक स्कूल में नहीं बल्कि, 90 प्रतिशत स्कूल बेंच रहे हैं.

प्रावधानः प्रवेश के समय, वर्ग/कक्षा जिसमें छात्र विद्यालय में प्रवेश ले रहा हो, पर ध्यान दिए बिना विद्यालय अभिभावक को नये छात्रों के लिए उस विशिष्ट वर्ष के लिए लागू पूर्व शुल्क संरचना उपलब्ध कराएगा.

जमीनी हकीकतः शहर के निजी स्कूलों ने इसका खूब फायदा उठाया है. लामार्टीनियर गर्ल्स कॉलेज ने इसका लाभ उठाते हुए नर्सरी में होने वाले दाखिलों में एडमीशन फीस को 2500 रुपये से बढ़ाकर सीधे 30 हजार रुपये कर दिए. इसी तरह का इजाफा अन्य स्कूलों ने भी किया. अभिभावकों की शिकायत है कि इसका नतीजा आने वाले 10-12 सालों में दिखाई देगा. जब बच्चों की पढ़ाई का खर्च कई गुना ज्यादा होगा.

यह है अभिभावकों का दर्द

इस कानून का लाभ अभिभावक को बिलकुल भी नहीं मिला. बल्कि, स्कूल प्रबंधन इसका लाभ उठा रहे हैं. कोरोना काल में फीस नहीं बढ़ाई तो शिक्षकों का वेतन काट लिया. इनको कहीं से कोई नुकसान नहीं है. जूते मोजों से लेकर किताबें तक अभी भी बेंच रहे हैं. अभिभावक वैसे ही मजबूर है जैसे की पहले था.

-प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, अध्यक्ष, अभिभावक कल्याण संघ

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