लखनऊःयूपी सरकार ने 9 अप्रैल 2018 को निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के मकसद से फीस अध्यादेश जारी किया. अगस्त 2018 में इसे कानून का रूप दे दिया गया. इस कानून को तीन साल पूरे होने जा रहे हैं. ETV Bharat ने इस कानून की जमीनी हकीकत की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. सरकारी दावें चाहें जितने किए जाएं लेकिन, आज भी अभिभावकों को कई निजी स्कूल प्रबंधनों की मनमानी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. आरोप यह हैं कि इस कानून के लागू होने के बाद निजी स्कूल प्रबंधनों मनमानी करने की छूट मिल गई है. आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि ज्यादातर स्कूलों में मंत्री, सांसद, विधायक शामिल हैं. ऐसे में उन्हें पूरी तरह से लाभ पहुंचाया गया है.
यह है कानून की जमीनी हकीकत
प्रावधानः प्रवेश शुल्क विद्यालय में नवीन प्रवेश के समय लिया जाएगा.
जमीनी हकीकतः राजधानी के स्कूलों में प्री-प्राइमरी से पहली कक्षा, कक्षा पांच से छह में जाने पर, कक्षा आठ से नौ में पहुंचने पर और कक्षा 10 से 11में पहुंचने पर अभिभावकों को प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है. यह व्यवस्था सिर्फ निजी स्कूलों में ही नहीं बल्कि शहर के बड़े मिशनरी स्कूलों में भी लागू है. हैरानी की बात यह है कि यह शुल्क 15 से 30 हजार रुपये तक है.
प्रावधानः प्रत्येक मान्यता प्राप्त विद्यालय प्रमुख, प्रत्येक शैक्षिक सत्र प्रारंभ होन के पूर्व समुचित प्राधिकारी को, आगामी शैक्षिक वर्ष के दौरान विद्यालय द्वारा उद्ग्रहित किए जाने वाले शुल्क का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करेगा.
जमीनी हकीकतः राजधानी लखनऊ में प्राइवेट और मिशनरी स्कूलों की संख्या करीब 800 है, लेकिन वर्तमान शैक्षिक सत्र में अभी तक राजधानी लखनऊ में 10 प्रतिशत स्कूलों ने भी अपना ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है.
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प्रावधानः प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष प्रारंभ होने के 60 दिन पूर्व विद्यालय अपनी वेबसाइट पर शुल्क का विवरण अपलोड करेंगे.