लखनऊ: हर साल हम लोग 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (world environment day) मनाते है. इस दिवस को मनाने के पीछे उद्ददेश्य है कि लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक और सचेत करना. आपको पता है कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण देश में 32 फीसदी खेती योग्य जमीन अब बेजान हो चुकी है. नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में किए गए रिसर्च में यह कड़वा सच सामने आया है. उत्तर प्रदेश में भी पर्यावरण असंतुलन के चलते बंजर भूमि का विस्तार हो रहा है और उपजाऊ भूमि लगातार कम हो रही है. प्रदेश की 80 लाख हेक्टेयर भूमि प्रदूषित हो चुकी है.
पर्यावरणविद ने दी जानकारी
पर्यावरणविद इंजीनियर भरत राज सिंह ने बताया कि 1966-67 में शुरू हुई हरित क्रांति में रासायनिक उर्वरक के उपयोग पर जोर दिया गया था. इस कारण फसलों के उत्पादन में इजाफा हुआ है. आज भी पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत देश के किसान यूरिया, डीएपी और पेस्टिसाइड का खूब प्रयोग कर रहे हैं. इस कारण अब भूमि बंजर होती जा रही है. रासायनिक खादों के प्रयोग के चलते मिट्टी का मृदा स्वास्थ्य खराब हो रहा है. ऐसी जमीन में उगने वाले फल, सब्जियों और अनाज भी सेहत को खास फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में 1.80 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है, जो देश का 12 फीसदी है. प्रदेश की 80 लाख हेक्टेयर भूमि प्रदूषित हो चुकी है. रसायनिक उर्वरक और पेस्टिसाइट के कारण प्रदूषित कृषि भूमि का आकार लगातार बढ़ रहा है. मिट्टी की उर्वरता लगातार कम हो रही है. उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, सहारनपुर से लेकर बलिया तक इंडो-गंगेटिक बेल्ट में खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा में गिरावट आई है. वहीं, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में 5 सालों में फास्फेट जैसे पोषक तत्व में जबरदस्त कमी हुई है. सूक्ष्म पोषक तत्व में जिंक, कॉपर, आयरन और मैगजीन भी खेतों में कम हो रही है.
'जिस तेजी से रासायनिक उर्वरकों का खेती में प्रयोग हो रहा है, उससे भूमि विषाक्त हो रही है. इसका असर उत्पादन पर भी पड़ रहा है . एक आंकड़े के मुताबिक पूरे देश की 57 फीसदी भूमि प्रदूषित हो चुकी है और इसका असर हमारे जीवन चक्र पर भी पड़ने लगा है.'