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विश्व पर्यावरण दिवस : चिंता का सबब बन रहा ध्वनि प्रदूषण, बच्चे भी हो रहे प्रभावित - effects of sound pollution

दुनियाभर में 5 जून को हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इस दिन कई कार्यक्रम का आयोजन कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक किया जाता है. लेकिन, वायु और जल प्रदूषण के साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी वर्तमान में चिंता का विषय बनता जा रहा है. ध्वनि प्रदूषण बुजुर्गों के साथ-साथ बच्चों पर भी दुष्प्रभाव डालता है.

ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण

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Published : Jun 5, 2021, 6:15 PM IST

लखनऊ: हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इस दिन प्रदूषण के बढ़ते स्तर को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती हैं. चाहे वायु प्रदूषण हो, जल प्रदूषण या फिर ध्वनि प्रदूषण. वायु और जल प्रदूषण के साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी वर्तमान में चिंता का कारक बनता जा रहा है. लगातार बढ़ते वाहनों की संख्या और उनके हॉर्न से निकलने वाली तेज आवाज के कारण लोगों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है. आलम यह है कि प्रेशर हॉर्न लोगों के सुनने की क्षमता ही खत्म कर दे रहे हैं. ध्वनि प्रदूषण आज की गंभीर समस्या बनता जा रहा है. इस पर नियंत्रण के लिए नियम कानून तो तमाम हैं, लेकिन जिम्मेदार कार्रवाई करने से झिझक रहे हैं. लिहाजा, इसका नुकसान आम लोगों को हो रहा है.

बच्चे भी हो रहे ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित
ध्वनि प्रदूषण से बढ़ रही दिक्कत

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, लखनऊ ध्वनि प्रदूषण के मामले में काफी आगे है. कुछ माह पहले केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने ध्वनि प्रदूषण वाले स्थानों का आधुनिक उपकरणों के जरिए रियल टाइम डाटा एकत्र किया था. इसमें चारबाग, हुसैनगंज, चौक, अमीनाबाद, पीजीआई, तेलीबाग, अमौसी, आलमबाग, अलीगंज, चिनहट, कपूरथला, हजरतगंज, गोमती नगर, इंदिरा नगर इलाके शामिल थे. इन इलाकों के औद्योगिक क्षेत्रों में ध्वनि का स्तर 80 डेसीबल और घरेलू एरिया में 70 डेसीबल तक दर्ज किया गया.

ध्वनि प्रदूषण बन रही बड़ी समस्या


इस तरह फैलता है ध्वनि प्रदूषण

मोटर वाहनों से सबसे ज्यादा शोर होता है. ध्वनि प्रदूषण, कार्यालय के उपकरण, निर्माण कार्य के उपकरण, बिजली उपकरण, ऑडियो, मनोरंजन सिस्टम के साथ-साथ कई अन्य चीजों से होता है. इसके चलते लोगों में कई बीमारियां भी पैदा हो रही हैं. इसके अलावा वनों के कटान, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न से निकलने वाली आवाज भी ध्वनि प्रदूषण में इजाफा कर रही है. उत्तर प्रदेश में करीब 21,23, 813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है. इनमें से तमाम वाहनों में ऐसे हॉर्न लगे हुए हैं, जो ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं.

ध्वनि प्रदूषण अधिक होने से चिड़चिड़ापन भी होता है.

ये हैं ध्वनि प्रदूषण के मानक

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, नींद की अवस्था में वातावरण में 35 डेसीबल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए. दिन का शोर 45 डेसीबल से ज्यादा नुकसानदेह है. रिपोर्ट के जरिए दिन-रात के डेसीबल का अंतर और उससे होने वाले नुकसान को बताया गया. भारतीय मानक संस्थान के स्वीकृत डेसीबल में ध्वनि स्तर इस प्रकार दर्ज किया गया है. ग्रामीण क्षेत्र में 25 से 30, उपनगरीय 30 से 35, नगरीय (आवासीय) 35 से 40, नगरीय (व्यवसायिक) 40 से 45, नगरीय सामान्य 45 से 50, औद्योगिक क्षेत्र 50 से 55 होता है. विभिन्न भवनों में स्वीकृत आंतरिक ध्वनि स्तर रेडियो और टेलीविजन स्टूडियो में 25 से 30, संगीत कक्ष 30 से 35, ऑडिटोरियम, हॉस्टल 35 से 40, कोर्ट, निजी कार्यालय 40 से 45, सार्वजनिक कार्यालय, बैंक 45 से 50, रेस्टोरेंट्स 50 से 55.


शहर के इन इलाकों में दिन-रात का ध्वनि प्रदूषण वार्षिक

क्षेत्र दिन औसत (डेसीबल) रात औसत (डेसीबल)
तालकटोरा 63.30 51.13
हजरतगंज 66.23 61.23
पीजीआई 53.33 51.30
इंदिरा नगर 52.50 44.13
गोमती नगर 64.83 59.61
चिनहट 63.13 53.18
यूपीपीसीबी 61.28 54.12
आईटी कॉलेज 62.28 54.54
एयरपोर्ट 62.50 55.27
अलीगंज 70.53 66.10


इतने से ज्यादा ध्वनि तो बीमार होना तय

इंसान की श्रवण क्षमता 80 डेसिबल होती है. इससे ज्यादा की आवाज इंसान सहन नहीं कर सकता. 0 से 25 डेसिबल पर शान्ति का वातावरण रहता है. आवाज की तीव्रता 80 डेसिबल से अधिक होने पर मनुष्य बीमार होने लगता है. जब आवाज की तीव्रता 130-140 डेसिबल हो जाती है, तो व्यक्ति को बेचैनी होने लगती है. लगातार इस तीव्र आवाज के बीच रहने पर व्यक्ति बहरा भी हो सकता है.

लगातार बढ़ते वाहनों की संख्या से बढ़ रहा ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
  • मनुष्य के जीवन पर कई तरह से असर
  • अधिक शोर के कारण अनिद्रा
  • सिरदर्द, थकान, श्रवण क्षमता में दिक्कत
  • आक्रोश, चिड़चिड़ापन और उत्तेजना

बच्चे भी हो रहे हैं प्रभावित

सिविल अस्पताल की चिकित्सक डॉ. चारू तिवारी बताती हैं कि ध्वनि प्रदूषण से लोगों को सुनने में काफी दिक्कत हो रही है. तमाम रोगी इलाज के लिए आ रहे हैं. खास बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों ने घर में ऑनलाइन पढ़ाई की, ईयर फोन का इस्तेमाल किया. ऐसे में उनकी संख्या भी बढ़ रही है. लोगों को ध्वनि के जो मानक हैं उनका पूरा पालन करना चाहिए. वाहनों में लगे हॉर्न और तेज ध्वनि से लाउडस्पीकर से निकलने वाली आवाज लोगों के कानों को प्रभावित कर रही है.


सरकारी वाहनों पर सरकार दे ध्यान

केवल बहरापन ही नहीं, अधिक ध्वनि प्रदूषण होने से चिड़चिड़ापन, तनाव आदि की भी शिकायतें देखने में आ रही हैं. ध्वनि प्रदूषण पर जो ध्यान सरकार को देना चाहिए या प्रशासन को, वह नहीं दिया जा रहा है. इसके लिए ध्वनि प्रदूषण निवारण एक्ट बना हुआ है. उसका पालन नहीं हो पा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह से वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उसे कैसे कम करें, इस पर ध्यान देना चाहिए.

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