वाराणसी: हर साल एक दिसंबर को विश्वभर के लोग इस बीमारी के साथ जी रहे लोगों का हौसला बढ़ाने और इसका शिकार होकर जान गंवाने वालों की याद में विश्व एड्स दिवस मनाते हैं, इसकी शुरुआत 1998 में की गई. तब से हर साल विश्वभर की स्वास्थ्य एजेंसियां, संयुक्त राष्ट्र, सरकारें और सिविल सोसाइटी मिलकर इस बीमारी से जागरूक करने के लिए कैंपेन चलाते हैं. प्रत्येक विश्व एड्स दिवस विशिष्ट विषय पर आधारित होता है. इस साल की थीम- 'वैश्विक एकजुटता, साझा जिम्मेदारी' है. यह थीम विश्व स्तर पर लोगों को एड्स के प्रति सतर्क करती है.
HIV (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस), एक ऐसा वायरस है जो शरीर में कोशिकाओं पर अटैक करता है, जो शरीर को इंफेक्शनन से लड़ने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है. सरल शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी स्थिति है जो तब आती है जब इम्यून सिस्टीम पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है. वायरस मानव रक्त, यौन तरल पदार्थ और स्तन के दूध में रहता है और जब इसका ट्रीटमेंट नहीं किया जाता है, तो यह एड्स (एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम) की ओर जाता है.
असमानताओं को समाप्त करें, एड्स समाप्त करें इस वर्ष की हैं थीम
वाराणसी के एआरटी सेंटर की वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रीति अग्रवाल ने बताया कि हर साल एक दिसंबर को एचआईवी, एड्स के प्रति समुदाय में जागरूकता बढ़ाने व मिथ्य व भ्रांतियों को तोड़ने के लिए विश्व एचआईवी, एड्स मनाया जाता है. इस वर्ष की थीम असमानताओं को समाप्त करें, एड्स समाप्त करें निर्धारित की गई है. बताते हैं कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों ने मां के एचआईवी संक्रमण से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का बचाव करना मुमकिन कर दिया है.
बशर्ते गर्भवती के बारे में समय रहते यह पता चल जाए कि वह एचआईवी संक्रमित है, इसलिए सुरक्षित मातृत्व का सुख प्राप्त करने के लिए गर्भवती को अपना एचआईवी जांच जरूर करवा लेना चाहिए. गर्भधारण के तीसरे-चौथे महीने के बाद संक्रमण का पता चलने पर बच्चे को खतरा अधिक होता है, इसलिए एचआईवी संक्रमित गर्भवती का जितनी जल्द उपचार शुरू हो जाता है उतना ही उसके बच्चे को खतरा कम होता है.