लखनऊ:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में सोमवार को लखनऊ में श्रम विभाग की ओर से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य समेत आईएलओ के प्रतिनिधि मौजूद रहे. श्रम कानूनों के अनुपालन की चुनौतियों पर हुई चर्चा के दौरान श्रम संगठनों ने उत्तर प्रदेश में सरकारी नाकामियों की ओर ध्यान आकर्षित किया .
लखनऊ में मनाया गया आईएलओ का शताब्दी वर्ष. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के डिप्टी डायरेक्टर संतोषी ससाकी ने अपने संबोधन में आईएलओ की उपलब्धियों और इसके उद्देश्यों की चर्चा की. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार अंतरराष्ट्रीय श्रम कानून को लागू कराने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है. ये भी पढ़ें: साइकिल पर सवार हुए बसपा के पूर्व मंत्री, बोले- सपा में आने को तैयार हैं कई बड़े नेता
दुनिया के कई देशों में अभी श्रम कानूनों को पूरी तरह लागू करना चुनौती बना हुआ है. सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम लेने वाले कई देश हैं. उत्तर प्रदेश सरकार की कोशिश है कि काम के घंटे निर्धारित करने की प्रक्रिया को सख्ती से लागू करें.
-सुरेश चंद्रा, प्रमुख सचिव, श्रम विभाग
पूरी दुनिया में लोगों के मध्य सामाजिक एवं आर्थिक गड़बड़ी को दूर करने और सामाजिक न्याय की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना की गई. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने विश्व की समस्याओं को स्थाई अंतरराष्ट्रीय दर्जा प्रदान किया है और श्रम कानूनों को सुधार के साथ-साथ श्रमिकों की जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
-स्वामी प्रसाद मौर्य, श्रम मंत्री, यूपी सरकार
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कार्यशाला के तृतीय सत्र में गाजियाबाद से आए वीरेंद्र सिंह सिरोही ने उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी ईएसआईसी और ईपीएफ के मामलों को उठाया. उन्होंने कहा कि कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या है कि उन्हें न तो चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं और न उन्हें मिनिमम वेज और इपीएफ का लाभ मिल पा रहा है.