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महिलाएं स्वावलंबन की लिख रही नई इबादत, गांवों में समूह बनाकर खेती

लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र के गांवों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने सामूहिक खेती और स्वयं सहायता समूह बनाकर महिला स्वावलंबन को गति देने का काम किया है. इस क्षेत्र की महिलाएं अब घर की चारदीवारी तक सीमित न सिर्फ बाहर निकल रही हैं, बल्कि पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर कुदाल और फावड़ा भी चला रही हैं.

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समूह में महिलाएं कर रही खेती

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Published : Feb 3, 2021, 7:06 PM IST

Updated : Feb 3, 2021, 11:04 PM IST

लखनऊःमलिहाबाद क्षेत्र के गांवों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने सामूहिक खेती और स्वयं सहायता समूह बनाकर महिला स्वावलंबन को गति देने का काम किया है. इस क्षेत्र की महिलाएं अब घर की चारदीवारी तक सीमित न सिर्फ बाहर निकल रही हैं, बल्कि पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर कुदाल और फावड़ा भी चला रही हैं. महिलाएं सामूहिक खेती के साथ गांवों में सरकारी राशन वितरण का कार्य भी कर रही हैं. जिससे उनकी आजीविका अच्छे से चल रही है. इसी का नतीजा है कि इन गांवो की महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. ये सब संभव खंड विकास अधिकारी की प्रेरणा और स्वयं की मेहनत और सहायता समूह के प्रयासों से संभव हुआ.

समूह में खेती से मिल रहा फायदा

क्या है राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का शुभारंभ केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने साल 2011 में किया था. विश्व बैंक द्वारा समय-समय पर निवेश के माध्यम से सहायतित इस मिशन का लक्ष्य वित्तीय सेवाओं के बेहतर प्रयोग के माध्यम से ग्रामीण गरीब नागरिकों के लिए ऐसे योग्य और प्रभावी संस्थागत मंच तैयार करना है, जिससे वे अपनी घरेलू आय में वृद्धि कर सकें.

आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
स्वयं सहायता समूह को फायदेस्वयं सहायता समूह महिलाओं का वो समूह है, जिसमें सब कुछ सामूहिक रूप से होता है. गांव की 10 से 15 महिलाएं मिलकर एक समूह बनाती हैं. जिसका बकायदे एक नाम रखा जाता है. इनके सदस्यों को एक फीसदी ब्याज पर लोन भी दिया जाता है.

सरकारी राशन वितरण से चल रही आजीविका
लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की सदस्य चंद्र कुमारी बताती है कि मलिहाबाद खंड विकास अधिकारी संस्कृता मिश्रा ने सबसे पहले हम लोगों को समूह बनवाया. जिसके बाद यूपी राज्य ग्रमीण अजीविका मिशन के तहत समूह को रिवलिंग फंड का 15 हजार और सीआरएफ का एक लाख 10 हजार रुपये मिला. जिससे महिला नर्सरी में फूलों की खेती के साथ साथ आंगनबाडी में हम लोग राशन बाटते हैं. समूह के पैसों से दाल खरीद कर कोटेदार से गेहूं चावल लेकर वितरित करते हैं. जिससे महिलाओं के प्रति महीने के एक हजार रुपये बचता है. इससे समूह की महिलाओं को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

गुलाब की खेती कर हो रही आर्थिक रूप से सबल
दुर्गा स्वयं सहायता समूह की सदस्य महिला संजू देवी ने बताया कि हम लोगों ने मिलकर दुर्गा स्वयं सहायता समूह बनाया. जिसमे हम लोगों को सीआईएफ का एक लाख दस हजार रुपया मिला. जिसके बाद समूह की महिलाओं को दस दस हजार दे दिए गए. उन पैसों से समूह की महिलाओं ने अपने खेतों में गेंदा और गुलाब की खेती की. जिसके बाद महिलाओं के खेतों में फूल की अच्छी पैदावार हुई. उन फूलों को तोड़कर मंडी भेजा जा रहा है. जिससे समूह की अच्छी आमदनी हो रही है.

किसी से पैसे मांगने की नहीं पड़ती जरूरत
दुर्गा स्वयं सहयता समूह की सदस्य बड़े गर्व के साथ कहती हैं, कि अब हमारे गांव की किसी भी महिला को महाजनों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता. क्योंकि अब हमारे पास जमीन ही नहीं नकद पैसा भी है. इसी गांव की मुन्नी देवी का दावा है कि अगर इसी मॉडल को पूरे देश में अपना लिया जाए तो महिलाएं भी स्वावलम्बी बन सकती हैं.

आर्थिक स्वावलंबन के लिए किया जा रहा जागरूक
खंड विकास अधिकारी मलिहाबाद संस्कृता मिश्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं. एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह का गठन होता है. ब्लॉक मलिहाबाद में इस प्रकार के कई महिलाओं के स्वयं सहायता समूह हैं. जिसको समय समय पर कार्य की ट्रेनिंग दी जाती है.

Last Updated : Feb 3, 2021, 11:04 PM IST

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