लखनऊ: देश की सियासत में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों का बड़ा अहम किरदार माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि देश की राजनीति यूपी से ही तय होती है. राज्य में एक बड़ा वोट बैंक मुसलमानों का भी है. मुस्लिमों का वोट हासिल करने के लिए सपा समेत कई बड़ी पार्टियां एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं.
समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे और मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से किनारा करके अपनी नई प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बना ली है और लोकसभा चुनाव में कूद गए हैं. प्रसपा को पीस पार्टी समेत मुसलमानों के कई बड़े संगठनों ने समर्थन का ऐलान किया है. ऐसे में माना जा रहा है कि चाचा और भतीजे के विवाद में इस बार मुसलमानों का वोट आपस में ही बंट सकता है.
लखनऊ- यूपी में चाचा-भतीजे की लड़ाई से किसको फायदा - बहुजन समाज पार्टी
देश में सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता कई लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. कांग्रेस और महागठबंधन इन वोटों पर नजर गड़ाए हुए है. लेकिन माना जा रहा है कि आपसी मतभेदों के चलते अलग पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव महागठबंधन का गणित बिगाड़ सकते हैं. राज्य के कई बड़े मुस्लिम संगठन शिवपाल यादव की पार्टी को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी को फायदा पहुंचने की उम्मीद है.
प्रसपा के प्रवक्ता इरफान मलिक का कहना है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अल्पसंख्यकों की बात तो करते हैं लेकिन मुसलमानों के मुद्दे पर खुलकर कुछ नहीं बोलते हैं. इस बार मुसलमान भी सभी पार्टियों के मेनिफेस्टो को देखेगा और सोच-समझ कर अपने वोट का फैसला करेगा.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी मुस्लिम वोटों के बंटने से इंकार करते हैं. वे कहते हैं, "इस चुनाव में जनता उम्मीद के साथ गठबंधन की ओर देख रही है. जहां तक प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सवाल है तो वह कहीं गिनती में नजर नहीं आ रही है."
आंकड़ो के मुताबिक यूपी में 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं. ऐसे में मुसलमान वोट नतीजों को प्रभावित कर सकता है. समाजवादी पार्टी के खाते में जाने वाला मुस्लिम वोट शिवपाल सिंह यादव के साथ भी जा सकता है. दोनों पार्टियों के बीच मुस्लिम वोट का बिखराव सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है.