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व्यापारी भी ले सकेंगे असीमित अधिकार वाली विशेष सुरक्षा, जानिए योगी सरकार ने क्यों किया गठन - लखनऊ ताजा खबर

यूपी की योगी सरकार ने प्रदेश में आठवीं जांच एजेंसी (SSF) का गठन किया है. अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी का कहना है निजी संस्था, कंपनी और व्यक्ति इस एजेंसी की सेवा ले सकेंगे. एजेंसी तीन माह के अंदर काम करना शुरू कर देगी.

जानिए क्यों सीएम योगी ने UPSSF का गठन किया.
सीएम योगी आदित्यनाथ.

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Published : Sep 15, 2020, 7:44 PM IST

Updated : Sep 15, 2020, 7:53 PM IST

लखनऊ: योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश पुलिस में विशेष सुरक्षा बल (SSF) नाम से आठवीं जांच एजेंसी बनाई है. जिसे पहले की सभी सात जांच एजेंसियों से ज्यादा अधिकार दिये गये हैं. एजेंसी के अधिकारी किसी भी व्यक्ति, संस्था प्रमुख को एफआईआर से पहले और वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकते हैं. उनके घर, कार्यालय की तलाशी भी ले सकेंगे. अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी का कहना है निजी संस्था, कंपनी और व्यक्ति इस एजेंसी की सेवा ले सकेंगे. इसकी फीस अभी तय नहीं है. निजी क्षेत्र में ड्यूटी पर SSF के अधिकार बरकरार रहेंगे. एजेंसी तीन माह के अंदर काम करना शुरू कर देगी.

मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी.

जांच एजेंसी को दिए असीमित अधिकार
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 20 से 22 अगस्त तक चले विधानसभा के मानसून सत्र में विशेष सुरक्षा बल (UPSSF) बिल पास कराया था. जिस पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की मंजूरी मिलने के बाद 12 सितंबर को अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने बिल कानून में तब्दील हो जाने का आदेश जारी किया. नए कानून में नई जांच एजेंसी को असीमित अधिकार दिए हैं.

पुलिस महानिदेशक को दिए गए ये निर्देश
उत्तर प्रदेश पुलिस की शाखा के रूप में पहले से ही कार्यरत सात जांच एजेंसियों में से किसी को भी इतने अधिकार हासिल नहीं हैं और किसी भी जांच एजेंसी को निजी सेवा में लगाया नहीं जा सकता है, मगर एसएसएफ को निजी क्षेत्र की सेवा अधिकार भी है.तीन माह में होना है बल का गठनसरकार ने यूपी के पुलिस महानिदेशक हीतेश अवस्थी को तीन माह के अंदर इस जांच एजेंसी का ढांचा खड़ा करने का आदेश दिया है. एजेंसी का प्रमुख अपर पुलिस महानिदेश (एडीजी) स्तर का अधिकारी होगा. इस बल के लिए 1,913 नए पदों का सृजन होगा. इसकी पांच बटालियन बनेगी, जिस पर 1746 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

पुलिस महानिदेशक हीतेश अवस्थी.

सूत्रों का कहना है कि एजेंसी में एक आईजी, दो डीआईजी और चार एसपी स्तर के अधिकारी होंगे. जवानों का चयन पहले पीएसी से किया जाएगा. यह एसएसएफ में प्रतिनियुक्ति पर आएंगे. बाद में सेवा की संतुष्टि होने पर इन्हें नई जांच एजेंसी में समायोजित किया जाएगा, पर अभी यह प्रस्ताव है, जिसे सरकार की मंजूरी मिलना बाकी है.क्या काम करेगी एजेंसीयूपी एसएसएफ इलाहाबाद हाईकोर्ट, उसकी लखनऊ खंडपीठ, जिला न्यायालय, प्रदेश सरकार के प्रशासनिक भवन, मंदिर (पूजा स्थल), मेट्रो, एयरपोर्ट, बैंक, वित्तीय संस्था, औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में तैनात होगी.

नई जांच एजेंसी को अधिकारनए कानून के मुताबिक, विशेष सुरक्षा बल के सदस्यों को यह विश्वास हो कि कोई संदिग्ध या अभियुक्त तलाशी वारंट जारी कराने की अवधि के अंतराल में ही भाग सकता है, अपराध के साक्ष्य मिटा सकता है, तो उस अभियुक्त को यह बल तुरंत गिरफ्तार कर सकता है. संदिग्ध के घर, संपत्ति की तत्काल तलाशी ली जा सकती है. सर्च वारंट या मैजिस्ट्रेट की अनुमति जरूरी नहीं होगी. बस, एसएसएफ के पास सबूत होने चाहिए. अधिनियम के मुताबिक, ऐसी किसी भी कार्रवाई में सुरक्षा बल के अधिकारी या सदस्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराया जा सकेगा. सरकार की इजाजत के बिना कोई भी कोर्ट विशेष सुरक्षा बल के किसी सदस्य के विरुद्ध किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी.

उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच एजेंसियां

आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू)
उत्तर प्रदेश के आर्थिक घोटालों, भ्रष्टाचार की जांच के लिए यह एजेंसी गठित की गई थी. यह एक्सक्लूसिवली आर्थिक भ्रष्टाचार की ही जांच करती है.

सतर्कता अधिष्ठान (यूपी विजिलेंस)
यह एजेंसी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, मंत्री, विधायक यानी सभी प्रकार के लोक सेवकों के भ्रष्टाचार, भेदभाव पूर्ण कार्रवाई की जांच करती है. मगर इसकी जांच पर कोई कार्रवाई मुख्यमंत्री अथवा गृहमंत्री की अनुमति से ही हो सकती है.

सीबीसीआईडी
इस एजेंसी की कमान डीजी पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी के हाथ में है. यह संगठन आर्थिक, सामाजिक, आपराधिक मामलों की जांच के लिए गठित किया गया था. किसी प्रकरण की जांच सीबीसीआईडी से कराने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री को गृह मंत्रालय के जरिये आदेश जारी करना होता है.

एसआईटी
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भ्रष्टाचार की जांच के लिए इस एजेंसी का गठन किया था. अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी इसके मुखिया हैं.

एसटीएफ (स्पेशल टॉस्क फोर्स)
तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने संगठित अपराध पर नियंत्रण के लिए इस एजेंसी का गठन किया था. इस एजेंसी की कमान अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) स्तर के अधिकारी के हाथ में है.

एटीएस (एन्टी टेररिस्ट स्क्वॉड)
मनमोहन सिंह सरकार के निर्देश पर तत्कालीन मायावती सरकार ने इस एजेंसी का गठन किया था, जिसकी कमान अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी के पास है. यह एजेंसी मुख्य रूप से आतंकवाद के खिलाफ कार्य करती है.

भ्रष्टाचार निवारण संगठन
अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी इस एजेंसी के मुखिया हैं. यह एजेंसी स्टेट के कर्मचारियों का भ्रष्टाचार रोकने के लिए गठित हुई थी.

यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू.

अजय कुमार लल्लू ने बताया 'काला कानून'
यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने इस कानून को काले कानून की संज्ञा देते हुए कहा कि 'यूपी में कानून का नहीं जगंल राज हो गया है। भाजपा सरकार एसएसएफ के जरिए विरोधियों को कुचलने की तैयारी में है. इसके साथ ही यह पुलिस के निजीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है. कानून से दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों का दमन होगा, न दलील, न वकील के सिद्धांत वाले इस कानून के खिलाफ हम सदन से लेकर सड़क तक लड़ेंगे.

पूर्व डीजीपी ए. के. जैन.

पूर्व डीजीपी ए. के. जैन ने दी प्रतिक्रिया
पूर्व पुलिस महानिदेशक अरविंद कुमार जैन का कहना है कि यह भी एक प्रयोग है. इस तरह का कानून बनाना खराब नहीं है, मगर इसे लागू कैसे किया जाता है, यह देखने वाली बात है. जैन कहते हैं खामिया हर इंतजाम में होती है, मगर इनकी वजह से संस्थाएं भंग तो नहीं की जा सकती हैं. जिन जगहों पर इन बलों की तैनाती होनी है, वहां दुरुपयोग की ज्यादा गुंजाइश दिखती नहीं है. अधिनियम में निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को सुविधा देने की बात, यह जरूर अटपटा है और इसके खतरे हैं.

सपा पूर्व राष्ट्रीय सचिव राजेश दीक्षित बोले, लोकतंत्र के हित में नहीं है कानून
सपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव राजेश दीक्षित कहते हैं कि योगी सरकार शुरू से ही पुलिस को असीमित अधिकार देने की रणनीति पर काम कर रही है. पुलिस कमिश्नरी लागू करने में सरकार ने कितना उत्साह दिखाया. यूपीकोका लाने में हड़बड़ी दिखाई, संपत्ति वसूली कानून बनाया. यह सब इस सरकार की कार्यशैली का हिस्सा है. जिसके दीर्घकालिक परिणाम होंगे, आने वाले दिनों के लिए यह ठीक नहीं है. आज जो लोग सत्ता में हैं, कल वही विपक्ष में होंगे. ऊपर से पुलिस बल के निजीकरण की दिशा में भी यह एक कदम है, जो लोकतंत्र के हित में नहीं है.

अधिवक्ता अखिलेश सिंह बोले, बंधक हो सकता है आर्टिकल 21
हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अखिलेश सिंह कहते हैं कि जब औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए पहले ही सीआईएसएफ है. तब राज्य को इस कानून की क्या जरूरत थी. वह कहते हैं कि " कानून में जो प्राविधान है, उससे सांविधानिक सुरक्षा खत्म होने का खतरा है. आर्टिकल 21 के तहत मिला संरक्षण विशेष सुरक्षा बल के अधिकारी या सिपाही के निर्णयों का बंधक हो जाएगा.

Last Updated : Sep 15, 2020, 7:53 PM IST

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