लखनऊः बीजेपी के पितामह कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी अयोध्या में राममंदिर की राजनीति कर 2 सीटों वाली पार्टी को केंद्र की सत्ता में काबिज कर दिया था. बीजेपी जब से सत्ता के केंद्र में आई, तब से पूरे देश में दो तरीके के राष्ट्रवाद की चर्चा जोरों पर होने लगी. पहला देशप्रेम और दूसरा सांस्कृतिक और धार्मिक राष्ट्रवाद. इसी को लेकर हम उत्तर प्रदेश के धार्मिक नगरों के राजनीतिक समीकरण पर एक नजर डालने जा रहे हैं. जिसमें वाराणसी, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयागराज और मथुरा के सियासी स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे.
सबसे पहले हम बात करेंगे पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी की. इस जिले में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने सभी आठ सीटों पर जीत हासिल की थी. छह सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी ओर एक-एक सीट पर ओमप्रकाश की सुभासपा और अनुप्रिया पटेल के अपना दल को जीत मिली थी.
लेकिन इस बार सुभासपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है. अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल भी सपा के साथ आ गई हैं. ऐसे में सपा, सुभासपा और कृष्णा पटेल ने बीजेपी को कड़ी चुनौती दे दी है.
वाराणसी इसलिए भी खास हो जाता है क्यों कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से सांसद है. यहां की सीट हारने का मतलब है पीएम मोदी के जादूई तिलिस्म को खत्म करना. अगर विपक्ष ऐसा करने में सक्षम होता है, तो आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की दुस्वारियां और बढ़ जाएंगी. हालांकि ऐसा होने की उम्मीद राजनीतिक जानकार कम ही मानते हैं.
आइये हम समझने की कोशिश करते हैं वाराणसी के इन विधान सभा क्षेत्रों के बारे में.. जिनमें वाराणसी दक्षिणी, वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तरी, रोहनिया, पिंडरा, अजगरा, सेवापुरी और शिवपुर विधानसभा शामिल है.
शहर उत्तरी विधानसभा:
वाराणसी शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ये सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी अहम है, क्योंकि आजादी के बाद से ही इस सीट पर बीजेपी को कामयाबी मिलती रही है. 1951 से 2017 के बीच 19 विधानसभा चुनावों में से 3 भारतीय जनसंघ ने जीते और 5 बार भारतीय जनता पार्टी ने इस विधानसभा पर जीत दर्ज की. 5 बार यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की. जबकि 1996 से 2007 तक 4 बार समाजवादी पार्टी ने इस विधानसभा सीट पर अपना परचम लहराया था.
2012 और फिर 2017 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से बीजेपी के रविंद्र जायसवाल ने इस सीट से जीत दर्ज करने का काम किया. वर्तमान समय में विधायक रविंद्र जायसवाल योगी सरकार में स्टांप और न्यायालय शुल्क एवं निबंधन विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में काम कर रहे हैं.
अगर वाराणसी की उत्तरी विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए, तो इस विधानसभा में कुल वोटर्स की संख्या 4,18,649 है. सबसे बड़ी बात यह है कि वाराणसी की इस विधानसभा सीट में जातीय समीकरण कुछ और ही बयां कर रहे हैं. इस विधानसभा में मुस्लिम वोटर्स 15 फीसदी हैं. प्रतिशत के हिसाब से कुल मतदाताओं की संख्या में शहर उत्तरी विधानसभा में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या लगभग 8 से 9% है, जबकि क्षत्रिय मतदाता भी आठ से 9% और वैश्य भी इतने ही परसेंटेज में यहां मौजूद हैं. वहीं कायस्थ वोटर्स की बात करें तो 5%, भूमिहार 6 से 7%, यादव लगभग 7%, पटेल 2 से 3%, मौर्य एक से 2%, राजभर 2 से 3%, समेत अन्य वोटर्स की संख्या जातिगत आंकड़ों के आधार पर 2 से 4% के बीच है.
यानी इस विधानसभा सीट पर सबसे बड़ा किरदार अदा करने वाले मुस्लिम वोटर होंगे, जो निश्चित तौर पर पूरे खेल को पलटने का माद्दा रखते हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रविंद्र जायसवाल 1,16,017 वोट पाकर पहले नंबर पर थे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी 70,515 वोट पाये थे. तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के सुजीत कुमार को 32,574 वोट मिले थे.
शहर कैंट विधानसभाः
शहर की कैंट विधानसभा सीट पर 20 सालों से एक ही परिवार का कब्जा माना जाता है और वह परिवार है, पुराने संघ के लीडर रह चुके हरीश चंद्र श्रीवास्तव का. हरीश चंद्र श्रीवास्तव यहां से विधायक रहे और यूपी सरकार में मंत्री भी उनके बाद उनकी पत्नी और फिर वह और फिर अब वर्तमान समय में उनका बेटा सौरभ श्रीवास्तव इस विधानसभा सीट से विधायक है. इस विधानसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में हमेशा से ही कायस्थ वोटर माने जाते हैं.
यही वजह है कि लंबे वक्त से कायस्थ मतदाता यहां से चुनाव लड़ते रहे और हर बार जीत हासिल की. कायस्थ समाज से आने वाले हरीश चंद्र श्रीवास्तव के परिवार को ही भारतीय जनता पार्टी ने हर बार टिकट दिया और लगातार उनका परिवार इस सीट पर काबिज है. वर्तमान समय में यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 4,47,571 है. जिनमें अकेले कायस्थ मतदाताओं की संख्या 10 से 11% है. जबकि ब्राह्मण 6%, क्षत्रिय 4 से 5%, भूमिहार 3 से 4%, मुस्लिम छह से 7%, यादव 5 से 6%, पटेल 2%, राजभर 2 से 3% और अन्य 3 से 4% मौजूद हैं.
2017 में यहां से भारतीय जनता पार्टी के सौरभ श्रीवास्तव को 1,32,609 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव 71,283 वोट मिले थे और वे दूसरे नंबर पर थे. बहुजन समाज पार्टी के रिजवान अहमद 14,118 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे.
शहर दक्षिणी विधानसभाः
वाराणसी की शहर दक्षिणी विधानसभा सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा मानी जाती है. यह इकलौती ऐसी विधानसभा है, जो पूरी तरह से बीजेपी के गढ़ के रूप में जानी जाती है. 2022 के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा पर सभी की नजरें हैं. विश्वनाथ धाम से लेकर अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और मंदिर इसी विधानसभा में आते हैं. वर्तमान में यहां से डॉ. नीलकंठ तिवारी विधायक हैं, जो यूपी सरकार में पर्यटन और धर्मार्थ कार्य मंत्री समेत कई अन्य विभागों को भी देख रहे हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस विधानसभा सीट पर 8 बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक श्यामदेव राय चौधरी ने जीत हासिल की थी लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में उनका टिकट काटकर डॉ. नीलकंठ तिवारी को टिकट दिया गया.1989 से 2012 तक श्यामदेव राय चौधरी यहां से लगातार जीत हासिल करते रहे. 2017 के विधानसभा चुनाव में नीलकंठ तिवारी को 92,560 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के राजेश मिश्रा थे. उन्हें उस वक्त 75,334 वोट मिले थे और जबकि तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के राकेश त्रिपाठी 5,922 वोट पाये थे. इस विधानसभा सीट के जातीय समीकरण अपने आप में इस सीट को और भी खास बना देते हैं.
वर्तमान समय में इस विधानसभा सीट में कुल वोटर्स की संख्या 3,16,328 है. जिसमें मुस्लिम काफी महत्वपूर्ण हैं, यहां ब्राह्मण 8 से 9% की मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं. जबकि क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या 5 से 6% , वैश्य लगभग 7%, कायस्थ 4%, यादव 6% और मुस्लिम मतदाता 14% मौजूद हैं. अन्य वोटर जातिगत आधार पर 4% से ज्यादा यहां पर मौजूद हैं.
शिवपुर विधानसभाः
वाराणसी की शिवपुर विधानसभा की सीट वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पास है और यहां से योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर विधायक है. शिवपुर विधानसभा की सीट ऐसी सीट है जो लोकसभा में चंदौली सीट के अंतर्गत आती है. नए परिसीमन के बाद 2012 के विधानसभा चुनावों में यह सीट अस्तित्व में आई और बहुजन समाज पार्टी के उदय लाल मौर्या यहां से विधायक चुने गए. पहली बार इस सीट के बनने के साथ ही बसपा का यहां कब्जा था लेकिन 2017 में यहां से बीजेपी ने जीत दर्ज की और 54,000 से ज्यादा वोट के अंतर से अनिल राजभर ने बहुजन समाज पार्टी के वीरेंद्र सिंह को तीसरे स्थान पर धकेल दिया, जबकि दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी रही.
शिवपुर विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के अनिल राजभर को 1,10,453 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी से आनंद मोहन यादव को 56,194 वोट और तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी से वीरेंद्र सिंह को 46,657 वोट मिले थे.
जातिगत आंकड़ों के आधार पर अगर यहां की बात की जाए तो शिवपुर विधानसभा की सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 3,68,374 है. जिसमें सबसे बड़ा रोल दलित वोटर निभा सकते हैं. यहां पर दलित वोटर्स की संख्या 12 से 14% है. जबकि मुस्लिम 7%, यादव 8%, राजभर 5 से 6%, ब्राह्मण 6 से 7%, क्षत्रिय लगभग 10%, कायस्थ लगभग 2% और अन्य लगभग 5% मतदाता हैं.
रोहनिया विधानसभाः
जातिगत आधार पर इस विधानसभा सीट का अपना ही गणित है, क्योंकि पटेल बाहुल्य इलाके की यह सीट हमेशा से अपना दल के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती रही है. वर्तमान में यहां पर 10 से 11% पटेल वोटर्स हैं, जबकि 9% दलित वोटर मौजूद है. कांग्रेस ने यहां से राजेश्वर सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के सुरेंद्र सिंह इस सीट से विधायक हैं.
रोहनिया विधानसभा की बात की जाए तो यह विधानसभा 2012 के चुनावों में अस्तित्व में आई थी. 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के सुरेंद्र नारायण सिंह ने समाजवादी पार्टी के महेंद्र सिंह और सिटिंग एमएलए को यहां से हराया था. भारतीय जनता पार्टी को यहां से उस वक्त 1,19,885 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी को महज 62,332 वोट ही मिल पाए थे. यह विधानसभा सीट इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि एनएच इस विधानसभा से होकर गुजरता है और विकास के मामले में इस विधानसभा सीट को कई रिंग रोड और नेशनल हाईवे की सौगात पीएम मोदी के कार्यकाल में मिली है.
2012 में सोने लाल पटेल की अपना दल अनुप्रिया पटेल ने यहां से चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने मिर्जापुर से सांसद बनकर इस सीट को छोड़ दिया और यहां हुए उप चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की लेकिन 2017 में एक बार फिर से यह सीट बीजेपी के पास चली गई. इसी सीट से अनुप्रिया ने अपनी मां कृष्णा पटेल को हराया था. जिसके बाद से अपना दल दो टुकड़ों में बट गए.
सेवापुरी विधानसभाः
वाराणसी की सेवापुरी विधानसभा सीट वर्तमान समय में अपना दल एस के पास है. अपना दल भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी है. 2012 में परिसीमन के बाद सेवापुरी विधानसभा की सीट अस्तित्व में आई थी और पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां से परचम लहराया था. 2017 के विधानसभा चुनावों में सेवापुरी की इस सीट पर अपना दल ने जीत हासिल की और नील रतन पटेल ने समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र सिंह पटेल को 54 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस सीट के अस्तित्व में आने से पहले समाजवादी पार्टी इस सीट पर जीत दर्ज करती रही. वर्तमान में इस विधानसभा सीट पर कुल 3,40,057 वोटर्स हैं. जिनमें सबसे बड़ी भूमिका पटेल वोटर्स की है जिनकी परसेंटेज के हिसाब से मौजूदगी 10 से 12% है. जबकि ब्राह्मण भी इस विधानसभा सीट पर 10% से ज्यादा मौजूद है. यादव वोटर की संख्या भी यहां पर सात से आठ प्रतिशत है. जबकि अन्य वोटर की संख्या लगभग 5% से 6% है. सेवापुरी विधानसभा से बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल एस से नील रतन पटेल को 1,03,423 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी से सुरेंद्र सिंह पटेल को 54,241 वोट और महेंद्र कुमार पांडे को बहुजन समाज पार्टी से 35,657 वोट मिले थे.
अजगरा विधानसभाः
वाराणसी की 8 विधानसभा सीटों में से एक अजगरा विधानसभा की सीट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पास है. यहां से कैलाशनाथ सोनकर वर्तमान में विधायक हैं. उस वक्त बीजेपी के सहयोगी दल के रूप में सुभासपा ने यहां से जीत दर्ज की थी. हालांकि अब तो सुभासपा बीजेपी से अलग हो समाजवादी पार्टी के साथ है. इसलिए इस सीट पर इस बार चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है. वैसे यह सीट पहले बहुजन समाज पार्टी के पास हुआ करती थी. इसलिए दोबारा यह सीट बीएसपी फिर से हासिल करने की कोशिश जरूर करेगी. वर्तमान समय में अजगरा विधानसभा में वोटर्स कि अगर बात की जाए तो यहां 3,68,938 मतदाता हैं. जिसमें जातिगत आधार पर सबसे ज्यादा 14% दलित वोटर शामिल हैं. जबकि 8% वैश्य और 6% पटेल मतदाताओं के साथ 6% मुस्लिम मतदाता भी काफी निर्णायक भूमिका में नजर आएंगे. यहां पर अन्य वोटर की संख्या लगभग 6% है. अजगरा विधानसभा से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी उस वक्त बीजेपी की सहयोगी पार्टी थी. इन्हें 83,778 वोट मिले थे.
पिंडरा विधानसभाः
वाराणसी पिंडरा विधानसभा सीट का इतिहास बड़ा ही रोचक है. इस सीट को पहले कोलअसला विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 2012 के परिसीमन में इसे पिंडरा विधानसभा में शामिल किया गया. यह विधानसभा क्षेत्र मछली शहर संसदीय क्षेत्र में आता है वर्तमान में यहां से बीजेपी के अवधेश सिंह विधायक हैं. विधानसभा सीट को कामरेड का गढ़ कहा जाता था. क्योंकि यहां से उदल 8 बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे. उनको बीजेपी में जाने के बाद अजय राय ने 1996 में हराया और उसके बाद 2017 तक अजय राय यहां से विधायक रहे, लेकिन 2017 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की. वर्तमान में अजय राय को कांग्रेस ने यहां से टिकट दिया है. 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के अवधेश सिंह को 90,614 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के अजय राय को 52,863 वोट मिले थे. वर्तमान समय में यहां 3,69,265 मतदाता हैं. जिनमें दलित लगभग 9% ब्राह्मण 8% निर्णायक भूमिका में हैं.
अब बात करते हैं धार्मिक नगरी अयोध्या की. जिसकी राजनीति रुलिंग पार्टी बीजेपी करती आई है और अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है.
अयोध्या की राजनीतिक स्थिति
जिले में कुल 5 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें दरियाबाद, रूदौली, मिल्कीपुर, बीकापुर और अयोध्या शामिल है. इस जिले में कुल 18.45 लाख मतदाता हैं. इन पांचों सीटों पर इस बार कुल 46 प्रत्याशी मैदान में थे. पांचों सीटों पर काफी दिलचस्प मुकाबला था. यहां से कई बाहुबली उम्मीदवार मैदान में थे. वहीं बाहुबलियों ने अपनी पत्नियों को भी मैदान में में उतारा था.
अयोध्या विधानसभा सीटः
अयोध्या को भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है. इस बार बीजेपी के वेदप्रकाश गुप्ता और सपा के तेज नारायण पांडेय के बीच मुकाबला था. कांग्रेस ने रीता मौर्या और बीएसपी ने रवि मौर्या को मैदान में उतारा था. माना जा रहा है कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर से बीजेपी माइलेज की स्थिति में थी. अयोध्या के सियासी इतिहास को अगर देखें तो 31 सालों में अयोध्या सीट पर बीजेपी को केवल दो बार ही हार का सामना करना पड़ा है. यहां कुल मतदाता 3, 79, 633 हैं.
गोसाईगंज विधानसभा सीट:
अयोध्या की गोसाईगंज सीट पर दो बाहुबली तीसरी बार मैदान में थे. सपा से बाहुबली अभय सिंह तो भाजपा से विधायक इंद्रप्रताप तिवारी उर्फ खब्बू की पत्नी आरती तिवारी मैदान में थीं. खब्बू तिवारी फर्जी मार्कसीट केस में खुद जेल में हैं. जिसकी वजह से उन्होंने पत्नी को चुनाव में उतारा था. यहां बीजेपी और सपा की सीधी लड़ाई थी. बात कुल मतदाताओं की संख्या 3,93,447 है.
बीकापुर विधानसभा सीटः
बीकापुर विधानसभा सीट से एसपी ने फिरोज खां उर्फ गब्बर को प्रत्याशी बनाया था. बीजेपी ने शोभा सिंह चौहान के बेटे डॉक्टर अमित सिंह चौहान को टिकट दिया था. बीकापुर में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे थे. बीएसपी ने सुनील पाठक को टिकट देकर सपा और बीजेपी से टक्कर लेने का फैसला लिया था. बीकापुर विधानसभा सीट पर बीजेपी को प्रभु श्रीराम के नाम के सहारे चुनावी नैया पार करने की तैयारी थी. यहां बीकापुर विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3,78,850 हैं.
रूदौली विधानसभा सीटः
रूदौली सीट पर भाजपा ने रामचंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया था. बसपा ने सपा के बागी अब्बास अली उर्फ रूश्दी मियां पर विश्वास जताया था. वहीं, सपा ने आनंदसेन को प्रत्याशी बनाकर सियासी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया था. रूदौली को यादव और मुस्लिम मतदाताओं का गढ़ माना जाता है. इस सीट पर आनंदसेन और रामचंद्र के बीच सीधी लड़ाई थी. रूदौली विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3,36,546 हैं.
मिल्कीपुर विधानसभा सीटः
मिल्कीपुर सीट पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी लड़ाई थी. बीजेपी ने गोरखनाथ बाबा को चुनावी मैदान में उतारा था. वहीं एसपी ने पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद पर भरोसा जताया था. मिल्कीपुर में दलित वोटों पर सभी दलों की नजरें हैं. कांग्रेस की बात करें तो बृजेश रावत और बसपा ने मीरा को उम्मीदवार बनाया था. हालांकि अवधेश प्रसाद की दलित वोटर्स पर मजबूत पकड़ है. वहीं गोरखनाथ बाबा दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं. मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर कुल मतदाता 3,56,829 हैं.
अब बात करके हैं श्री कृष्ण भगवान की नगरी मथुरा की. इस जिले में कुल 5 विधानसभा सीटें हैं. 2017 के चुनाव में इनमें से 4 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. जबकि एक सीट बीएसपी को मिली थी.
अगर बात करें मथुरा के भौगोलिक स्थिति की तो ये आगरा और दिल्ली के बीच में बसा हुआ है. मथुरा दिल्ली से मात्र डेढ़ सौ किलोमीटर दूर है. यहां भारत सरकार ने एक रिफाइनरी भी स्थापित की है. मथुरा में कपड़ा उद्योग भी है.