लखनऊ : देश और प्रदेश की सरकारें जल जीवन मिशन के तहत गांवों में भी अति महत्वाकांक्षी 'हर घर जल योजना' पर काम कर रही हैं. इस योजना के तहत हर गांव में नलकूप लगाए जा रहे हैं और पानी की टंकियां बनाकर पाइप लाइन द्वारा घर-घर शुद्ध पेयजल पहुंचाने की कवायद की जा रही है. निश्चित रूप से यह पहल सराहनीय है. शहरी लोगों की तरह ग्रामीणों को भी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए. स्वच्छ जल पर तो सबका अधिकार है. इसके विपरीत चिंता इस बात को लेकर जताई जा रही है कि यदि सरकारें पेयजल व कृषि आदि के लिए भूगर्भ जल पर इसी तरह निर्भर रहीं, तो वह दिन दूर नहीं जब जब हालात भयावह हो जाएंगे. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में कृषि कार्यों के लिए 74.6 प्रतिशत जल का दोहन नलकूपों के माध्यम से भूगर्भ से किया जाता है, जबकि केवल 15.2 प्रतिशत सिंचाई नहरों के पानी से हो पाती है. यह आंकड़े बताते हैं कि सरकारों से सिर्फ सुविधा देखी, नए तंत्र के विकास के लिए कोई उपाय नहीं किए.
शहरी क्षेत्रों में पहले से ही पेयजल की आपूर्ति भूजल से की जाती रही है. अब प्रदेश के कुल 106774 गांवों में नलकूप लगाकर जलापूर्ति की जाएगी. यह संख्या पहले से मौजूद नलकूपों की दोगुनी है. प्रदेश की सोलह करोड़ से ज्यादा ग्रामीण आबादी इन एक लाख से ज्यादा नलकूपों से लाभान्वित होगी. ऐसे में सरकार को भूगर्भ जल पर निर्भरता कम करने के उपाय करने चाहिए थे, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. सतही जल का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कैसे हो, सरकारें अभी तक यह सोच ही नहीं पाई हैं. नहरों के अतिरिक्त पानी का कैसे बेहतर उपयोग हो इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है. वैज्ञानिक बताते हैं कि 'प्रदेश में जितना भूजल दोहन हो रहा है, उसका एक चौथाई सिर्फ गन्ने का उत्पादन बढ़ाने के लिए हो रहा है.' जल संस्थान के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ लखनऊ में लगभग चार सौ एमएलडी (चालीस करोड़ लीटर) पानी प्रतिदिन ट्यूबवेलों से निकाला जा रहा है. यह सरकारी आंकड़ा है, जबकि भूजल वैज्ञानिकों के अध्ययन में पता चला कि इसका तीन गुने से ज्यादा यानी लगभग 150 करोड़ लीटर पानी लखनऊ में प्रतिदिन निकाला जा रहा है. अपार्टमेंट्स और निजी कॉलोनियों में नलकूपों की भरमार है. तमाम समृद्ध लोग घरों में सबमर्सिबल लगाए हैं, जिसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. हो सकता है कि यह पानी पचास हजार वर्ष पुराना हो, जो हिमालय से रिचार्ज होकर यहां पर जमा पूंजी के रूप में एकत्र हुआ हो, जिसे हम निकालते जा रहे हैं. वैज्ञानिकों ने तमाम अध्ययन किए हैं और सरकार को इसकी सिफारिशें भी की हैं. शहरों में धीरे-धीरे नलकूप से जलापूर्ति रोक देने के विकल्प भी सुझाए गए हैं. वैज्ञानिकों ने सुझाव दिए हैं कि सीमावर्ती जिलों, जहां पर अच्छे स्टेटा (पहली लेयर) हैं, वहां से लेकर शहरों में पानी की सप्लाई देनी चाहिए. नहरों के तंत्र को बेहतर करना होगा, पर इस ओर अभी तक किसी सरकार का ध्यान नहीं है.
इस संबंध में भूजल विशेषज्ञ डॉ आर एस सिन्हा कहते हैं 'प्रदेश में जो भी विकास योजनाएं चल रही हैं, उनमें पानी की आपूर्ति भूगर्भ जल पर ही निर्भर है. चाहे हमारी कृषि आधारित योजनाएं हों, चाहे औद्योगिक विकास हो या पेयजल की बात हो. इसका असर यह हुआ कि हमने पिछले तीन दशकों में भूगर्भ जल का बेइंतहा दोहन कर लिया. हम गंगा बेसिन में हैं और बहुत अधिक मात्रा में हमारे पास पानी की उपलब्धता है. यह बात सही है, लेकिन जो पानी हम निकालते हैं भूगर्भ से, उसकी वार्षिक प्रतिपूर्ति भी होती रहनी चाहिए. पानी के दोहन, उसकी मांग और उपलब्धता को हमने ध्यान में नहीं रखा. आज हमारे सामने एक विकट समस्या आ गई है. भूजल संकट बढ़ता जा रहा है. तमाम जिले ऐसे हैं, जहां स्थिति काफी खराब है. खासतौर पर जो शहरी क्षेत्र हैं, उनमें तो स्थिति बहुत ही खराब है. सबसे ज्यादा जो आम आदमी प्रभावित होता है, वह पेयजल से होता है. यदि हम ग्रामीण क्षेत्रों में देखें तो 12-13 हजार नलकूप और लगभग पचास लाख हैंडपंपों से पेयजल की आपूर्ति होती रही है. चार जिलों में हैंडपंप का पानी प्रदूषण के कारण पीने के लायक नहीं था, क्योंकि इन जिलों में विषैली धातुओं का मिश्रण पेयजल में था, जो हमारे शरीर के लिए घातक है. इन जिलों में जब जांच की गई तो पता चला कि हैंडपंप से जो पानी आ रहा है, वह दूषित है.'